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Showing posts from July, 2020

गढ़ी गई हिन्दी में खो जाता है विज्ञान

विज्ञान में हिन्दी प्यार में गलबँहियाँ नहीं, प्रेमालिंगन करती है। काला को कृष्ण, गड्ढे को गह्वर कहती है। जैसे कृष्ण के मुख-गह्वर में समाई सारी कायनात गढ़ी गई हिन्दी में खो जाता है विज्ञान। आस-पास बथेरे काले गड्ढे हैं , ज़ुबान के, अदब के, इतिहास-भूगोल के, (एक वैज्ञानिक ने तस्वीरें छापी हैं और वह एक स्त्री है अँधेरे गड्ढों में फँसे लोग छानबीन में लगे हैं कि किन मर्दों का काम इन तस्वीरों को बनाने में जुड़ा है) ताज़िंदगी इनमें गिरे रहते हैं एक दिन रोशनी आती है कोई नहीं जानता फिर क्या होता है इतिहास-भूगोल, विज्ञान, सब कुछ विलीन हो जाता है भटकता रह जाता है प्यार और एक प्यारा काला-गड्ढा। न बचता है विज्ञान और न हिन्दी बचती है।  (2019)

शाना की बचपन की कविता

जल्दी ही वह तीस की हो जाएगी। इस रंजिश के साथ कि आज भी उसकी आठ साल की उम्र में लिखी यही कविता मुझे सबसे ज्यादा क्यों पसंद है। किनारा लहरों के पार दूर मैंने दूर नज़र फैलाई रेतीले किनारे पर पत्थर कोयले की तरह चमकते हैं धूप में ग़र्मी है मुझे नहीं एहसास मुझे तीखे कंकड़ों का भी नहीं अहसास खड़ी हूँ बस ज़मीं का विस्तार देखती हूँ।              - शाना बुल्हान हेडॉक (1999- 8 वर्ष) [अनुवाद - लाल्टू़] The Beach I looked over the waves Far Far away Along the sandy coast The stones gleam like coal The sun is so hot but I don't feel it Nor the sharp rocks I just stand there looking into a vast land. - Shana Bulhan Haydock (4 August 1999)

बेरहमी न देख पाने की हमें आदत हो गई

बेरहमी जो नहीं दिखती है (हाल में न्यूज़लॉंंड्री हिन्दी में प्रकाशित) चीन पैदाइशी धूर्त देश है। आजकल हर कोई इस तरह की बातें कर रहा है। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही है। चीन ने चालाकी से विश्व व्यापार संगठन के नियमों का फायदा उठाते हुए कई मुल्कों में पैसे लगाकर वहाँ की अर्थव्यवस्थाओं को पूरी तरह चीन पर निर्भर कर दिया है। पड़ोसी मुल्क श्रीलंका और पाकिस्तान में ऐसे बड़े निवेश हुए हैं , जिन पर वहाँ की सरकारों का कोई बस नहीं रह गया है। चीन के अंदर भी सरकार द्वारा लोगों पर हो रहे अत्याचार के बारे में चेतना फैलानी ज़रूरी है। चीन में उइगूर मुसलमानों पर सत्ता का भयंकर नियंत्रण है। हालांकि वहां से ज्यादा मौतों की खबर नहीं आती , पर पश्चिमी मुल्कों में छप रही खबरों के मुताबिक वहाँ डिटेंशन सेंटर या क़ैदखाने बनाए गए हैं , जहाँ उइगूरों को ज़बरन आधुनिक जीवन शैली और पेशों की ट्रेनिंग दी जाती है , ताकि वह अपने पारंपरिक धार्मिक - सामाजिक रस्मों से अलग हो जाएँ। इस पर बीबीसी और न्यूयॉर्क टाइम्स ने रीपोर्ताज तैयार कर फिल्में भी बनाई हैं। इन फिल्मों में उदास या गुस्सैल चेहरे नहीं दिखते , पर इसे पश्चिमी ...

