रुक
जाओ
अमावस
तुमसे पूछता हूँ
क्या मैं दुनिया के सभी पीड़ितों के लिए रो सकता हूँ
मेरे गीत बेसुरे कैसे हो गए
कैसे लटका रह गया मैं
वक्त के झूले में
स्मृति में रह गईं
बिलखती स्त्रियाँ
जिनसे प्रेम किया
क्या वे जीते जी तारे बन गईं
अँधेरी रात मैं पूछता हूँ
इस देश में
क्या प्रेम पर बातचीत सही है
क्या सही है कि हम रंगों पर बात करें
तुम गुजर जाओगी
आएगी पंख फड़फड़ाती सुबह
और दरख्तों पर लटकी होंगी वे
रुक जाओ थोड़ी देर कि
बेटियों को आखिरी लोरी सुनाकर
सुला दूँ
लिख सकूँ गीत
कि वे जागें तो पढ़ें बेहतर सपनों के खाके
मैं सवाल बन सकूँ
रुक जाओ मेरी आखिरी रात
रुक जाओ।
(समकालीन
भारतीय साहित्य :
2014)
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