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Showing posts from August, 2015

शिक्षा का मकसद, सांप्रदायिकता और लोकतंत्र, अदालत की राय आदि

राष्ट्रीय सहारा, हस्तक्षेप में प्रकाशित आलेख -  शिक्षा , सांप्रदायिकता और लोकतंत्र शि क्षा का मकसद क्या है ? बगैर स्कूल गए भी आदमी जी लेता है , हमारे देश में हाल तक अधिकांश लोग ऐसे ही जीते रहे हैं। समाज हर नागरिक के लिए शिक्षा को ज़रूरी मानता है और देश का संविधान सरकार को समाज की इस माँग को पूरा करने को कहता है तो इसके पीछे कारण क्या हैं , उन्हें समझना चाहिए। इंसान अकेले में नहीं जी ता , उसे जीने के लिए समाज और कुदरत के साथ संबंध बनाना पड़ता है। इसलिए उसमें यह जैविक गुण है कि वह अपने बारे में , समाज और कुदरत के बारे में जानकारी इकट्ठी करे। जन्म से भी पहले से ज्ञान पाने की प्रक्रियाओं में वह सक्रिय हो जाता है। भाषा , अहसास , तर्कशीलता और भावनात्मकता जैसे साधनों को वह सीखता और अपनाता है और इनका भरपूर इस्तेमाल करता है। पर अपने आप एक सीमा तक ही हम ज्ञा न पा सकते हैं। जैविक विकास के साथ इंसान ने ऐसी काबिलियत पा ली है कि वह तकनीकी , कलात्मक और दीगर आयामों में ज्ञान बढ़ाता रहा है , जिससे उसे जीवन के नए अर्थ मिलते चले हैं। हर समाज यह चाहता है कि उसके सदस्यों में यह क्...

रे ब्रैडबरी की कहानी पर फिल्म

अमेरिकन कथाकार रे ब्रैडबरी की 1949 में लिखी जिस कहानी ('अगस्त 2026: आएँगी हल्की फुहारें') में मैंने सबसे पहले सेरा टीसडेल की कविता पढ़ी थी और जिसका अनुवाद 'साक्षात्कार' में आया था, आज अचानक उस पर बनी उजबेक निर्देशक नज़ीम तलाएज़ाएव की  फिल्म दिख गई। रोचक है - यहाँ देख सकते हैं (अंग्रेज़ी सबटाइटिल्स हैं) -   https://www.youtube.com/watch?v=WfI69DC_jaw  जैसा मैंने पहले जिक्र किया है, कहानी में नाभिकीय जंग के बाद की स्थिति है और कोई ज़िंदा इंसान नहीं है, पर फिर भी कहानी इंसान के फितरत पर ज़बर्दस्त बयान है। रे ब्रैडबरी की कई रचनाओं पर फिल्में बनी हैं। उनके प्रति रूसी और अन्य फिल्मकारों के विचार यहाँ पढ़िए - http://www.openculture.com/2014/04/watch-soviet-animations-of-ray-bradbury-stories.html विकी पर भी इस कहानी पर काफी सूचना है । 

देखो उसे, कोई माँग लो मन्नत

आज अच्छी खबर यह आई कि मुंबई की अदालत ने सी बी आई को खरी खरी सुना दी और तीस्ता को थोड़ी राहत मिल गई। इस खुशी में सेरा टीसडेल की तीन और कविताएँ - ' सदानीरा ' के ताज़ा अंक में प्रकाशित : The Answer When I go back to earth And all my joyous body Puts off the red and white That once had been so proud, If men should pass above With false and feeble pity, My dust will find a voice To answer them aloud: “Be still, I am content, Take back your poor compassion, Joy was a flame in me Too steady to destroy; Lithe as a bending reed Loving the storm that sways her— I found more joy in sorrow Than you could find in joy.” जवाब जब मैं धरती पर वापस जाऊँ और मेरा सारा मदहोश जिस्म लाली और सफेदी त्याग दे जिस पर कभी गरूर था , ' गर झूठी सतही करुणा लिए मेरे ऊपर से लोग गुजरें , बुलंद जवाब होगा मेरी खाक का उनको : " खामोश , मैं खुश हूँ , वापस लो अपनी दरिद्र करुणा ख़ुशी मुझमें लौ - सी मौजूद थी और इतनी मजबूत कि कोई उसे ब...

