Skip to main content

Posts

Showing posts from January, 2015

अदना शख्स बड़ी छलाँगें

अदना पर असाधारण इंसान (आज 'दैनिक भास्कर' की 'रसरंग' पत्रिका में प्रकाशित) मोहनदास करमचंद गाँधी की हत्या हुए तकरीबन सत्तर साल होने को हैं। वक्त के साथ गाँधी की छवि और उनका महत्व बदलता रहा है। अपने देश में ही नहीं , अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गाँधी को आज महान चिंतक या दार्शनिक माना जाता है। अहिंसा पर उनके खयाल और प्रयोगों की वजह से वे बीसवीं सदी के भारत की अनोखी देन बन गए हैं। मानव के विकास में अगर किसी एक धारणा का महत्व समय के साथ बढ़ा है , वह अहिंसा है। एक ज़माना था जब गाँधी की गंभीर आलोचना होती थी। नांबूद्रीपाद और हीरेन मुखर्जी जैसे चिंतकों ने आज़ादी की लड़ाई में गाँधी की भूमिका पर और आर्थिक - राजनैतिक ताकतों के बीच उनकी जगह पर किताबें लिखीं। संघ परिवार का दुष्प्रचार भी कुछ हद तक प्रभावी था। उनका कहना है कि गाँधी हिंदुओं के हितों के खिलाफ थे , इसलिए गोडसे का उनको कत्ल करना वाजिब था। गाँधी की छवि में बड़ा गुणात्मक बदलाव सत्तर के दशक से हुआ। अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन के नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने बार - बार उनका नाम लि...

अमावस तुमसे पूछता हूँ

रुक जाओ अमावस तुमसे पूछता हूँ क्या मैं दुनिया के सभी पीड़ितों के लिए रो सकता हूँ मेरे गीत बेसुरे कैसे हो गए कैसे लटका रह गया मैं वक्त के झूले में स्मृति में रह गईं बिलखती स्त्रियाँ जिनसे प्रेम किया क्या वे जीते जी तारे बन गईं अँधेरी रात मैं पूछता हूँ इस देश में क्या प्रेम पर बातचीत सही है क्या सही है कि हम रंगों पर बात करें तुम गुजर जाओगी आएगी पंख फड़फड़ाती सुबह और दरख्तों पर लटकी होंगी वे रुक जाओ थोड़ी देर कि बेटियों को आखिरी लोरी सुनाकर सुला दूँ लिख सकूँ गीत कि वे जागें तो पढ़ें बेहतर सपनों के खाके मैं सवाल बन सकूँ रुक जाओ मेरी आखिरी रात रुक जाओ। ( समकालीन भारतीय साहित्य : 2014)

कितनी बार चाय पी दिन में

कितने    कितनी बार चाय पी दिन में सपनों को दरकिनार कर कितना न कहने की कोशिश में कितनी बार बहुत कुछ कहते रहे बिना पलक झपके कहते रहे झूठ कितने पल गँवाए गिनो तो जरा लगाओ हिसाब लाख एक या दो - चार दो जनों के झूठ के पल इतने हो सकते हैं यह जानकर तुम अपने और मैं अपने ग्रह में नज़रें झुकाए बैठे हैं इतनी दूर से मेरी आँखों से तुम्हारी नज़र नहीं टकराती विड़ंबना कि गँवाए उन पलों ने बाँधा हमें घनचक्कर से काटते रहे अनगिनत सूर्यों के चक्कर जानते कि मुझे तुम्हारी और तुम्हें मेरी ज़रूरत है अब नींद भरी आँखों से परस्पर को देखते हैं जैसे किसी मायालोक में हमारे उठे हाथ छू नहीं पाते एक दूजे को कहना बस इतना कितनी बार चाय पी दिन में। ( समकालीन भारतीय साहित्य : 2014)

खो गए दुःख सो गए

दुःखों के सागर से चाँद जुटा हुआ निकलने की आखिरी कोशिश में हूँ हँसता तभी आता चाँद सागर से निकलता देखो कहना मत किसी से कि मैं आया तुम्हारे पास सिर्फ तुम्हारे लिए जब चाहूँगा आऊँगा खिलानी होगी खीर कहता लगा जैसे कोई इंसान हर रोज हल्का दिमाग हल्की बातें मिलता पर वह चाँद ही सागर से निकला था धब्बे ही धब्बे उस पर सदियों के सुलगते घाव रह रह अपने सूखे हाथों से सीना जो टूटने को था थामता जब - चाँद , आराम कर लो दो पल - कहा वह उछला पर नहीं उछला हँसा पर नहीं हँसा अभी ज़रुरत है कहीं अधिक मेरे होने की - बोला इन घावों को मत सोचो ये तुम्हारे ही हैं माल - मता शब्दों का प्रवाह मैदानों में उमड़ रहा भूत प्रेत उसे ठिठक कर देखते उस की ठंडक में भरोसा फैलता कि फिर सुबह होगी और तब आई नींद परी खो गए दुःख सो गए चाँद और सुबह बदन को धो गए। ( समकालीन भारतीय साहित्य : 2014)

