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Showing posts from December, 2006

कद्दूपटाख

अफलातून की ओर से सबको बड़े दिन का यह उपहार: कद्दूपटाख कद्दूपटाख (अगर) कद्दूपटाख नाचे- खबरदार कोई न आए अस्तबल के पाछे दाएँ न देखे, बाएँ न देखे, न नीचे ऊपर झाँके; टाँगें चारों रखे रहो मूली-झाड़ पे लटका-के! (अगर) कद्दूपटाख रोए- खबरदार! खबरदार! कोई न छत पे बैठे; ओढ़ कंबल ओढ़ रजाई पल्टो मचान पे लेटे; सुर बेहाग में गाओ केवल "राधे कृष्ण राधे!" (अगर) कद्दूपटाख हँसे- खड़े रहो एक टाँग पर रसोई के आसे-पासे; फूटी आवाज फारसी बोलो हर साँस फिसफासे; लेटे रहो घास पे रख तीन पहर उपवासे! (अगर) कद्दूपटाख दौड़े- हर कोई हड़बड़ा के खिड़की पे जा चढ़े; घोल लाल रंग हुक्कापानी होंठ गाल पे मढ़े; गल्ती से भी आस्मान न कतई कोई देखे! (अगर) कद्दूपटाख बुलाए- हर कोई मल काई बदन पे गमले पे चढ़ जाए; तले साग को चाट के मरहम माथे पे मले जाए; सख्त ईंट का गर्म झमझम नाक पे घिसे जाए! मान बकवास इन बातों को जो नज़रअंदाज करे; कद्दूपटाख जान जाए तो फिर हरजाना भरे; तब देखना कौन सी बात कैसे फलती जाए; फिर न कहना, बात मेरी अभी सुनी जाए। इस कविता का अनुवाद सही हुआ नहीं था, इसलिए 'अगड़म बग...

लाल्टू डॉट जेपीजी

लो भई अफलातून, तुम्हारी तस्वीर। मतलब मेरी। जिसने स्कैन किया, उसने फाइल का नाम रखा, लाल्टू डॉट जेपीजी। बड़ी मेहनत करनी पड़ी इसे अपलोड करने में। पता नहीं क्या माजरा है, ब्लॉगस्पॉट के पेजेस खुलना ही नहीं चाहते। जब खुलते हैं तो जाने कौन सी भाषा खुलती है, जो रामगरुड़ की समझ से बाहर है। लगता है सभी पन्नों पर काम चल रहा है। ये लो, अपलोड होते होते रुक गया। अरे भई, रात हो गई, अभी अभी नए मकान में शिफ्ट किया है, अब जल्दी करो और सोने दो। Ah! Finally... साइनबोर्ड पर लिखा है - हँसना मना है।

रामगरुड़ का छौना

अफलातून ने देखा कि अच्छा मौका है, ये लाल्टू रोता रहता है, इसकी खिंचाई कर ली जाए। तो कह दिया कि 'रामगरुड़ेर छाना' का अनुवाद भी लाइए। तो लो भई, पढ़ो और खूब खींचो मेरी टाँग:- पर हँसना मना है! रामगरुड़ का छौना रामगरुड़ का छौना, हँसना उसको म-अ-ना हँसने कहो तो कहता "हँसूँगा न-ना, ना-ना," परेशान हमेशा, कोई कहीं क्या हँसा! एक आँख से छिपा-छिपा यही देखता फँसा नींद नहीं आँखों में, खुद ही बातों-बातों में कहता खुद से, "गर हँसे पीटूँगा मैं आ तुम्हें!" कभी न जाता जंगल न कूदे बरगद पीपल दखिनी हवा की गुदगुदी कहीं लाए न हँसी अमंगल शांति नहीं मन में मेघों के कण-कण में हँसी की भाप उफन रही सुनता वह हर क्षण में! झाड़ियों के किनार रात अंधकार जुगनू चमके रोशनी दमके हँसी की आए पुकार हँस हँस के जो खत्म हो गए सो रामगरुड़ को होती पीड़ समझते क्यों नहीं वो? रामगरुड़ का घर धमकियों से तर हँसी की हवा न घुसे वहाँ हँसते जाना मना वहाँ। (अगड़म-बगड़म; सुकुमार राय के 'आबोल-ताबोल' की क...

