My Photo
Name:
Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Wednesday, February 08, 2006

शब्द हरा पत्ता है

शब्द हरा पत्ता है
कविता पत्तों टहनियों की इमारत
पत्ते में क्लोरोफिल
क्लोरोफिल में मैग्नीशियम
मैग्नीशियम में भरा खाली आस्माँ।

पत्ते के बाकी कणों में भी मँडरा रहा शून्य
शून्य भरता खालीपन
जैसे खालीपन से बनता शून्य।

कदाचित घुमक्कड़ विद्युत कण खेलते
आपसी पसंद नापसंद का अनिश्चित खेल।

कण में नाभि
नाभि में कण
कणों में जीवन
देखते ही देखते टहनियाँ, हरे पत्ते,
उफ्! कविता का संसार!

(२००४)

Labels:

3 Comments:

Blogger मसिजीवी said...

उफ्! कविता का संसार!

मुझ सा विनाशक भाववादी तो शायद पचा भी ले पर बचो मित्र सृजक प्रगतिवादियों से बचो। वे तो तनखैया ही घोषित कर देंगें तुम्‍हें। मुझे कविता बहुत पसंद आई

8:13 PM, February 09, 2006  
Blogger लाल्टू said...

विनाशक! नहीं अराजक।

वैसे मेरे खयाल से तो मैंने केमिस्ट्री की क्लास की तैयारी के लिए लिखा था ः-)

11:42 AM, February 10, 2006  
Blogger मसिजीवी said...

कण में नाभि
नाभि में कण
कणों में जीवन

हॉं अराजक शायद ज्‍यादा सटीक रहेगा। दिल की बात बताऊं मुझे अराजक कहलाना बहुत पसंद है कुछ 'माक्‍‍र्सवादी' मित्र चिढ़ाने के लिए कहते थे पर मैं इसे प्रशंसा की तरह लेता हूँ।
मैनें उपर की पंक्तियों के रहस्‍यवादी स्‍वर के लिए लिखा था।

9:56 PM, February 10, 2006  

Post a Comment

<< Home