धरती सीरीज़ की और कविताएँ - 3. उन मुहल्लों में चलो उन मुहल्लों में घूम आएँ वहाँ कोई नहीं सो रहा वहाँ बादलों में बारूद की गंध है बारिश की बूँदें मर रहीं हैं जहर में घुल कर यहाँ इंतज़ार में क्यों बैठे हो चलो उन मुहल्लों में देख आएँ कैसे अपने ही खून से नहा सकते हैं परस्पर गला घोंट कर गा सकते हैं हाल - चाल अपनी लाशों से पूछ सकते हैं यहाँ मुहल्ला शांत है किसको खबर कि लग सकती है आग यहाँ भी भीगी घास पर हवाएँ साँय - साँय सुना सकती हैं बच्चों की आखिरी साँसें इसके पहले कि दस्तक सुनाई पड़े इसके पहले कि प्यार का आखिरी लफ्ज़ होने चले ज़मींदोज़ चलो उन मुहल्लों में घूम आएँ। 4. नहीं मानता मैं नहीं मानता कि तेरे आखिरी लम्हों को जी रहा हूँ किसी के कहने से अब तक जो तूने दिया गायब नहीं हो सकता बचपन के ऐसे गीले दिनों में फुटबॉल खेलते गिर गिर कर मिट्टी से जो रँगा शरीर अँधेरे में आज भी देखता हूँ चाँद - तारों के करीब ...