पिछली
पोस्ट में 1995
में
प्रकाशित बच्चों की कविताओं
के संग्रह "भैया
ज़िंदाबाद"
का
जिक्र था। उसी में से विज्ञान
विषय की एक और कविता -
श्री
अणु
छोटा-सा
मेरा अँगूठा
उससे
छोटा नख जो टूटा
सौ-सौ
टुकड़े नख के करके
उससे
भी छोटे कण पाउडर के
छोटे
से छोटा पाउडर का कण
उस
से छोटा करे कौन जन
पर
ऐसा है दोस्त मेरे
उस
कण के टुकड़े बहुतेरे
जो
कर दो उसके टुकड़े लाख
तब
जानो जी अणुओं को आप
है
अणुओं का बना संसार
बात
यह बड़ी ग़जब है यार
जो
हम भी इतने छोटे हो पाते
हम
भी शायद अणु कहलाते
और
श्री अणु के हाथ पैर?
वो
हैं परमाणु -
उनकी
तो छोड़ो खैर।
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