मेरा ईश्वर
मैं
जब नंगा होता हूँ
उस
वक्त मैं सबसे खूबसूरत होता
हूँ
मेरी
माँ की छातियाँ बहुत खूबसूरत
हैं
मुझे
हल्का-सा
याद है
बाप को सबसे खूबसूरत देखा था
मैंने
जब
देखा उसे वस्त्रहीन
सड़क
पर घूमते जानवरों पक्षियों
को नंगा ही देखा है
कोट
पहने कुत्ते मुझे कोटधारी
अफसरों जैसे लगते हैं
आषाढ़
में उन्मत्त जानवर क्या
कर लेते
जब
दहाड़ते बादल और उन पर लदे
होते कपड़े
ऐ
चित्रकारो मुझे मत दो वह ईश्वर
जो
होता शर्मसार कपड़े उतर जाने
से
मैं
ढालूँगा ईश्वर को अपने ही
साँचे में
जो
फुदक सके चिड़ियों की तरह
मेरी
तरह प्यार कर सके
रो
सके प्रेम के उल्लास में
खड़ा
हो सके मेरे साथ
उलंग
हुसेन के चित्रों में।
(जलसा
पत्रिका :
2010; 'नहा कर नहीं लौटा है बुद्ध' में संकलित)
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