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Showing posts from January, 2006

गणतंत्र दिवस मुबारक।

गणतंत्र दिवस मुबारक। नमन उस संविधान को जो पूरी तरह लागू भले न हुआ हो या जिसे सुविधासंपन्न लोगों के सामूहिक षड़यंत्र ने सफल नहीं होने दिया, पर जो जैसा भी है दीगर मुल्कों के संविधानों से ज्यादा उदार, ज्यादा अग्रगामी और ज्यादा बराबरी के सिद्धांतों पर आधारित है। साथ ही नमन संविधाननिर्माताओं को, खास तौर पर बाबा साहब भीमराव अंबेदकर को जिन्होंने बेहतरीन मानव मूल्यों पर आधारित देश और समाज की कल्पना की। ***************************************************************************** एक दिन जुलूस सड़क पर कतारबद्ध छोटे -छोटे हाथ हाथों में छोटे -छोटे तिरंगे लड्डू बर्फी के लिफाफे साल में एक बार आता वह दिन कब लड्डू बर्फी की मिठास खो बैठा और बन गया दादी के अंधविश्वासों सा मजाक भटका हुआ रीपोर्टर छाप देता है सिकुड़े चमड़े वाले चेहरे जिनके लिए हर दिन एक जैसा उन्हीं के बीच मिलता महानायकों को सम्मान एक छोटे गाँव में अदना शिक्षक लोगों से चुपचाप पहनता मालाएँ गुस्से के कौवे बीट करते पाइप पर बंधा झंडा आस्मान में तड़पता कटी पतंग सा एक दिन को औरों से अलग करने को। (१९८९- साक्षात्कार...

जस्ट लाइक अ ट्री स्टैंडिंग बाई द वाटर

मैंने अरुंधती राय के साहित्य अकादमी पुरस्कार न लेने पर उन्हें सलाम कहा था तो मसिजीवी परेशान हो गए। परेशानी में जो कुछ लिखा उसे पढ़कर कुछ और मित्रों की बाँछें खिल गईं। बहरहाल , एक पुरस्कार लेना है या नहीं , इसे सिर्फ एक नैतिक निर्णय मानना बचकानी बात है। यह तो अरुंधती भी जानती होंगी कि महाश्वेता दी जैसे कई लोग जो बार बार पुरस्कृत हुए हैं और जिन्होंने पुरस्कार लिए हैं , कोई कम प्रतिबद्ध नहीं हैं। एक पुरस्कार लेना न लेना एक रणनीति है और बिना सोचे समझे महज नैतिक कारणों से ऐसा करना बेवकूफी नहीं तो कम से कम फायदेमंद तो है नहीं। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बर्त्तानिया सरकार की दी हुई नाइट की उपाधि वापस की थी। हमारे रंगीन मिजाज समकालीन खुशवंत सिंह ने राज्यसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दिया था। स्पष्ट है ऐसे सभी लोगों ने अपनी सभी उपाधियाँ या पुरस्कार नहीं लौटाए। जिन्होंने लौटाए सोचकर लौटाए कि इससे क्या प्रभाव पड़ेगा। बहरहाल मसिजीवी और दूसरे मित्र इस पर बहस करते रहें कि अरुंधती का निर्णय ठीक था या नहीं या मेरा सलाम कितना लाल या पीला था। इसी बीच अगर अरुंधती मन बदल लें तो और भी अच्छा - हमारी बह...

प्रासंगिक

प्रासंगिक लंबे समय तक खाली मकान की बाल्कनी में बना उसका घोंसला उखड़ चुका था। ठंड की बारिश के दिन। मकान के अंदर रजाई में दुबकी तकलीफें। उड़ने की आदत में चाय की जगह कहाँ। वे बार बार लौटते, अपना घोंसला ढूँढते। शीशे की खिड़कियों से दिखता आदमी उनके पंखों की फड़फड़ाहट पर झल्लाता हुआ। सुबह सुबह अखबार। विस्फोट, बेघरी, बेबसी और राजकन्या को परेशान करने वाले सनकी आदमी की गिरफ्तारी। शीशों पार दुनिया में कितनी तकलीफें। निरंतर वापस आना उनका ढूँढना घोंसला प्रासंगिक। (साक्षात्कार- मार्च १९९७)

