तुमने पतंग उड़ाई है ? धूप है , आस्मान सुनहरा , धरती पर धान का पौधा अपनी गर्दन घुमा कर बादल ढूँढता है मैं सपनों में पतंग बन दो आँखें ढूँढता हूँ पागल हवा धरती के हर मुल्क का सैर कर आती है साँप सी टेढ़ी सड़क के किनारे पौधों के पत्ते हैं ऊँची घास नशे में लहराती है समंदर पर लहरों सी उड़ती है पतंग अनगिनत साल बीत गए खोया नहीं हूँ पतंगों की भीड़ में जाना कि इंसान हूँ कि चाकू बंदूक चला सकता हूँ उड़ती पतंग उतार सकता हूँ ज़मीं पर जहाँ हर ओर घास पेड़ जल रहे हैं। सपने पतंग आँखें उड़ कर पास जा पूछता हूँ - दोस्त , कैसे हो ? डरावनी शक्ल के लोग मीठी हँसी हँसते कहते हैं - सँभल कर भाई , खुशी उफनने न लगे। हवा में तब उम्म्ह गंध होती है आकाश है कि समंदर घबराता मैं बातें करता हूँ - यह , वह , तुम , मैं… चाहता कि कहूँ - चलो , साथ उड़ेंगे कह न पाता हूँ सुनता हूँ कि कुछ लोगों ने एक झंडा उतारा है और एक हवा में फहराया है कि मैं , मैं नहीं , न पतंग , न सपना , शहर में ब्लैक आउट , सीने में ठकठक फौज की परेड गूँजती है फिर जंग छिड़ी है गंगा के सीने में नौका के नीचे सूरज लाल...