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Showing posts from November, 2014

आह, जो सबसे सादा है, वही उसके लिए खूबसूरत है

साहिल के पास नहा रहे हैं युवक अट्ठाईस , परस्पर स्नेह में बँधे हुए युवक अट्ठाईस ; स्त्री जीवन और हा , इतने एकाकी वर्ष अट्ठाईस। वह तट के पास की चढ़ाई पर बने खूबसूरत मकान की मालकिन है , खिड़की के पर्दे के पीछे , सजी - धजी , सुंदर वह छिपी खड़ी है। युवकों में से कौन उसे सबसे ज्यादा भाता है ? आह , जो सबसे सादा है , वही उसके लिए खूबसूरत है। कहाँ चल पड़ी , भद्रे ? मुझसे नहीं छिप पाओगी , देखता हूँ तुम्हें पानी छपकाते , जबकि अपने कमरे में अनछुई खड़ी हो। उनतीसवीं नहानेवाली साहिल पर आई नाचती , खिलखिलाती , और किसी ने उसे नहीं देखा , पर उसने सबको देखा और उनसे प्यार किया। युवकों की दाढ़ियाँ गीली चमक उठीं , उनके लंबे बालों से पानी बह चला , उनके शरीरों पर चारों ओर छोटी - छोटी नहरें बहने लगीं। एक अदृश्य हाथ भी उनके बदनों पर से गुजरा , काँपते हुए वह उनकी कनपटियों और पसलियों से उतरा। युवक पीठ पर लेटे तैरते हैं , उनके गोरे पेट सूरज की ओर ...

रब तो यार के दिल में है

आज जनसत्ता में आया आलेख बुझाए न बुझे एक वक्त था , बहुत पहले नहीं - बस सौ साल पहले , जब भारत में अधिकतर शादियाँ बीस की उम्र के पहले हो जाती थीं। गाँवों में लड़के की उम्र बीस होने तक बच्चे पैदा हो जाते थे। वह स्थिति बच्चों और माँ - बाप दोनों के लिए बहुत अच्छी नहीं थी। स्त्रियों के लिए वह आज से बदतर गुलामी की स्थिति थी। यह अलग बात है कि कई लोग उन दिनों के जीवन में सुख ढूँढ़ते हैं और आधुनिक जीवन को दुखों से भरा पाते हैं। जैसा भी वह जीवन था , एक बात तो जाहिर है कि प्राणी के रुप में मानव के जीवन में किशोरावस्था से ही शारीरिक परिपक्वता के ऐसे बदलाव होते हैं कि जैविक रूप से वह यौन - संपर्क के लिए न केवल तैयार , बल्कि बेचैन रहता है। इस बात को यौन - संबंधित साहित्य या दृश्य - सामग्री का व्यापार करने वाले अच्छी तरह जानते हैं। हिंसक शस्त्रों और यौन - संबंधित सामग्री का व्यापार ही आज की आर्थिक दुनिया के सबसे बड़े धंधे है। अरबों - खरबों की तादाद में डालर - यूरो - येन और बिटसिक्कों का लेन - देन इन्हीं दो क्षेत्रों में होता है। पता नहीं कैसे हमें कुदरत के नियमों के विप...

बात कहो जो बादल बादल हो

  बच्चों के लिए लिखी यह कविता 'चकमक' के ताज़ा अंक में आई है।  बात कहो एक बात कहो जो धरती जितनी बड़ी हो एक बात कहो जो बारिश जैसी गीली हो एक बात कहो जो माँ जैसी सुंदर हो एक बात कहो जो संगमरमर हो एक बात कहो जो आग जैसी गर्म हो एक बात कहो जो पानी जैसी नर्म हो एक बात कहो जो बादल बादल हो एक बात कहो जो बिल्कुल पागल हो बात जो दिन हो रात हो बातों की बात बेबात हो एक बात कहो एक बात कहो।                                                  ( चकमक - 2014)

गो ग बा ब - 4

(पिछली किश्त से आगे - आखिरी किश्त)  आखिर उन्होंने गोपी से कहा , " गोपी ! बड़ी मुसीबत में पड़ गया हूँ , पता नहीं क्या होगा। शुंडी का राजा मेरा राज्य छीनने आ रहा है। " शुंडी का राजा वही था , जिसने गोपी और बाघा को जलाकर मारना चाहा था। उसका नाम सुनते ही गोपी के दिमाग में एक चाल सूझी। उसने राजाजी से कहा , " महाराज ! आप इसकी चिंता न करें , आप इस गुलाम को हुक्म दें , मैं इसे एक मजाक बनाकर छोडूंगा। " राजा ने हँसकर कहा , " गोपी , तुम गवैये - बजैये हो , जंग - लड़ाई के पास नहीं फटकते , इसके बारे में तुम क्या समझोगे ? शुंडी के राजा की बहुत बड़ी सेना है , मैं उसका क्या बिगाड़ सकता हूँ ?" गोपी बोला ," महाराज , आदेश दें तो एक बार कोशिश कर सकता हूँ। कोई नुकसान तो नहीं है। " राजा बोले , " जैसी तुम्हारी मर्ज़ी , तुम कर सकते हो। " यह सुनकर गोपी फूला न समाया , उसने बाघा को बुलाया और सलाह - मशविरा शुरू किया।    गोपी और बाघा उस दिन बड़ी देर तक सोच - विचार करते रहे। बाघा उत्साह से भरपूर था। वह बोला , " भैया , हम कुछ न कुछ करके ही रहेंगे। मुझे बस एक ब...

गो ग बा ब - 3

(पिछली कड़ी से आगे) यह कहकर उसने भूतों की दी हुई उस थैली में हाथ डालकर कहा , " लाओ यार , एक हंडिया पुलाव लाओ । " तुरंत ऐसी एक सुगंध चारों ओर फैल गई ! ऐसा पुलाव आमतौर पर राजा लोग भी नहीं खा पाते । और वह ऐसी एक बड़ी हंडिया थी ! गोपी की क्या औकात कि उसे थैले में से निकाल बाहर करे ! खैर , किसी तरह उसे बाहर निकाल लि या और थैली से कहा , " तले व्यंजन , चटनी , मिठाई , दही , रबड़ी , शरबत ! तुरंत , तुरंत लाओ !" देखते - देखते खाने की चीज़ों और सोना - चा ँ दी के बर्तनों से घर भर गया। आखिर दो लोग कितना खा सकते थे ? इतना बढ़िया खाना खाकर उनका दुःख न जाने कहाँ उड़ गया। तब बाघा बोला , " भैया , चलो इसी वक़्त यहाँ से भागते हैं , नहीं तो कुत्तों से नुचवाएँगे ? " अरे सब्र करो , देखते हैं क्या होता है। " यह सुनकर बाघा बड़ा खुश हुआ। वह समझ गया कि गोपी भैया कुछ मजेदार वाकया करने वाले हैं। दो दिन हो गए , और उनकी सजा सुनाने में एक दिन बाकी रह गया। सुनवाई के दिन रात - ही - रात गोपी ने थैले में हाथ रख कहा , " हमें राजवेश चाहिए। " ऐसा कहते ही उस...