भाषा

भाषा एक आंदोलन छेड़ो पापा ममी को बाबू माँ बना दो यह छेड़ो आंदोलन गोलगप्पे की अंग्रेज़ी कोई न पूछे कोई न कहे हुतात्मा चौक फ्लोरा फाउंटेन को परखनली शिशु को टेस्ट-ट्यूब बेबी बना दो कहो नहीं पढ़ेंगे अनुदैर्घ्य उत्क्रमणीय शब्दों को छुओ कि उलट सकें वे बाजीगरों सरीके जब नाचता हो कुछ उनमें लंबाई के पीछे पीछे विज्ञान घर घर में बसा दो परी भाषा बन कर आओ परिभाषा को कहला दो यह छेड़ो आंदोलन कि भाषा पंख पसार उड़ चले शब्दों को बड़ा आस्माँ सजा दो। (१९९२ - समकालीन भारतीय़ साहित्यः १९९४)

छोटे-बड़े

छोटे-बड़े तारे नहीं जानते ग्रहों में कितनी जटिल जीवनधारा । आकाशगंगा को नहीं पता भगीरथ का इतिहास वर्तमान । चल रहा बहुत कुछ हमारी कोषिकाओं में हमें नहीं पता । अलग-अलग सूक्ष्म दिखता जो संसार उसके टुकड़ों में भी है प्यार उनका भी एक दूसरे पर असीमित अधिकार जो बड़े हैं नहीं दिखता उन्हें छोटों का जटिल संसार छोटे दिखनेवालों का भी होता बड़ा घरबार छोटी नहीं भावनाएं, तकलीफें छोटे नहीं होते सपने। कविता,विज्ञान,सृजन,प्यार कौन है क्या है वह अपरंपार छोटे-बड़े हर जटिल का अहसास सुंदर शिव सत्य ही बार बार। (पश्यंतीः अक्तूबर - दिसंबर २०००)

खबर

खबर जाड़े की शाम कमरा ठंडा ठन्डा इस वक्त यही खबर है - हालाँकि समाचार का टाइम हो गया है कुछेक खबरें पढ़ी जा चुकी हैं और नीली आँखों वाली ऐश्वर्य का ब्रेक हुआ है है खबर अँधेरे की भी काँच के पार जो और भी ठंडा थोड़ी देर पहले अँधेरे से लौटा हूँ डर के साथ छोड़ आया उसे दरवाजे पर यहाँ खबर प्रकाश की जिसमें शून्य है जिसमें हैं चिंताएं, आकांक्षाएँ, अपेक्षाएँ अकेलेपन का कायर सुख और बेचैनी........ ........इसी वक्त प्यार की खबर सुनने की सुनने की खबर साँस, प्यास और आस की कितनी देर से हम अपनी खबर सुनने को बेचैन हैं। (इतवारी पत्रिका - ३ मार्च १९९७) ******************************************************** अरुन्धती सलाम मुझे 'इंडियन इंग्लिश' नामक लेखन से बहुत चिढ़ है। पूर्वाग्रह है। फिर भी यदा कदा कुछ अच्छा पढ़ ही लेता हूँ। अरुन्धती राय का 'गॉड अॉफ स्मॉल थिंग्स' मेरी बेटी को बहुत पसंद है। अरुन्धती से मिलने से पहले ही उसने पुस्तक की प्रशंसात्मक समीक्षा की हुई थी - मिलने के बाद तो क्या कहने। मुझे उपन्यास से तो बड़ी समस्याएँ हैं। चूँकि विज्ञान की तरह ही साहित...

पंजाब की लोक-संस्कृति का अद्भुत संसार

लोहड़ी के दिन मुझे सबसे अनोखी बात लगती है लोहड़ी का गीत , जो आधुनिक समय के तमाम दबावों के बावजूद ज़िंदा है। पंजाब की लोक - संस्कृति का अद्भुत संसार है , जो पंजाब से बाहर के लोग कम ही जानते हैं। मैं बचपन में कलकत्ता में शहरी बंगाली मध्यवित्त समाज में पलते हुए पंजाब की लोक - संस्कृति के प्रति हीन भावना से ग्रस्त था। यहाँ इतने सालों में मेरी प्राप्ति यह है कि मैंने इस समृद्ध संस्कृति को जाना है। दुःख की बात है कि पंजाब का शहरी समुदाय अपनी इस संस्कृति से अनभिज्ञ है। लोहड़ी के दिन बच्चे आकर गीत गाकर लोहड़ी माँगते हैं। बच्चे तो बच्चे हैं , उन्हें जल्दी होती है कि गीत गाएँ और जो भी मिलता है ले लें। पहले कुछ वर्षों में हम उनसे पूरा गीत सुनकर ही उन्हें लोहड़ी देते थे , अब हम भी जल्दी से निपट लेते हैं। शाम को जब मुहल्लों में लोग आग जला कर इकट्ठे होते हैं , वहाँ भी बुज़ुर्गों में ही आग्रह होता है , बच्चे और युवा तो बस पॉप म्युज़िक और डांस में ही रुचि रखते हैं। एक साल तो मुझे याद है , दो गीत जो हर जगह बज रहे थे , वे थे ' देस्सी बांदरी विलैती चीक्खां मारदी ' और ' तू नाग सां...

