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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Thursday, November 13, 2014

बात कहो जो बादल बादल हो


 बच्चों के लिए लिखी यह कविता 'चकमक' के ताज़ा अंक में आई है। 

बात कहो

एक बात कहो जो धरती जितनी बड़ी हो
एक बात कहो जो बारिश जैसी गीली हो
एक बात कहो जो माँ जैसी सुंदर हो
एक बात कहो जो संगमरमर हो

एक बात कहो जो आग जैसी गर्म हो
एक बात कहो जो पानी जैसी नर्म हो
एक बात कहो जो बादल बादल हो
एक बात कहो जो बिल्कुल पागल हो

बात जो दिन हो रात हो
बातों की बात बेबात हो
एक बात कहो एक बात कहो।
                                                 (चकमक - 2014)

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