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Showing posts from March, 2015

पॉज़ीट्रॉन वह पाजी हरजाई

और " भैया ज़िंदाबाद " से विज्ञान से जुड़ी यह तीसरी कविता:- श्रीमान इलेक्ट्रॉन मैं हूँ श्रीमान इलेक्ट्रॉन बिन मेरे तुम हो बेजान हर परमाणु में जुड़वें मेरे फैले हैं नाभि को घेरे घूम रहे क्या चारों ओर ऐसा कभी मचा था शोर ' गर पूछो कि मैं हूँ किधर मैं बतलाऊँ इधर - उधर मत पूछो कि मैं हूँ किधर पूछो कि हो सकता कितना किधर एक है मेरा दुश्मन भाई पॉज़ीट्रॉन वह पाजी हरजाई अगर मिल जाऊँ कभी मैं उससे हो जाऊँ खत्तम फिस्स से प्रकाश - ताप बन जाऊँ फिर खूब खपाए मैं ने लोगों के सिर।

बात बड़ी ग़जब यार

पिछली पोस्ट में 1995 में प्रकाशित बच्चों की कविताओं के संग्रह " भैया  ज़िंदाबाद " का जिक्र था। उसी में से विज्ञान विषय की एक और कविता -     श्री अणु छोटा - सा मेरा अँगूठा उससे छोटा नख जो टूटा सौ - सौ टुकड़े नख के करके उससे भी छोटे कण पाउडर के छोटे से छोटा पाउडर का कण उस से छोटा करे कौन जन पर ऐसा है दोस्त मेरे उस कण के टुकड़े बहुतेरे जो कर दो उसके टुकड़े लाख तब जानो जी अणुओं को आप है अणुओं का बना संसार बात यह बड़ी ग़जब है यार जो हम भी इतने छोटे हो पाते हम भी शायद अणु कहलाते और श्री अणु के हाथ पैर ? वो हैं परमाणु - उनकी तो छोड़ो खैर।

ला मैं गिन दूँ

बीस साल पहले प्रकाशित बच्चों के लिए लिखी कविताओं के संग्रह 'भैया ज़िंदाबाद' में कुछ कविताएँ विज्ञान से जुड़ी हैं। यहाँ उनमें से एक पोस्ट कर रहा हूँ। तीन कविताओं की शृंखला में यह पहली कविता है, जिसमें सूक्ष्म स्तर पर मापन के पैमाने की समझ की कोशिश है। बहुत से बिंदु एक बात मैंने यह सोची पेन में कितनी स्याही होती लगाया बूँदों में हिसाब पचास , सोचकर मिला जवाब एक बार जो भर ली स्याही बीस पन्नों की करी तबाही एक पन्ने में लाइन बीस लाइनवार अक्षर भी बीस हर अक्षर में कितने बिंदु मुन्नी बोली ला मैं गिन दूँ एक सौ गिनकर वह चीखी - चिन्तू बोल एक बूँद में कितने बिंदु बहुत से बिंदु बहुत से बिंदु   ला मैं गिन दूँ , ला मैं गिन दूँ।

इस तरह लिखी अश्लील कविता मैंने

अश्लील कविता पैड , दस्ताने , हेलमेट जवान लड़के वाकई जंग वाजिब लोगों की बातों में जुम्ले क्रिकेट क्रिकेट क्रिकेट एकबार साथ छिड़ी पुरानी भी जंग एक जंग और और एक जंग में छिड़ी जंग असली जंग अखबार टी वी वेबसाइट इंटरनेट लोगों ने जम कर लड़ी जंग ऐसे ही वक्त देखा मैंने चीथड़ों से झलकता उसका सूखा जिस्म बदरंग। इस तरह लिखी अश्लील कविता मैंने। अश्लील। कविता को कहानी बनाते हुए मैंने चार्ट बनायाः क्रिकेट क्रिकेट क्रिकेट – जंग जिस्म सूखा चीथड़ों में - जंग पुरानी जंग – जंग मेरी चाहत - जंग जंग और जंग में जंग - जंग तात्कालिकता - जंग अश्लीलता की वरीयता में इन जंगों को सजाओ प्रश्न सोचा मैंने आलोचना के प्रश्नपत्र के लिए और कागज कलम समेट लगा जरुरी काम में।                                    ...

पिछली सदियों में भारत में शिक्षा और विज्ञान-शिक्षा

पिछली सदियों में भारत में शिक्षा और विज्ञान - शिक्षा पर कुछ बातें (' अकार ' के ताजा अंक में प्रकाशित आलेख - प्रकाशित आलेख में कुछ वाक्यों में सामान्य फर्क हैं - संदर्भों की सूची प्रकाशित लेख के साथ है ) भारत में ब्रिटिश राज के दौरान बड़े सांस्कृतिक बदलाव आए। आज मुल्क में जो समस्याएँ दिखती हैं , उनमें से कई सीधे - सीधे ब्रिटिश राज का परिणाम हैं। मसलन भाषा की समस्या ही लें। अंग्रेज़ न होते तो अंग्रेज़ी का वर्चस्व न होता। अगर हर समस्या का इतना सीधा संबंध अंग्रेज़ी राज से दिखता तो इतिहासकारों और दीगर मानव - विज्ञानियों का काम आसान हो जाता। पर समस्याओं की जड़ें इतनी साफ होती नहीं , जितनी कि हमें लगती हैं। अगर अंग्रेज़ी के वर्चस्व को ही लें , आज़ादी के सत्तर साल बाद भी यह बना हुआ है तो इसे हम कैसे समझें। कहने को लोग अक्सर कह देते हैं कि हम 300 सालों तक अंग्रेज़ों के गुलाम रहे। पर 1757 के पहले तक ईस्ट इंडिया कंपनी की हैसियत महज एक व्यापारी संस्था की थी। छोटे व्यापार केंद्रों में स्थापित सत्ता को अक्सर देश पर राज कहा दिया जाता है। औपचारिक रूप से भारत...