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Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Saturday, January 24, 2015

अमावस तुमसे पूछता हूँ


रुक जाओ


अमावस
तुमसे पूछता हूँ
क्या मैं दुनिया के सभी पीड़ितों के लिए रो सकता हूँ


मेरे गीत बेसुरे कैसे हो गए
कैसे लटका रह गया मैं
वक्त के झूले में
स्मृति में रह गईं
बिलखती स्त्रियाँ
जिनसे प्रेम किया


क्या वे जीते जी तारे बन गईं
अँधेरी रात मैं पूछता हूँ
इस देश में
क्या प्रेम पर बातचीत सही है
क्या सही है कि हम रंगों पर बात करें


तुम गुजर जाओगी
आएगी पंख फड़फड़ाती सुबह
और दरख्तों पर लटकी होंगी वे


रुक जाओ थोड़ी देर कि
बेटियों को आखिरी लोरी सुनाकर
सुला दूँ
लिख सकूँ गीत
कि वे जागें तो पढ़ें बेहतर सपनों के खाके


मैं सवाल बन सकूँ
रुक जाओ मेरी आखिरी रात
रुक जाओ।
(समकालीन भारतीय साहित्य : 2014)

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1 Comments:

Blogger Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

1:52 PM, January 24, 2015  

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