' वाङ्चू ' - आज भीष्म साहनी को कैसे पढ़ें ? ' बनास जन ' पत्रिका के भीष्म साहनी विशेषांक में प्रकाशित विश्व साहित्य में तकरीबन सभी भाषाओं में प्रवासी जीवन के अनुभव पर बहुत कुछ लिखा मिलता है। अपने परिवेश से हटकर किसी दूसरे मुल्क में जाने पर या अपने ही मुल्क में किसी ऐसे इलाके में जाने पर जहाँ रस्मो - रिवाज भिन्न हों , जैसी मुश्किलें आती हैं , इस पर पूरे विश्व - साहित्य में खूब लिखा गया है। प्रवासी भारतीय जो लंबे समय तक विदेशों में रहे हैं , उन्होंने ऐसे अनुभवों पर उपन्यास या संस्मरण लिखे हैं। भीष्म साहनी की ' वाङ्चू ' कहानी में वाचक अपने प्रवास के अनुभव की कहानी नहीं कह रहा , बल्कि वह भारत में आए ऐसे विदेशी की कथा कह रहा है , जिसे उसका अपना देश अपनाना नहीं चाहता और भारत में भी , जहाँ वह बस गया है , यहाँ भी उसके लिए जगह नहीं रहती। भीष्म साहनी की रचनाएँ अपने समय की जीवंत कथाएँ हैं। इसलिए उन की रचनाओं पर बहुत कुछ लिखा मिलता है , पर ' वाङ्चू ' पर बहुत कम ही लिखा गया है। उनकी और दीगर कहानियों , उपन्यासों में समका...