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Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Tuesday, February 14, 2006

आकांक्षा

मन
हो इतना कुशल
गढ़ने न हों कृत्रिम अमूर्त्त कथानक
चढ़ना उतरना
बहना होना
हँसना रोना इसलिए
कि ऐसा जीवन

हो इतना चंचल
गुजर तो फूटे
हँसी की धार
हर दो आँख कल कल

डर तो डरे जो कुछ भी जड़
प्रहरियों की सुरक्षा में भी
डरे अकड़
खिल हर दूसरा खिले साथ
बढ़ बढ़े हर प्रेमी की नाक
हर बात की बात
बढ़े हर जन
ऐसा ही बन

कुछ बनना ही है
तो ऐसा ही बन।

(अक्षर पर्व २००?)

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