गणतंत्र दिवस मुबारक। नमन उस संविधान को जो पूरी तरह लागू भले न हुआ हो या जिसे सुविधासंपन्न लोगों के सामूहिक षड़यंत्र ने सफल नहीं होने दिया, पर जो जैसा भी है दीगर मुल्कों के संविधानों से ज्यादा उदार, ज्यादा अग्रगामी और ज्यादा बराबरी के सिद्धांतों पर आधारित है। साथ ही नमन संविधाननिर्माताओं को, खास तौर पर बाबा साहब भीमराव अंबेदकर को जिन्होंने बेहतरीन मानव मूल्यों पर आधारित देश और समाज की कल्पना की। ***************************************************************************** एक दिन जुलूस सड़क पर कतारबद्ध छोटे -छोटे हाथ हाथों में छोटे -छोटे तिरंगे लड्डू बर्फी के लिफाफे साल में एक बार आता वह दिन कब लड्डू बर्फी की मिठास खो बैठा और बन गया दादी के अंधविश्वासों सा मजाक भटका हुआ रीपोर्टर छाप देता है सिकुड़े चमड़े वाले चेहरे जिनके लिए हर दिन एक जैसा उन्हीं के बीच मिलता महानायकों को सम्मान एक छोटे गाँव में अदना शिक्षक लोगों से चुपचाप पहनता मालाएँ गुस्से के कौवे बीट करते पाइप पर बंधा झंडा आस्मान में तड़पता कटी पतंग सा एक दिन को औरों से अलग करने को। (१९८९- साक्षात्कार...