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Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Thursday, September 03, 2015

रातों को गिनते थे दिन


खबर

उस आदमी को मार देंगे यह खबर पुरानी थी

उसे मारना ग़लत होगा यह खबर धीरे-धीरे बढ़ी

दिन-दिन खबर की रफ्तार बढ़ती चली

और तब अहसास होने लगा कि कोई खबर है

वरना आजकल आदमी को मारना

खबरों जैसी खबर कहाँ होती है

यह उस ऱफ्तार का असर था

जैसे कोई इंतज़ार करता है नए चाँद का

हम सब इंतज़ार में थे कि वह मार दिया जाएगा


जो दाढ़ी नहीं बनाते वे सोचने लगे कि दाढ़ी बना लेनी चाहिए

दाढ़ी बनाने वाले भूल गए कि उनको दाढ़ी बनानी है

अजीब हालात थे कि दिन गुजरते जा रहे थे

और हम रातों को गिनते थे दिन


जिन्हें दिखलाना था कि ग़लत होना है होकर रहेगा

वे इंतज़ार में थे

जो खौफ़ज़दा थे कि ग़लत होना है होकर रहेगा

वे इंतज़ार में थे


इस तरह एक दिन आया वह दिन

हम सोकर उठे तो घोषणा हुई कि उसे मारा जा रहा है

फिर वह वक्त गुजरा कि वह मार दिया गया

वह दिन गुजरा

जिन्हें दिखलाना था कि ग़लत होना है होकर रहेगा

वे सो गए

जो खौफ़ज़दा थे कि ग़लत होना है होकर रहेगा

वे सो गए।

-उद्भावना (2015)

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2 Comments:

Blogger Neelabh Ka Morcha said...

लाल्टू का अन्दाज़, निख़ालिस

8:32 PM, September 03, 2015  
Blogger Neelabh Ka Morcha said...

कमेण्ट देने में भी इतनी क़वायद है कि लहना सिंह भी चकरा गया

8:33 PM, September 03, 2015  

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