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Showing posts from September, 2015

जब निर्मम हो जाओगी

और और सेरा टीसडेल -  The Look Strephon kissed me in the spring, Robin in the fall, But Colin only looked at me And never kissed at all. Strephon’s kiss was lost in jest, Robin’s lost in play, But the kiss in Colin’s eyes Haunts me night and day. नज़र बहारों में सत्तू ने चूमा था मुझे , पतझड़ में रब्बी , पर किसना ने नज़र उठाकर देखा भर था , लेकिन नहीं चूमा भर कभी।  सत्तू का बोसा हँसी हँसी भूल गया , रब्बी का खेल खेल में , पर किसना की नज़रों का चुंबन , तड़पाए दिन रात खयाल में। Faults They came to tell your faults to me, They named them over one by one; I laughed aloud when they were done, I knew them all so well before,— Oh, they were blind, too blind to see Your faults had made me love you more. खामियाँ वे मुझे बताने आए खामियाँ तुम्हारी , एक एक कर सुनाईं सारी ; सब कह चुके तो मैं हँसी भारी , मुझे तो सब का पहले से पता था , - ओह , उनकी नज़रें थीं धुँधली , बहुत ही धुँधली तुम्हारी खामियों ने ही त...

मैं हूँ चकमक और आग

पिछले रविवार को भोपाल में 'जज़्बा' और 'विकल्प' के युवा साथियों द्वारा आयोजित कार्यक्रम में राजेश जोशी और मैंने कविताएँ पढ़ीं और कुछ बातचीत की। भोपाल और आसपास के कॉलेज से आए कई युवाओं ने अपनी एक-दो कविताएँ भी पढ़ीं। कविताओं का स्तर हताशाजनक था। बहरहाल यह अच्छा था कि करीब पचास युवा आए थे और कोई चार घंटे तक कार्यक्रम चला।  सेरा टीसडेल की दो और कविताएँ यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ, जिनका अनुवाद 'सदानीरा' में आया है -  Moonlight It will not hurt me when I am old,      A running tide where moonlight burned           Will not sting me like silver snakes; The years will make me sad and cold,           It is the happy heart that breaks. The heart asks more than life can give,      When that is learned, then all is learned;           The waves break fold on jewelled fold, But beauty itself is f...

मैं ढालूँगा ईश्वर को अपने ही साँचे में

मेरा ईश्वर मैं जब नंगा होता हूँ उस वक्त मैं सबसे खूबसूरत होता हूँ मेरी माँ की छातियाँ बहुत खूबसूरत हैं मुझे हल्का - सा याद है बाप को सबसे खूबसूरत देखा था मैंने जब देखा उसे वस्त्रहीन सड़क पर घूमते जानवरों पक्षियों को नंगा ही देखा है कोट पहने कुत्ते मुझे कोटधारी अफसरों जैसे लगते हैं आषाढ़ में उन्मत्त जानवर क्या कर लेते जब दहाड़ते बादल और उन पर लदे होते कपड़े ऐ चित्रकारो मुझे मत दो वह ईश्वर जो होता शर्मसार कपड़े उतर जाने से मैं ढालूँगा ईश्वर को अपने ही साँचे में जो फुदक सके चिड़ियों की तरह मेरी तरह प्यार कर सके रो सके प्रेम के उल्लास में खड़ा हो सके मेरे साथ उलंग हुसेन के चित्रों में। ( जलसा पत्रिका : 2010; 'नहा कर नहीं लौटा है बुद्ध' में संकलित)

गीत गाते रहेंगे। हम पूछते रहेंगे

आज दैनिक भास्कर के 'पंजाब रसरंग' मैगज़ीन में प्रकाशित -  हम परचम बुलंद रखेंगे ग़लत या सही , शोर है कि मुल्क तरक्की पर है। कैसी तरक्की ? तक्नोलोजी की तरक्की। स्मार्ट सिटी और बुलेट ट्रेन वाली तरक्की। बड़ा अजीब वक्त है। हाल के एक ब्लॉग पोस्ट में बनारस के किसी संकठा जी का कथन है - '' इसको कुछ करने का जरूरते नहीं पड़ेगा। पब्लिक खुदै इसके विरोधियों का सफाया कर देगी। समझ रहे हैं न .. । '' हम समझ रहे हैं। आप चुनावी भाषण देते रहें। संसद में भी , मैदानों में भी , बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक सबको बेवकूफ बनाते रहें। कोई कहता है कि कुछ लिखें। कलबुर्गी। बांग्लादेश में ब्लॉगर्स के कत्ल। दाभोलकर आदि भी। ' आदि ' । ऐसा वक्त है। लोग मर रहे हैं। उनकी हत्याएँ हो रही हैं। हम इतने नाम याद नहीं रख सकते। वे दाभोलकर आदि हैं। वे पढ़े - लिखे हुनरमंद काबिल लोग थे। अपने लेखन , व्याख्यानों आदि से समकालीन भारतीय बौद्धिक चिंतन में उन्होंने स्थायी जगह बनाई थी। कलबुर्गी ने तो सौ से ज्यादा किताबें लिखी थीं। उन्हें कई राज्य - स्तरीय और राष्ट्रीय पु...

घर छोड़ते हैं जब घर रहने नहीं देता

हलद्वानी के अशोक पांडे की दीवार पर यह कविता दिखी (साझा की गई पोस्ट्स की शृंखला में), तो मैंने तुरत फुरत अनुवाद कर डाला। हाल में हुई घटनाओं से जुड़ी है। "HOME," by Somali poet Warsan Shire: no one leaves home unless home is the mouth of a shark you only run for the border when you see the whole city running as well your neighbours running faster than you breath bloody in their throats the boy you went to school with who kissed you dizzy behind the old tin factory is holding a gun bigger than his body you only leave home when home won't let you stay. no one leaves home unless home chases you fire under feet hot blood in your belly it's not something you ever thought of doing until the blade burnt threats into your neck and even then you carried the anthem under your breath only tearing up your passport in an airport toilets sobbing as each mouthful of paper made it clear that you wouldn't be going back. you have to understand, that no one puts their childr...

रातों को गिनते थे दिन

खबर उस आदमी को मार देंगे यह खबर पुरानी थी उसे मारना ग़लत होगा यह खबर धीरे - धीरे बढ़ी दिन - दिन खबर की रफ्तार बढ़ती चली और तब अहसास होने लगा कि कोई खबर है वरना आजकल आदमी को मारना खबरों जैसी खबर कहाँ होती है यह उस ऱफ्तार का असर था जैसे कोई इंतज़ार करता है नए चाँद का हम सब इंतज़ार में थे कि वह मार दिया जाएगा जो दाढ़ी नहीं बनाते वे सोचने लगे कि दाढ़ी बना लेनी चाहिए दाढ़ी बनाने वाले भूल गए कि उनको दाढ़ी बनानी है अजीब हालात थे कि दिन गुजरते जा रहे थे और हम रातों को गिनते थे दिन जिन्हें दिखलाना था कि ग़लत होना है होकर रहेगा वे इंतज़ार में थे जो खौफ़ज़दा थे कि ग़लत होना है होकर रहेगा वे इंतज़ार में थे इस तरह एक दिन आया वह दिन हम सोकर उठे तो घोषणा हुई कि उसे मारा जा रहा है फिर वह वक्त गुजरा कि वह मार दिया गया वह दिन गुजरा जिन्हें दिखलाना था कि ग़लत होना है होकर रहेगा वे सो गए जो खौफ़ज़दा थे कि ग़लत होना है होकर रहेगा वे सो गए। -उद्भावना (201...