दो कविताएँ

प्रश्नकाल के कवि से मिलना उसे कई बड़ी कविताओं के लिए जाना गया मैं निहायत छोटी सी कविता प्रश्नकाल से मोहित था ऐसे मुल्क में पला-बढ़ा जहाँ वक्त ने सवालों की भरमार पेश की और जवाब नदारद। जब उससे मिला तो कोई खास नहीं, पर कभी न भूलने वाला प्रसंग बन गया। ख़तो-किताबत में पहले से ही उसे मुझसे कविता से अलग भी प्यार-सा था वह बूढ़ा हो चुका था पर बच्चों सी शरारती अदाएँ थीं उसमें। सादी पर कलात्मक पोशाक में उसकी जेब में किस्से छिपे थे, जिसे चाव से सुनाता वह बीच-बीच में होंठ टेढ़े-से कर मुस्कराता। आम सा लगता वह आदमी कितना खास था यह जानने के लिए तुम्हें पूछने होंगे प्रश्न और उस जैसा तड़पना होगा इस आदमखोर तंत्रों के जमाने में। कुछ और भी बातें की थीं मैंने जैसे दिल्ली और हैदराबाद के मौसम पर और उम्र के साथ बढ़ती जिस्मानी तकलीफों पर। आखिर कभी उसे छोड़कर लौटना ही था। फिर हर रात सपना देखना था 'पूछो कि क्यों नहीं है पूछने वालों की सूची में तुम्हारा नाम' कहता वह। (इंद्रप्रस्थ भारती - 2020) अजीब पहेली है सदियों तक उबालते हैं नस्ल, मजहब और जात के सालन बेस्वाद या कि ज़हर का स्वाद चखते हैं बार-बार सूली, फाँसी, बम-...

चिरंतन-शाश्वत जैसे सुंदर लफ्ज़ गढ़े गए

आज़ादी सबके बालों में फूल सजाए गए, उनमें काँटे भरे थे रंग-बिरंगी पंखुड़ियों के बावजूद चुभन तीखी रही, तल्खी बढ़ती रही कहानियाँ गढ़ी गईं, चिरंतन-शाश्वत जैसे सुंदर लफ्ज़ गढ़े गए दर्जनों ब्याहे गए एक शख्स के साथ  सबको मुकुट पहनाया गया   कि एक धुन पर एक लय में नाचो एक अंगवस्त्र पहनो इन सबसे, इन सबमें जन्मा मैं। मेरे जिस्म में खरोंचों की भरमार है। देखता हूँ कि आस्मां रंगों से सजा है हवाओं से पूछता हूँ कि मैं कौन हूँ और मुझे बंद कोठरियों में धकेल दिया जाता है खिड़कियों पर परदों में से छनकर आती है नीली बैंगनी रोशनी आवाज़ें सुनाई पड़ती हैं कि कोई गा रहा आज़ादी के सुर तड़पता एक ओर हाथ बढ़ाता हूँ कि कोई दूसरी ओर से कहता है - आज़ादी कब मुझे कहा जाता है कि मैं रो नहीं सकता मैं और कुछ नहीं चाहता  बस यही कि मुझे रो लेने दो।         (विपाशा - 2019)

सब कुछ धुँआ-धुँआ है

जागने पर क्या दिखेगा धरती को कभी ऐसा देखा न था जैसे मेरी माँ नहीं, बेटी है अभी कल की जन्मी अँगड़ाई लेना सीख रही धरती लिपटती है मुझ से तो घबराता हुआ उसका माथा थामता हूँ कितनी नाज़ुक, नर्म, हल्के-से ताप की गठरी है धीमे चलता हूँ, धरती कहीं टकरा न जाए ख़ला में तारों के टुकड़े बिखरे पड़े हैं कभी भी ठोस-द्रव-गैस हर तरह की टक्कर कहीं से आ सकती है धरती को गीत गाकर सुलाता हूँ उसके चेहरे पर महाकाश से आती रोशनी देखता हूँ धरती रोती है बेचैन होता हूँ पुचकारता हूँ आगे पीछे चलता हूँ दोलता हूँ अनकही कहानियों में से चुनिंदा उसे सुनाता हूँ इस तरह धरती को प्यार करते देख किसान गर्दन उठाकर देखते हैं फसल रोपते हुए वे धरती के लिए गीत गाते हैं गर्म हवाएँ थोड़ी देर थमी रहती हैं बादल रिमझिम संगीत बन बरसते हैं किसानों को अंदेशा है कि मैं धरती की नज़ाकत से घबरा रहा हूँ वे भरोसा देते हैं कि धरती मेरा प्यार सह लेगी उन्होंने धरती की चमड़ी पर जीवन-गाथाएँ उकेरी हैं हवाएँ बहती हैं कि प्यार उफन रहा है धीमी बयार और तेज झोंके जब जैसा सही है देखो, धरती फिलहाल नींद में है जैसे मैंने दुलार कर सुला द...