सारे प्रेम विलीन हो रहे

सहे जाते हैं अब बहुत कुछ सहा जाता है हर दूसरे दिन कोई जाते हुए कह जाता है चुका नहीं अभी हिसाब तुम भी आओ हम खाता खोले रखेंगे अपना कुछ चला गया पहले ऐसा सालों बाद कभी होता था अब सहता हूँ हर दिन खुद का गुजरना जड़ गुजरती दिखती कभी तो कभी तना हाथ हिलाता है एक एक कर सारे प्रेम विलीन हो रहे हैं फिर भी सहे जाते हैं खुद के बचे का बचा रहना छिपाए हुए उन सबको जो गए और जो जा रहे हैं। ( समकालीन भारतीय साहित्य : 2014)

इस जंग में ताक़त लगाइए

यह जंग है , इस जंग में ताक़त लगाइए ( जनसत्ता में 16 जनवरी 2015 को प्रकाशित) हाल की दो बड़ी घटनाएँ खासी बहस में रही हैं। आमिर खान की फिल्म पी के पर हर किसी को कुछ कहना है। हिंदी के एक वरिष्ठ कवि से लेकर सत्तासीन दल के साथ जुड़े संघ परिवार के उग्रवादी संगठनों के सदस्यों तक हर किसी ने कुछ कहना है। दूसरी घटना मुंबई में भारतीय विज्ञान महासभा के सम्मेलन में किसी कैप्टेन बोदास का अतीत में भारत में विमानों के उड़ने को लेकर परचा पढ़ा जाना थी। ये दो घटनाएँ अलग लगती हैं , पर दोनों के साथ वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य का संबंध है और गहराई से सोचने पर दोनों इकट्ठी चरचा की माँग रखती हैं। पी के को लेकर बजरंग दल आदि कुछ संगठनों के शोर मचाने के बावजूद आम लोगों ने इसे खूब देखा। इसके राजनैतिक महत्व को समझते हुए बिहार और यू पी की सरकारों ने इस करमुक्त घोषित कर दिया। फिल्म के प्रति लोगों की भावनाएँ क्या हैं , यह बॉक्स आफिस में हिट होना ही दिखला देता है। आज के जमाने में जब लाखों लोग मुफ्त में चुराई हुई फिल्म देखते हैं , एक फिल्म का करोड़ों कमा लेना यह दिखलाता है कि लोगों को फिल्म...

हे साधुजन, अपनी नज़र साफ करो

पिथागोरस का प्रमेय - सब्ब बेद में बा ( बांग्ला अखबार ' एई समय ' मेंप्रकाशित आशीष लाहिड़ी के लेख का अनुवाद।  आशीष लाहिड़ी नैशनल काउंसिल ऑफ साइंस म्युज़ियम में विज्ञान के  इतिहास के अध्यापक हैं ) वैज्ञानिक मेघनाद साहा कम उम्र में ही ताप - आधारित आयनीकरण की खोज  कर दुनिया भर में प्रख्यात हो चुके थे। उनका मन हुआ कि बचपन के गाँव  जाकर आम लोगों से बातचीत कर आएँ। एक बूढ़े वकील ने उनसे पूछा , ' बेटा ,   का खोजा है तुमने कि एतना नाम हो गया। ' मेघनाद ने समझाने की कोशिश की  कि सूरज के प्रकाश में रंगों का विश्लेषण कर वहाँ मौजूद या जो मौजूद नहीं हैं ,     उन तत्वों को जानने का तरीका निकाला है। सुनकर उम्रदराज वकील साहब  बोले , ' हँः , इसमें नया का है , सब्ब बेद में बा। ' बीजेपी के सत्ता में आने के बाद यह ' सब्ब बेद में बा ' बात काफी फैल चुकी है।  ताप - आधारित आयनीकरण की जगह पिथागोरस के प्रमेय या अंग  ट्रांस्प्लांटेशन ( गणेश इसके प्रमाण हैं ) ने ले ली है। एन आर आई की ताकत ...