एक समय था जब हर किसी को सही सूचनाएं उपलब्ध नहीं होती थीं . बड़े शहरों में पुस्तकालय होते थे - छोटे शहरों में भी होते थे पर उनका मिजाज़ खास ढंग का होता था . गाँव में बैठ कर सूचनाएं प्राप्त करना मुश्किल था . आज ऐसा नहीं है , अगर किसी को पढ़ने लिखने की सुविधा मिली है , और निम्न मध्य वर्ग जैसा भी जीवन स्तर है , तो मुश्किल सही इंटर नेट की सुविधा गाँव में भी उपलब्ध है - कम से कम अधिकतर गाँवों के लिए यह कहा जा सकता है . इसलिए अब जानकारी प्राप्त करें या नहीं , और अगर करें तो किस बात को सच मानें या किसे गलत यह व्यक्ति के ऊपर निर्भर है . अक्सर हम अपने पूर्वाग्रहों के आधार पर ख़ास तरह की जानकारी को सच और अन्य बातों को झूठ मानते हैं . और वैसे भी बचपन से जिन बातों को सच माना है उसे अचानक एक दिन गलत मान लेना कोई आसान बात तो है नहीं . इसलिए चाहे अनचाहे अपने खयालों से विपरीत कोई कुछ कहता हो तो असभ्य फूहड़ ही सही किसी भी भाषा में उसका विरोध करना ज़रूरी लगता है . मुझे सामान्यतः ऐसे लोगों से कोई दिक्कत नहीं होती , आखिर जो जानता नहीं , एक दिन वह सही बातें जान सकता है और इसलिए उसे दोष देना मैं वाज...