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Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Monday, January 16, 2006

खबर

खबर

जाड़े की शाम
कमरा ठंडा ठन्डा
इस वक्त यही खबर है
- हालाँकि समाचार का टाइम हो गया है
कुछेक खबरें पढ़ी जा चुकी हैं
और नीली आँखों वाली ऐश्वर्य का ब्रेक हुआ है

है खबर अँधेरे की भी
काँच के पार जो और भी ठंडा
थोड़ी देर पहले अँधेरे से लौटा हूँ
डर के साथ छोड़ आया उसे दरवाजे पर

यहाँ खबर प्रकाश की जिसमें शून्य है
जिसमें हैं चिंताएं, आकांक्षाएँ, अपेक्षाएँ
अकेलेपन का कायर सुख

और बेचैनी........
........इसी वक्त प्यार की खबर सुनने की
सुनने की खबर साँस, प्यास और आस की

कितनी देर से हम अपनी
खबर सुनने को बेचैन हैं।

(इतवारी पत्रिका - ३ मार्च १९९७)
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अरुन्धती सलाम

मुझे 'इंडियन इंग्लिश' नामक लेखन से बहुत चिढ़ है। पूर्वाग्रह है। फिर भी यदा कदा कुछ अच्छा पढ़ ही लेता हूँ। अरुन्धती राय का 'गॉड अॉफ स्मॉल थिंग्स' मेरी बेटी को बहुत पसंद है। अरुन्धती से मिलने से पहले ही उसने पुस्तक की प्रशंसात्मक समीक्षा की हुई थी - मिलने के बाद तो क्या कहने। मुझे उपन्यास से तो बड़ी समस्याएँ हैं। चूँकि विज्ञान की तरह ही साहित्य में भी मेरी घुसपैठ सीमित स्तर तक है, इसलिए कई बार खुद ही संदेह होने लगता है कि शायद मेरे विचार महज ईर्ष्या की वजह से हैं। पर मुझे अरुन्धती से बेहद प्यार है - हालाँकि मैं कभी उससे मिला नहीं हूँ। बेटी मिल चुकी है, मैं नहींं। उसमें वह कुछ है, इंसान में प्यार करने लायक जो तत्व होने चाहिएं।

फिलहाल तो सिर्फ इसलिए कि उसने साहित्य अकादमी का पुरस्कार लेने से मना कर दिया है। अरुन्धती को यह पुरस्कार उसकी पुस्तक 'द आलजेब्रा अॉफ इनफाइनाइट जस्टिस' के लिए दिया जाना है। चूँकि साहित्य अकादमी को पैसा सरकार से मिलता है, और भारत सरकार निश्चित रुप से जन विरोधी है, इसकी अंतर्देशीय और अंतर्राष्ट्रीय़ नीतियों से अरुन्धती सहमत नहीं है, इसलिए उसने कह दिया - पुरस्कार वुरस्कार नहीं चाहिए।

सलाम अरुन्धती सलाम।

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पी जी आई (पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टीचिउट अॉफ मेडिकल रीसर्च) में एक दलित कामगार दाखिल है जिसे अपने मालिक की पिटाई की वजह से गैंग्रीन हो चुके घायल पैर कटवाने पड़े हैं। कुछ साथियों ने संपर्क किया था। क्या कहें - यह मेरा चिंडिया। हर रोज ही ऐसी कोई खबर होती है।

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3 Comments:

Blogger Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

मुझे झुम्पा लाहिडी की 'द नेमसेक' बहुत पसंद आई थी। बहुत ज़्यादा ऐसी किताबें नहीं पढ़ी हैं मैने पर 'द गाड आफ़ स्माल थिंग्स' अच्छी लगी थी, बहुत अच्छी नहीं। रोहिंटन मिस्त्री की'अ फ़ाइन बैलेन्स' के बारे में बहुत सुना है, पढ़ने का मन बनाया है, देखते हैं।

4:10 AM, January 17, 2006  
Blogger Pratyaksha said...

कविता, बहुत खूब !
अरुन्धती राय की गॉड ओफ..., झूम्पा लाहिडी की इंतेर्प्रेतर ओफ.., सल्मान रश्दी की ग्राईमस और शेम पसंद आई. विक्रम सेठ की इक्वल मुसीक..मज़ा नहीं आया.शांता रामा राव की बहुत पहले पढी, तब अच्छी लगी थी.
एक किताब है इन्नर कोर्टयार्ड..महिला लेखकों की कहानियाँ, कुछ अनुवाद भी हैं (शायद 'इंडियन इंग्लिश' के परिभाषा में शत प्रतिशत न आये)ये बहुत अच्छी लगी. और भी कई किताब और लेखक याद आ रहे हैं, पर फिर कभी.

प्रत्यक्षा

9:53 AM, January 17, 2006  
Blogger मसिजीवी said...

सरकार जनविरोधी है। हुम्‍म्‍म्‍म्‍म्‍म हॉं शायद। मैं कॉलिज में पढ़ाता हूँ पैसा सरकार से आता है और इस बार की तनख्‍वाह से तो दो हजार अपनी मारूति की मरम्‍मत की अय्याशी में खर्च किए। मैं जनविरोधी अय्याश हूँ। ............ सरलीकृत तर्कश्रंखला की फूहड़ता के लिए माफी पर क्‍या उनके बाकी पुरस्‍कार केवल जनसमर्थक नीतियों वाली संस्‍थाओं से ही ग्रहण किए हैं ?

7:25 PM, January 18, 2006  

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