बीस साल पहले प्रकाशित बच्चों के लिए लिखी कविताओं के संग्रह 'भैया ज़िंदाबाद' में कुछ कविताएँ विज्ञान से जुड़ी हैं। यहाँ उनमें से एक पोस्ट कर रहा हूँ। तीन कविताओं की शृंखला में यह पहली कविता है, जिसमें सूक्ष्म स्तर पर मापन के पैमाने की समझ की कोशिश है।
बहुत
से बिंदु
एक
बात मैंने यह सोची
पेन
में कितनी स्याही होती
लगाया
बूँदों में हिसाब
पचास,
सोचकर
मिला जवाब
एक
बार जो भर ली स्याही
बीस
पन्नों की करी तबाही
एक
पन्ने में लाइन बीस
लाइनवार
अक्षर भी बीस
हर
अक्षर में कितने बिंदु
मुन्नी
बोली ला मैं गिन दूँ
एक
सौ गिनकर वह चीखी -
चिन्तू
बोल
एक बूँद में कितने बिंदु
बहुत
से बिंदु बहुत से बिंदु
ला
मैं गिन दूँ,
ला
मैं गिन दूँ।
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