'गर मेरे पहले प्यार ने पुकारा मुझे

आज सुंदरैया विज्ञान भवन पहुँचा कि वहाँ से WTO-GATTS भगाओ जुलूस में शामिल होकर इंदिरा पार्क रैली के लिए पहुँचना है। वहाँ कई तरह के कार्यक्रम होते रहते हैं। देखा बैनर लगा है कि अजय सिंह की कविताओं की किताब ' राष्ट्रपति भवन में सूअर ' का लोकार्पण है। नीचे गोलमेज वाले वाले छोटे कमरे में गया तो भाषा सिंह से मुलाकात हुई। पता चला कि प्रो . हरगोपाल वहाँ बोलने वाले हैं तो मैं भी बैठ गया। अजय जी से मिलकर और उनका वक्तव्य सुनकर अच्छा लगा।  हमारा जुलूस तो चल पड़ा था। मैं प्रो . हरगोपाल के साथ रैली में आया।  हर बार तेलुगु वक्ताओं के आखिर में मुझे कुछ कहना पड़ता है और हिंदी में बात करते हुए हमेशा परेशान रहता हूँ। यह एक कमी जीवन में रह गई - तेलुगु भाषा सीख नहीं पाया।  बहरहाल पिछली पोस्ट में सेरा टीसडेल की कविताएँ कइयों को पसंद आईं। तो इस बार तीन और कविताएँ पोस्ट कर रहा हूँ। ये भी ' सदानीरा ' में आई हैं। कुछ फॉन्ट की दिक्कत आ रही है।  I Am Not Yours I am not yours, not lost in you, Not lost, although I long to be Lost as a candle lit at noon, L...

तुम हवा थे और मैं समंदर

सेरा टीसडेल की कविताएँ अमेरिकी कवि सेरा टीसडेल को मैंने सबसे पहले रे ब्रैडबरी की अंग्रेज़ी कहानी ' अगस्त 2026: और आएँगी हल्की फुहारें ' का अनुवाद करते हुए पढ़ा। यह अनुवाद 1996 में ' साक्षात्कार ' में छपा था। कहानी में नाभिकीय जंग के बाद की स्थिति में एक ऐसे घर का विवरण है , जहाँ कोई इंसान नहीं है , पर इंसान की पहचान हर चप्पे पर है। यंत्रों की सहायता से घर में नियमित गतिविधियाँ चलती हैं , और उसी सिलसिले में कहीं सेरा टीसडेल की इसी शीर्षक की कविता पढ़ी जाती है। कविता में अद्भुत जिजीविषा दिखती है , जिससे प्रभावित होकर मैंने कवि के बारे में और जानकारी लेनी शुरू की। हाल में कुछ कविताओं का हिंदी अनुवाद शुरू किया और इस तरह यह कोशिश पाठकों के सामने है। सेरा टीसडेल बीसवीं सदी के अमेरिका के पूर्वार्द्ध की रोमांटिक कवियों में से सबसे अधिक जानी जाती हैं। उनकी कविताओं में छंद और लय का अद्भुत मेल है। बड़ी सरल सहज भाषा में प्रेम और प्रकृति की बातें कहती उनकी कविताओं में ऐसा संगीत है , जो लंबे समय तक मन में गूँजता है। उन्हें 1918 में पुलित्ज़र पुरस्कार का पूर्व - नाम पहल...

वे मुझसे लेश भर भी कम नहीं हैं

जसम के लिए सम्मेलन के लिए दिल्ली गया तो रोहतक से धीरेश ने कहा कि वहाँ जाना होगा। 31 की रात को नीर, सुमन, धीरेश और धर्मवीर भाई के साथ रोहतक पहुँचा। अगले दिन सुबह कोई पचास दोस्तों ने बड़े धीरज और प्यार से कविताएँ सुनीं। इसके पहले सुबह - सुबह शुभा और मनमोहन के साथ चाय - नाश्ता पर बातचीत की। कई सालों के बाद मिल रहा था , और उनके प्यार से बड़ी ताकत मिली। कविताएँ सुनकर कई सवाल आए। लंबी बातचीत चली। पुराने दोस्त तो मिले ही, नए दोस्त बनाए।   इधर अभी अश्लील साइट्स को प्रतिबंधित करने पर जो बहस चली है, उसमें दलेल बेनबबाली की यह टिप्पणी बड़ी रोचक लगी - I am against imposing the burqa, because it degrades women, but I am against its ban by the French government. I am against the porn industry, because it degrades women, but I am against its ban by the Indian government. And no, it's not contradictory. (मैं बुरखा को लाजिम करने के खिलाफ हूँ , पर मैं फ्रांस की सरकार द्वारा इसके प्रतिबंध के खिलाफ हूँ। मैं अश्लीलता के उद्योग के खिलाफ हूँ , क्योंकि इससे स्त्रियों का अपमान होता है , ...