अदना पर असाधारण इंसान (आज 'दैनिक भास्कर' की 'रसरंग' पत्रिका में प्रकाशित) मोहनदास करमचंद गाँधी की हत्या हुए तकरीबन सत्तर साल होने को हैं। वक्त के साथ गाँधी की छवि और उनका महत्व बदलता रहा है। अपने देश में ही नहीं , अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गाँधी को आज महान चिंतक या दार्शनिक माना जाता है। अहिंसा पर उनके खयाल और प्रयोगों की वजह से वे बीसवीं सदी के भारत की अनोखी देन बन गए हैं। मानव के विकास में अगर किसी एक धारणा का महत्व समय के साथ बढ़ा है , वह अहिंसा है। एक ज़माना था जब गाँधी की गंभीर आलोचना होती थी। नांबूद्रीपाद और हीरेन मुखर्जी जैसे चिंतकों ने आज़ादी की लड़ाई में गाँधी की भूमिका पर और आर्थिक - राजनैतिक ताकतों के बीच उनकी जगह पर किताबें लिखीं। संघ परिवार का दुष्प्रचार भी कुछ हद तक प्रभावी था। उनका कहना है कि गाँधी हिंदुओं के हितों के खिलाफ थे , इसलिए गोडसे का उनको कत्ल करना वाजिब था। गाँधी की छवि में बड़ा गुणात्मक बदलाव सत्तर के दशक से हुआ। अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन के नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने बार - बार उनका नाम लि...