चंद्रयान-II
(16 जुलाई 2019 को 'राष्ट्रीय सहारा' में छपा लेख)
आधुनिक
विज्ञान के व्यापक अध्ययन और
शोध के क्षेत्रों में से एक
अंतरिक्ष-विज्ञान
है। पुराने जमाने में धरती
पर से ग्रहों-नक्षत्रों
को देखते हुए ज्योतिर्विज्ञानियों
ने अंतरिक्ष के बारे में जानकारी
पाने की कोशिशें कीं। बीसवीं
सदी तक इतनी जानकारी मिल चुकी
थी कि इंसान अंतरिक्ष में
छलाँग लगाने के लिए तैयार हो
गया। पिछले सात दशकों से पहले
रुस, अमेरिका
और अब कई और मुल्कों में धरती
से निकल कर अंतरिक्ष में जा
कर शोध करने की कोशिशें जारी
हैं। चाँद पर पहली बार अमेरिकी
यान अपोलो 11 उतरा
था। चाँद पर कदम रखने वाले
पहले इंसान नील आर्मस्ट्रॉंग
ने इसे एक इंसान का छोटा कदम
और मानवता की लंबी छलाँग कहा
था। भारत में अंतरिक्ष शोध
संस्थान ने पिछली सदी में मौसम
की जानकारी के लिए रॉकेट-यानों
को आकाश में भेजा और इस सदी
में चाँद और मंगल तक यान भेजे
गए। हाल में चाँद तक जाने के
लिए चंद्रयान-II को
तैयार किया गया है। इसे रविवार
14 जुलाई
को आकाश में भेजा जाना था,
पर कुछ
खामियों की वजह से भेजने में
कुछ और देर का निर्णय लिया गया
है।
सूक्ष्म
से स्थूल तक कुदरत के हर कतरे
पर तरह-तरह
के सवाल करते हुए जानकारी
इकट्ठी करना विज्ञान का मकसद
है। अंतरिक्ष इसी का एक पहलू
है। पर आम लोग इसे अंतरिक्ष
में साहसी अभियान की तरह और
राष्ट्रीय गौरव के साथ जोड़
कर देखते हैं। चाँद या अंतरिक्ष
में दीगर ग्रहों-नक्षत्रों
के बारे में हमें काफी जानकारी
दूसरे मुल्कों द्वारा भेजे
यानों से मिल चुकी है। हर कोशिश
कुछ और नई जानकारी लाती है।
2008-09 में
भेजे पहले चंद्रयान की खोजों
से चाँद की मिट्टी में धातुओं
की मौजूदगी के अलावा कहीं पानी
(बर्फ)
होने की
संभावना का पता चला है। यह यान
आज भी 250 कि.मी.
की ऊँचाई
पर धरती के चक्कर काट रहा है,
हालाँकि
अब इससे कोई जानकारी नहीं
मिलती है। तक़रीबन पौने चार
टन वजन के चंद्रयान-II को
श्रीहरिकोटा द्वीप के सतीश
धवन अंतरिक्ष केंद्र से उछाला
जाएगा। इसके एक हिस्से का चाँद
के दो बड़े गड्ढों के बीच उतरना
तय है। उतरते ही एक छोटी गाड़ी
चल पड़ेगी, जिसे
रोवर कहते हैं। यह रोवर घूम-फिर
कर चाँद की मिट्टी के नमूने
इकट्ठे करेगा। इस
बार भी हमें चाँद की मिट्टी
में मौजूद रसायनों और ज़मीन-हवा
के बारे में बेहतर जानकारी
मिलेगी। बर्फ है या नहीं,
है
तो कितनी है,
इस
पर फिर से खोज चलेगी। रोवर के
अलावा सौ कि.मी.
