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मैं हूँ चकमक और आग

पिछले रविवार को भोपाल में 'जज़्बा' और 'विकल्प' के युवा साथियों द्वारा आयोजित कार्यक्रम में राजेश जोशी और मैंने कविताएँ पढ़ीं और कुछ बातचीत की। भोपाल और आसपास के कॉलेज से आए कई युवाओं ने अपनी एक-दो कविताएँ भी पढ़ीं। कविताओं का स्तर हताशाजनक था। बहरहाल यह अच्छा था कि करीब पचास युवा आए थे और कोई चार घंटे तक कार्यक्रम चला। 

सेरा टीसडेल की दो और कविताएँ यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ, जिनका अनुवाद 'सदानीरा' में आया है - 

Moonlight

It will not hurt me when I am old,
     A running tide where moonlight burned
          Will not sting me like silver snakes;
The years will make me sad and cold,
          It is the happy heart that breaks.

The heart asks more than life can give,
     When that is learned, then all is learned;
          The waves break fold on jewelled fold,
But beauty itself is fugitive,
          It will not hurt me when I am old.

चाँदनी

बूढ़ी होने का मुझे कोई दुःख होगा नहीं,
धधकी चाँदनी में उमड़तीं लहरें
रुपहले विषधरों-सी नहीं डँसेंगी मुझे;
गुजरते हुए वक्त से ठंडी और ग़मगीन होती जाऊँगी मैं -
खुशहाल दिल ही टूटता है जो ।

सदा ही ज़िंदगी की सकत से दिल अधिक चाहता है,
यह समझ लो तो सब समझ लोगे;
लहरें सुनहरी तहों पर तहें बनाती रहतीं,
- हुस्न तो भगोड़ा है पर,
बूढ़ी होने का मुझको कोई दुःख नहीं होगा।

What Do I Care

What do I care, in the dreams and the languor of spring,
That my songs do not show me at all?
For they are a fragrance, and I am a flint and a fire,
I am an answer, they are only a call.

But what do I care, for love will be over so soon,
Let my heart have its say and my mind stand idly by,
For my mind is proud and strong enough to be silent,
It is my heart that makes my songs, not I.

मुझे क्या फर्क पड़ता है
मुझे क्या फर्क पड़ता है कि बहार के सपनों और नाज़ुकी में
अपने ही गीतों में कहीं नहीं हूँ मैं?
उनमें खुशबू है, और मैं हूँ चकमक और आग,
वे तो पुकार भर हैं और जवाब हूँ मैं।

मुझे क्या फर्क पड़ता है, इश्क का दौर जल्दी ही गुज़र जाए,
अक्ल हो बेकार, दिल की ही सुनूँगी मैं,
मेरे मन में गरूर है और इतनी ताकत कि वह चुप रहे
मेरे गीत मेरा दिल लिखा करता है, मैं तो नहीं।

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