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Showing posts from July, 2019

मैं वही हूँ

पाँच कविताएँ 1 जाते हुए अच्छा या चलूँ जैसा कुछ कहा था तुमने आने वाले तूफानों से अंजान वह लम्हा था हम अलग - अलग यात्राओं पर निकल पड़े थे मैंने ज़हन में सँभाल रख ली थीं तुम्हारी नाज़ुक भंगिमाएँ तुम्हारे चुप - चुप नयन मेरे हर तज़ुर्बे में साथ चल ते थे मेरी आँखों में हसरत बस गई थी हर मंज़र में ख़ून दौड़ता था हर सिम्त तुम्हारी महक थी दरख्तों के पत्तों में बेसब्र सिहरन थी हर पल लगता था कि कहीं से देख रही हो मुझे कि मुझे धरती पर खुला छोड़ने के लिए बेताब हो तुम जितना कि मैं तुमसे बँधा रहना चाहता था या कि तुम भी मुझे बाँध रखना चाहती थी और मैं तुम्हें पँखुड़ियों सा खोलना चाहता था ( तुम्हारी चुप आँखें कह रही हैं मुझे कि मैं वही हूँ कितना चाहा था मैंने तुम्हें इसका हिसाब लगा रहा हूँ ) 2 कल शाम देर तक बिजली कड़कती रही दूर चट्टानों पर बादल बिछ गए थे गीली हवा थी और मैं प्यासा था तुम्हारे बिन मेरा बदन बेजान - सा फर्श पर टिका था गरज - गरज बादल अँधेरे की चुप्पी...

चंद्रयान के बहाने कुछ बातें

चंद्रयान -II (16 जुलाई 2019 को 'राष्ट्रीय सहारा' में छपा लेख) आधुनिक विज्ञान के व्यापक अध्ययन और शोध के क्षेत्रों में से एक अंतरिक्ष - विज्ञान है। पुराने जमाने में धरती पर से ग्रहों - नक्षत्रों को देखते हुए ज्योतिर्विज्ञानियों ने अंतरिक्ष के बारे में जानकारी पाने की कोशिशें कीं। बीसवीं सदी तक इतनी जानकारी मिल चुकी थी कि इंसान अंतरिक्ष में छलाँग लगाने के लिए तैयार हो गया। पिछले सात दशकों से पहले रुस , अमेरिका और अब कई और मुल्कों में धरती से निकल कर अंतरिक्ष में जा कर शोध करने की कोशिशें जारी हैं। चाँद पर पहली बार अमेरिकी यान अपोलो 11 उतरा था। चाँद पर कदम रखने वाले पहले इंसान नील आर्मस्ट्रॉंग ने इसे एक इंसान का छोटा कदम और मानवता की लंबी छलाँग कहा था। भारत में अंतरिक्ष शोध संस्थान ने पिछली सदी में मौसम की जानकारी के लिए रॉकेट - यानों को आकाश में भेजा और इस सदी में चाँद और मंगल तक यान भेजे गए। हाल में चाँद तक जाने के लिए चंद्रयान -II को तैयार किया गया है। इसे रविवार 14 जुलाई को आकाश में भेजा जाना था , पर कुछ खामियों की वजह से भेजने में कुछ और देर का निर्णय लिया गय...

बहता है आब-ए-हयात हमेशा नीचे की ओर

रोशनी मिली अपने ही अँधेरे में ताज़िंदगी इंतज़ार रहा कि कभी रोशनी होगी कारवां गुजरता रहा बीहड़ों से लहरें कभी स्थिर कभी उमड़ती रहीं धरती के हर छोर पर घूमा कि रोशनी होगी रोशनी मिली अपने ही अँधेरे में देर बहुत हुई यह जानने में कि यही रोशनी है कि वक्त का तीर वाकई इकतरफा है बहता है आब - ए - हयात हमेशा नीचे की ओर क्या कुछ होना था कौन जानता है जो हुआ वही है यही रोशनी है कि अँधेरे में रहे अब तक कि जहाँ भी सुकून था उसे छोड़ बेकरारी में जिए रोशनी की लहरें आती है कि जो है वह सब अँधेरे में है। - ( पहल - 2019) I found light in my own darkness I waited all my life for it to be light We traveled through wilderness Waves came around calm at times and turbulent elsewhile I went to all corners of the world to seek light I found light in darkness within me It took a long while to see that it was light That the arrow of time is indeed directed That the waters of life always flow downhill Who knows what was to happen ...

