इस बीच फिर उत्तरी हवाओं को सलाम कह आया। एक दिन के लिए जे एन यू गया था। वहाँ से चंडीगढ़। एक दिन सबसे तो नहीं दो चार से मिलकर अगली सुबह दिल्ली। दिल्ली में प्लैटफार्म पर रवीन्द्र सिवाच जो रसायन और कविता दोनों में मेरा पुराना शागिर्द रहा है, उसे आना था। आया नहीं। मोबाइल बजाने की कोशिश की तो नो नेटवर्क कवरेज। हैदराबाद लौटने तक नो कवरेज ही रहा। पता नहीं लोग कैसे निजीकरण के गुण गाते हैं। इन ठगों ने तो मुझे नियमित रुलाने का ठेका ही लिया हुआ है। बहरहाल, थोड़ी देर तक रवीन्द्र नहीं पहुँचा तो याद आया कि उसने कहा था कि स्टेशन के पास ही क्रिकेट खेलना है। तो भाई एक तो दिल्ली दिल्ली, ऊपर से क्रिकेट, लाजिम है कि नेटवर्क का कवरेज होगा नहीं। प्लैटफार्म से बाहर आकर मित्र ओम को फोन किया और उनके घर डेरा जमाने की घोषणा तय कर दी। पुराने स्नेही हैं, उनसे पारिवारिक संबंध रहा है। एक जमाने में चंडीगढ़ में अखबार के रेसीडेंट एडीटर होकर आए थे। मुझसे ऐसे लेख लिखवाए थे जो आज तक लोग याद रखते हैं। आजकल मुख्य संपादक हैं। तो नेटवर्क न होने से दो ही रुपए में इतना अच्छा निर्णय लिया, नहीं तो रोमिंग के खासे लग जाते। प्री प...