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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Thursday, January 19, 2006

छोटे-बड़े

छोटे-बड़े


तारे नहीं जानते ग्रहों में कितनी जटिल
जीवनधारा ।
आकाशगंगा को नहीं पता भगीरथ का
इतिहास वर्तमान ।
चल रहा बहुत कुछ हमारी कोषिकाओं में
हमें नहीं पता ।

अलग-अलग सूक्ष्म दिखता जो संसार
उसके टुकड़ों में भी है प्यार
उनका भी एक दूसरे पर असीमित
अधिकार

जो बड़े हैं
नहीं दिखता उन्हें छोटों का जटिल संसार

छोटे दिखनेवालों का भी होता बड़ा घरबार
छोटी नहीं भावनाएं, तकलीफें
छोटे नहीं होते सपने।

कविता,विज्ञान,सृजन,प्यार
कौन है क्या है वह अपरंपार
छोटे-बड़े हर जटिल का अहसास
सुंदर शिव सत्य ही बार बार।

(पश्यंतीः अक्तूबर - दिसंबर २०००)

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1 Comments:

Blogger Laxmi said...

लाल्टू जी,

आपकी कविता सुन्दर और अन्तर्दृष्टि से भरी है। ये पंक्तियाँ बिल्कुल सत्य हैं:

जो बड़े हैं
नहीं दिखता उन्हें छोटों का जटिल संसार

लक्ष्मीनारायण

6:29 PM, January 20, 2006  

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