ऐसी बातें लिखा करो

मिट जाएँ लफ्ज़ ऐसा लिखो कि लोग लड़ें तो बच्चों की तरह लड़ें आज लड़ें तो कल फिर दोस्त बन जाएँ लिखो कि फ़र्क देश धर्म के नहीं रहे खत्म है जंगों का कारोबार और सिपाहियों की भर्ती हो रही विभाग में जिसका नाम है प्यार क्यों लिखते हो कि कोई किसी को प्यार करने से रोकता है लिखो ताज़ा खबर कि खाप पंचों ने कह दिया है खुले आम प्यार करेंगे नौजवान कि स्त्रियों का अपमान करने वालों को कानूनी सजा के अलावा कठिनतम संस्कृत श्लोक रटने पड़ेंगे एक दर्जन मत लिखो कि बजरंगियों से हो गए दुखी लिखो कि दंगाई हुक्काम ने रोती माँओं से है माफी माँग ली और कि अवाम ने उन्हें तीन जन्मों तक सियासत न करने की सजा दे दी ऐसी बातें लिखा करो कि निकल आए हर कट्टरपंथी के अंदर छिपा माइकेल जैक्सन और पेश करे भँगड़ा नाचन कि सियासी पार्टियों के मुंडे ताज़ा कविताएँ पढ़ते हुए रोने लगें पकड़कर कान और एकजुट होकर गाएँ अजान ऐसा ही लिखो कि प्यार जो उमड़ता है ज़हन में बना डाले एक नई दुनिया मिट जाएँ सरहदें और स्कूलों में मास्टर लग जाएँ फौज के सिपाही मिट जाएँ लफ्ज़ ह...

शहर-दर-शहर भटकता हूँ

सब मेरे हो सकते थे वह गाँव मेरा हो सकता था घर जो बिक गया उसके पास खड़ा मैं रो सकता था कहीं तो दर्ज होगा कि हजार साल पहले उस घर में किसके वीर्य में रचा गया मेरे गुणसूत्रों का इतिहास अंबो को मैंने ज़िंदा देखा (* अंबो = दादी ) उसकी मौत की खबर सुनी थी और बापू को रोते देखा था अकेले में चली गई वह छोड़कर हफ्ते भर का अखंड पाठ जो उसकी मौत के कुछ पहले भी एक बार हो चुका था वह गाँव अक्सर मेरे पास आ खड़ा होता है किसी को कहता हूँ तो पता चलता है कि मेरी कविताओं में संस्मरण बढ़ने लगे हैं क्या मैं वक्त से ज्यादा जी चुका हूँ ऐसे सवाल अंबो के ज़हन में नहीं आते थे गाँव की ज़िंदगी की खासियत थी यह बिक गया वह घर जो अकेला कभी नहीं हो सकता था इसलिए लुका - छिपी खेलते हुए हमें वह छिपा लेता था पड़ोस के घरों में वे सब मेरे हो सकते थे आँगन में आम और बबूल के परस्पर हमेशा नाराज़ खड़े पेड़ उपलों की महक पिछवाड़े कबूतरबाज मुकुंदा सब मेरे हो सकते थे शहर - दर - शहर भटकता हूँ सुनता अँधेरी रातों में साँसों का चढ़ना - उ...

एक धुन ज़मीं से उठेगी

धरती मेरे अश्क पी जाएगी मैंने दरख्तों से खूब बातें की हैं हवा के साथ बहता मैं छू आया हूँ पत्तों को बार - बार यह धरती मुझे प्यारी है ; बार - बार इस पर लोटता हूँ जो कुछ जानना ढूँढना है , इसी के सीने पर मुझे मिला है ज़हन के हर तिलिस्म में समाई हुई है मेरी धरती यही जानो - तन मेरी , वतन मेरी , मेरी धरती। किसी भी दिन मैं चला जाऊँगा तो जा कर भी यहीं रहूँगा कायनात के अंजान कोनों से चल कर खुदा  मुझसे  मिलने आएगा मर्सिया पढ़ने मैं कहूँगा कि मेरे माँ - बाप पुरखे सारे इसी धरती की गोद में चले गए उनसे विरासत में मिली मुझे मेरी धरती पंछी नहीं कोई पास तो क्या सारे पंछी मेरे साथ ही चले गए दरख्तों को मेरी हर बात याद है वे झूमते रहेंगे अनंत काल तक कि मैं उनसे बातें करने आया था अब मैं जरा रो लूँ सपनों में रोऊँ या जागकर धरती मेरे अश्क पी जाएगी अकेला नहीं रहूँगा अपने सुख में रोएगी धरती साथ - साथ एक धुन ज़मीं से उठेगी साँसों की , धड़कनों की , प्यार की , मेरा जाना धरती में समाना।  ( पहल - 2019) The Earth Will Swal...