हाल में प्रकाशित कुछ और कविताएँ

मुझमें मुझमें यह कौन बैठा है जीत का दर्प जिसके ज़हन में बैठा है वह चलता है जैसे कोई मशीन चलती है कदम दर कदम वह धरती को जीतना चाहता है जीतकर शहर बसाऊँगा नाम फैलाऊँगा जो उजड़ गए उन बच्चों की माँओं की बद-दुआएँ जमा करता रहूँगा किन दुखों ने मुझे ऐसा बनाया है क्या कोई कंधा नहीं था जब मैं रोना चाहता था शौक से यायावरी क्यों न कर पाया क्यों न चल पड़ा कभी बसे हुए गाँव-शहरों में से गुजरते जंगलों, पहाड़ों में से ऊबड़-खाबड़ ज़मीं के साथ न बतियाया न बैठा, पल भर चैन से संगीत न सुना न सुना कि हवा की साँय-साँय में कोई गा रहा है आरोह-अवरोह गाते हुए सैर न किया परिंदों, जानवरों से प्यार न किया तस्वीरें न बनाई वे इलाके, जहाँ मौत के खेल खेल चुका हूँ, कोई मेरे नहीं रहेंगे औरों की क्या, मैं खुद अपना नहीं रहूँगा कभी जागना होगा कुछ और बनकर **** बोझ फ़ोन पर, ख़त लिखकर, कभी न नहीं कहा कहते हुए जैसे अपने ही कान दुखते हैं अपनी ज़ुबान में कभी न नहीं कह पाया कभी कहा तो ऐसी ज़ुबान में कहा कि खुद समझ न पाया तर्जमा किया तो न न नहीं रहा कुछ और कहता गुजर गया कभी सोचा कि इस पल नहीं फ...

लेनर्ड कोहेन का बूगी स्ट्रीट

एक महीना हो गया - इसे फेसबुक पर पोस्ट किया था। उन्माद के माहौल में हम प्यार की बातें करेंगे। साल भर से कोशिश में हूँ कि मेरे प्रिय गीतकार लेनर्ड कोहेन के इस गीत का तर्जुमा कर लूँ। मुश्किल है, अब तक जहाँ हूँ, पेश है - ऐ रोशनी के ताज, साँवले यार कभी न सोचा कि मिलेंगे एक बार आ चूम लें, कि बस यही दो पल लौटा हूँ मैं मीनाबाज़ार एक घूँट जाम, यह नशीला धुँआ, कि बस यही दो पल। मैंने हर कोना सँवारा है साज बजने को है बेकल शहर से आते हैं बुलावे महफिल कर रही है इंतज़ार मैं वही हूँ, और जो हूँ, लौटा हूँ मीनाबाज़ार ऐ दिलरुबा, मुझे याद हैं वो खुशियाँ वो साथ नहाना वो झरना वो दरिया तेरे हुस्न का जादू, मेरे हाथों में तेरे पाँव तर वो तेरा मुझे ले चलना जवाँ मैं चला था प्रीतनगर ऐ रोशनी के ताज, साँवले यार। कभी न सोचा कि मिलेंगे एक बार आ चूम लें, कि बस यही दो पल लौटा हूँ मैं मीनाबाज़ार ऐ दुनिया, फ़िक्र न कर हवा में फुनगे हैं हम प्यार ही कायनात है प्यार में फना हैं हम रगों में बहते ख़ूँ के नक्श दरबदर बयां हैं कोई बताए तो हमें कि मीनाबाज़ार क्या है ऐ रोशनी के ताज, साँवले...

हाल की कुछ गद्य कविताएँ

इधर कई सारी  प्रकाशित कविताएँ फेसबुक पर पोस्ट करता रहा हूँ। अब थकने लगा हूँ, फेसबुक और ब्लॉग दोनों पर पोस्ट कर पाने में देर हो रही है। समालोचन व्लॉग पत्रिका पर (2020)  1 इंसानियत एक ऑनलाइन खेल है, जिसमें बहस और हवस की स्पर्धा है. सारी रात कोई सपने में चीखता है कि चाकू तेज़ करवा लो. औरत घर बैठे मर्द को देख कर खुश होना चाहती है. घर बैठा मर्द औरत को पीटता है. सपनों के तेज़ चाकू हवा में उछलते हैं. उनकी चमक में कभी प्यार बसता था. सड़कों पर कुत्ते भूखे घूम रहे हैं. कुत्तों से प्यार करने वाले इंटरनेट पर चीख रहे हैं. इंसान कुत्ता नहीं है. कानूनन इंसान सड़क पर भूखा घूम नहीं सकता. इंसान ने तय किया है कि वह कुत्ता है. अपनी टोली बनाकर पूँछ हिलाते हुए लोग घूम रहे हैं. औरत और मर्द भूल चुके हैं कि वे औरत और मर्द हैं. कोई हिलाने के लिए पूँछ और कोई दिखाने के लिए दाँत ढूँढ रहा है. इंसानियत एक ऑनलाइन खेल है, इंसान इस बात से नावाकिफ है कि वह महज खिलाड़ी है. खेल में पूँछ हिलाता कुत्ता खूंखार हो सकता है. चाकू की चौंध कब रंग दिखाएगी, यह इतिहास की किताबों में लिखा है.   2 सारा रोना...