कल चेतन ने याद दिलाया कि मेरे ब्लॉग की सालगिरह है। संयोग से मनःस्थिति ऐसी है नहीं कि खीर पकाऊँ। फिर भी ब्लॉग तो कुछ लिखा जाना ही चाहिए। तकरीबन पचास हो चले अपने जीवन में अगर पाँच सबसे महत्त्वपूर्ण साल गिनने हों, तो यह एक साल उनमें होगा। बड़े तूफान आए, पर जैसा कि सुनील ने एक निजी मेल में दिलासा देते हुए लिखा था,टूटा नहीं, हँसता खेलता रहा। यहाँ तक कि चिट्ठा जगत में जान-अंजान भाइयों/बहनों के साथ ठिठौली भी की। चिट्ठे लिखने में नियमितता नहीं रही, पर कुछ न कुछ चलता रहा। मैंने पहले एकबार कभी लिखा था कि हमारे लिए चिट्ठा जगत में घुसपैठ अपने मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने की कोशिश मात्र है। पर साथ में थोड़े से हिंदी चिट्ठों की दुनिया में एक और चिट्ठा भी जुड़ गया, यह खुशी अलग। कुछ तो बात बनती ही होगी, नहीं तो समय समय पर मिलने वाली नाराज़गी क्योंकर होती। साल भर पहले जब मैंने हिंदी चिट्ठा लिखना शुरु किया तो दीवाली के पहले विस्फोट, धोनी की धुनाई, साहित्यिक दुनिया में थोड़ी बहुत चहलकदमी, कुछ विज्ञान और कुछ विज्ञान का दर्शन आदि विषयों पर लिखा, लोगबाग टिप्पणी करते और एक दो बार मैं भी बहस में शामिल रहा...