जिस दिन गोली चली

जिस दिन गोली चली दिल्ली हवाई अड्डे पर अपने मोबाइल का इस्तेमाल तो कर ही रहा था, बंगलौर और हैदराबाद बतलाना था कि मैं नहीं भी पहुँच सकता हूँ। इसी बीच बड़ा दिन यानी कि क्रिसमस की शुभकामनाओं के संदेश आने शुरु हो गए। हर ऐसे फ़ोन के लिए मुझे रोमिंग का जुर्माना पड़ना था। तंग आकर निर्णय लिया कि हफ्ते भर तक मोबाइल बंद। जिस दिन टाटा ऑडिटोरियम के बाहर कान्फरेंस से निकलते लोगों पर गोलियाँ चलाई गईं, उस वक्त मैं अपने मेजबान वैज्ञानिक प्रोफेसर साहब के साथ शाम की सैर कर रहा था। थोड़ी देर पहले उनके घर पर चाय-शाय ली थी और फिर सैर करते हुए वापस लैब की ओर जाने की योजना थी। एक बार मुझे लगा कि कहीं पटाखे फटने की आवाज आ रही है। पीछे दो तीन दिनों से रात को ढंग से सो नहीं पा रहा था क्योंकि कहीं शादी वादी में नादस्वरम और पटाखे देर रात तक बज रहे थे। थोड़ी देर बाद दफ्तर से लौट के मुख्य अतिथि गृह में आया और कार्नेगी मेलन से आए डिज़ाइन के प्रोफेसर सुब्रह्मण्यन ईश्वरन और तोक्यो से आए गणना विशेषज्ञ जेम्स के साथ डाइनिंग हाल में बैठा गपशप कर रहा था। परिचारक कुमार ने आकर बतलाया कि किसी मेहमान के लिए फ़ोन आया था और फ...

वापसी

वापसी कभी 'वापसी' शीर्षक कहानी लिखी थी। भोपाल से प्रकाशित 'कहानियाँ: मासिक चयन' में प्रकाशित हुई थी। प्रख्यात कहानीकार सत्येनकुमार पत्रिका के संपादक थे। उन्होंने शीर्षक बदलकर 'वापिसी' कर दिया था। तब से 'वापसी' शब्द लिखते हुए आत्म चेतन हो जाता हूँ। बहरहाल यह हमारी वापसी। इस बीच काफी कुछ हुआ। चंडीगढ़ से तेईस दिसंबर को चलना था। हवाई अड्डे पहुँचे ही थे कि दो सौ गज दूर नाके पर तैनात सुरक्षा कर्मचारी ने ही रोक लिया। 'क्या करना है?' भई मेरी फ्लाइट है! 'सारी फ्लाइट रद हो गई हैं।' अरे तो मैं दिल्ली से बंगलौर की फ्लाइट कैसे पकड़ूँगा। 'जाइए, वो टैक्सी में बैठा कर भेज रहे हैं।' "रोने को यूँ तो हर दिन जी चाहता है यह हर रोज के रोने ने हमें रोने न दिया" चंडीगढ़ से एयर डेकन वाली सस्ती उड़ान थी, दिल्ली से सहारा की थी। एयर डेकन वाली युवा महिला ने टिकट पकड़ा और कहा 'आपको सूचना नहीं मिली कि दिल्ली से कुहासे की वजह से कोई भी फ्लाइट यहाँ नहीं आ रही।' मैंने फूलती साँस में कहा हाँ आप लोगों ने मोबाइल का नंबर तो रख लिया और फ़ोन ...