खिचड़ी

खिचड़ी बत्तख था, साही भी, (व्याकरण को गोली मार) बन गए बत्ताही जी, कौन जाने कैसे यार! बगुला कहे कछुए से, "बल्ले-बल्ले मस्ती कैसी बढ़िया चले रे, बगुछुआ दोस्ती!" तोतामुँही छिपकली, बड़ी मुसीबत यार कीड़े छोड माँग न बैठे, मिर्ची का आहार! छुपी रुस्तम बकरी, चाल चली आखिर बिच्छू की गर्दन जा चढ़ी, धड़ से मिला सिर! जिराफ कहे साफ, न घूमूँ मैदानों में टिड्डा लगे भला उसे, खोया है उड़ानों में! गाय सोचे - ले ली ये कैसी बीमारी पीछे पड़ गई मेरे कैसे मुर्गे की सवारी! हाथील का हाल देखो, ह्वेल माँगे बहती धार हाथी कहे - "जंगल का टेम है यार!" बब्बर शेर बेचारा, सींग नहीं थे उसके मिल गया जो हिरण, सींग आए सिर पे! -सुकुमार राय ('आबोल ताबोल' की बीस कविताओं का अनुवाद 'अगड़म बगड़म' संभावना प्रकाशन, १९८९) तस्वीरें सुकुमार राय की खुद की बनाई हैं।

मकान बदलना है।

संस्थान के अपने मकान अभी कम हैं, आगे बनने वाले हैं। जुलाई में सामान ले आया तो जल्दी में मकान चाहिए था। हड़बड़ी में दो बेडरुम वाला मकान लिया। भारत सरकार ने कर्मचारियों के लिए हाउसिंग कॉम्प्लेक्स बनाए हैं, कर्मचारी मकान खरीद कर किराए पर देते हैं। जिस व्यक्ति का मकान है, वह करनाल में कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थान में वैज्ञानिक है। उसके स्थानीय मित्र के हाथ मकान था। जिसने पता दिया उसने बतलाया कि सात हजार महीने के लगेंगे। मैंने कहा देंगे। पता चला कि साहब आनाकानी कर रहे हैं। अपने संस्थान के प्रशासनिक अफ्सर रमाना जी ने बातचीत की। पता चला साढ़े सात माँग रहे हैं। मैंने कहा चलो ठीक है। १२ जुलाई को सुबह सामान पहुँच रहा था, ग्यारह बजे चाभी का तय हुआ। सामान पहुँच गया, पर चाभी नहीं। चार बजे जनाब आए और कहा कि आठ चाहिए। रमाना ने फिर बात की औेर पौने आठ पर चाभी मिल गई। दो महीने का अडवांस और जुलाई के बारह दिनों के पैसे। साथ में जो एजेंट था, उसने अपनी फीस के लिए एक महीने का किराया माँगा। सबको नगद चाहिए। सुबह ट्रक वालों को बीस हजार दे चुका था - पता नहीं कैसे कैसे दो ए टी एम का इस्तेमाल कर पैसे दिए। ह...

अश्लील

उच्चतम न्यायालय ने राय दी है कि नग्नता अपने आप में अश्लील नहीं है। यह एक महत्त्वपूर्ण राय है, खासकर हमारे जैसे मुल्क में जहाँ अश्लील कहकर कला और व्यक्ति स्वातंत्र्य का गला घोंटने वाले दर दर मिलते हैं और जो सचमुच अश्लील है उसे सरेआम बढ़ावा मिलता है। इस प्रसंग में यह कविता याद आ गई। अश्लील एक आदमी होने का मतलब क्या है एक चींटी या कुत्ता होने का मतलब क्या है एक भिखारी कुत्तों को रोटी फेंककर हँसता है मैथुन की दौड़ छोड़ कुत्ते रोटी के लिए दाँत निकालते हैं एक अखबार है जिसमें लिखा है एक वेश्या का बलात्कार हुआ है एक शब्द है बलात्कार जो बहुत अश्लील है बर्बर या असभ्य आचरण जैसे शब्दों में वह सच नहीं जो बलात्कार शब्द में है एक अंग्रेज़ी में लिखने वाला आदमी है तर्कशील अंग्रेज़ी में लिखता है कि वेश्यावृत्ति एक ज़रुरी चीज है उस आदमी के लिखते ही अंग्रेज़ी सबसे अधिक अश्लील भाषा बन जाती है (पश्यंतीः - अक्तूबर-दिसंबर २०००) इस कविता के बारे में लिखते हुए याद आया कि इसका पहला ड्राफ्ट कोई दस साल पहले संघीय लोक सेवा आयोग के गेस्ट हाउस में बैठकर लिखा था। प्रशासन के साथ जब जब ...