की
ऊँचाई से चाँद के चक्कर लगाता
ऑरबाइटर फोटो लेता रहेगा। इस
जानकारी को धरती पर तमाम
वैज्ञानिकों को भेजा जाएगा।
अंतरिक्ष
अभियानों से जो जानकारी आती
है, उसे
लेकर वैज्ञानिकों में कुतूहल
रहता है, शोध
में तरक्की होती है, जैसा
कि दीगर और विषयों में होता
है। पर आम लोगों को महज यह
बतलाया जाता है कि अब भारत
सॉफ्ट लैंडिंग या बिना किसी
झटके के चाँद पर उतरने वाला
चौथा मुल्क बन गया है। चंद्रयान-II
पर कुल
खर्च करीब 1000 करोड़
रुपए का लगा है। करोड़ों रुपए
खर्च कर ऐसे अभियानों में हमें
शिरकत करनी चाहिए या नहीं,
इस पर काफी
बहस चलती रहती है। अभियान को
राष्ट्रीय गौरव के साथ जोड़ना
अपने आप में विरोधाभास है,
क्योंकि
दरअसल विज्ञान का मकसद सारी
मानवता की भलाई है। भारत के
संविधान में वैज्ञानिक सोच
बढ़ाने की बात कही गई है,
जिसका आधार
सवाल करते रहना है। ऐसी सोच
से समाज के निहित स्वार्थों
को खतरा है, क्योंकि
सवालों का सिलसिला कुदरत से
होते हुए समाज तक आ पहुँचता
है। संकीर्ण राष्ट्रवाद की
सोच आज भी धरती के तमाम मुल्कों
में हावी है और विज्ञान की जगह
तक्नोलोजी पर ही ज्यादा जोर
दिया जाता है, जिसके
साथ विज्ञान का सीमित संबंध
है।
देश
के तीन-चौथाई
बच्चे आज भी ऊँची तालीम यानी
कॉलेज तक नहीं पहुँच पाते हैं।
जो पहुँचते हैं, उनमें
से एक चुनिंदा छोटे हिस्से
को विज्ञान पढ़ने और शोध की
ट्रेनिंग का मौका मिलता है।
जाहिर है कि इस तरह ज्यादातर
प्रतिभावान बच्चे विज्ञान
की तालीम लेने से छूट जाते
हैं। हाल ही में केंद्रीय
विज्ञान मंत्री ने कहा है कि
देश में हजारों वैज्ञानिकों
के पद खाली पड़े हुए हैं। सरकार
के वायदों के विपरीत शोध
अनुदानों में कटौती की गई है
और शोध करने वालों को पहले से
अनुमोदित पैसे भी अक्सर महीनों
या सालों बाद मिलते हैं।
राजनैतिक नेता समाज में फैले
गैर-वैज्ञानिक
माहौल को बढ़ाते रहते हैं और
अक्सर पेशेवर वैज्ञानिक या
तो योग्यता के अभाव से या
समझौतापरस्ती से इसमें मदद
करते हैं। हर बार अंतरिक्ष
में कोई रॉकेट या यान भेजने
से पहले शोध संस्थान के निर्देशक
तिरुपति पहँच कर पूजा करते
हैं। इस बार भी मौजूदा निर्देशक
के. शिवन
ने ऐसा ही किया। ऐसा करना ग़लत
नहीं है, क्योंकि
धर्म-संस्कृति
हमारी पारंपारिक जीवन-शैली
का हिस्सा है, पर
ऐन यान भेजने से पहले ऐसा करते
हुए इसे राष्ट्रीय चर्चा का
विषय बनाना यह दिखलाता है कि
जान-बूझकर
विज्ञान से इतर कर्मकांड को
विज्ञान के साथ जोड़ा जा रहा
है।
अंतरिक्ष
हो या कुदरत का और कोई भी पहलू
हो, ऊँचे
स्तर का शोध चलते रहना चाहिए।
जब तक तालीम के खित्ते में
गैरबराबरी रहेगी, यह
संभव नहीं है। लोगों को झूठे
राष्ट्रीय गौरव में उलझाए रख
कर सरकारें अपना गोरखधंधा
चलाती रहती हैं, पर
इससे देश का नुक्सान ही होता
है। समाज में विज्ञान की
जागरुकता कैसे फैले, इस
पर सोचना ज़रूरी है। राष्ट्रीय
स्तर के हर अखबार में कम से कम
हफ्ते में एक बार विज्ञान की
खोजों पर पन्ना निकलना चाहिए।
आज आम पत्रकारिता में अक्सर
ग़लत जानकारियाँ ही आती रहती
हैं और समाज को वैज्ञानिक सोच
के विपरीत अंधविश्वासों की
ओर धकेला जाता है।
जल्दी
ही चंद्रयान-II को
अंतरिक्ष में भेज जाएगा और
नियत समय पर वह चाँद पर पहुँच
जाएगा। यह पूरी
तरह से भारतीय अभियान तो नहीं
होगा,
क्योंकि
इसके पीछे रूसी मदद भी है। ऐसा
कोई भी अभियान किसी एक मुल्क
का नहीं हेता है। अमेरिकी
अंतरिक्ष शोध-संस्था
नासा में भी दुनिया भर से पढ़-लिख
कर आए सैंकड़ों वैज्ञानिक काम
करते हैं,
जिनमें
कई भारतीय भी हैं। उम्मीद यही
है कि चंद्रयान-II
को
भी चाँद पर भारत का झंडा फैलाने
के नज़रिए तक सीमित न रख कर
इसे मानवीय मेधा और तरक्की
के कदम की तरह देखा जाएगा।
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