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लेट पोस्ट

एक हफ्ता लेट पोस्ट कर रहा हूं। लिख लिया था पर पोस्ट नहीं कर पाया था। कुछ बिखरे से ख़याल हैं।

चीले देश के कोपीपाओ क्षेत्र की खदान में फंसे तैंतीस लोगों की दो महीने की दर्दनाक कैद से मुक्ति इन दिनों की बड़ी खबर है। आधुनिक तकनोलोजी की एक बड़ी सफलता के अलावा यह मानव की असहायता से मुक्ति के लिए संसार भर के लोगों की एकजुटता का अद्भुत उदाहरण है। कहने को यह महज एक देश के लोगों की कहानी है, पर विश्व भर में जिस तरह लोगों ने उत्सुकता के साथ इस घटना को टी वी के परदे पर देखा या अखबारों में पढ़ा, उससे पता चलता है कि अंततः मानव मानव के बीच प्रेम का संबध ही अधिक बुनियादी है न कि नफरत का। ऐसी ही भावुकता पहले भी नज़र आयी है जब हरियाणा के प्रिंस नामक एक बच्चे को एक कुँए में से निकाल बचाया गया था।

इसके विपरीत हमारे देश में जो ख़बरें इन दिनों चर्चा में हैं, वे मानव को मानव से विछिन्न करने वाली ख़बरें हैं। एक निहायत ही पिछड़ेपन की सोच को लेकर बहुसंख्यक लोगों को उत्तेजित कर अल्पसंख्यकों के खिलाफ सामयिक तौर पर ही सही जीत हासिल करने का संतोष कुछ लोगों को है। एक कोशिश है कि अन्याय के विरोध में कोई बातचीत न हो सके। कभी संभाव्य हिंसा की दुहाई देकर तो कभी इतिहास को विकृत ढंग से पेश कर लगातार कहा जा रहा है कि हम मानव और मानव के बीच नफरत के सम्बन्ध को मान लें। कुछ और लोग जनता के श्रम की लूट पर अतीत की गुलामी के प्रतीक बने बहुराष्ट्रीय खेलों में आंशिक सफलता को लेकर मदमत्त है।

ऐसी कोशिशें हमेशा होती रही हैं। पर विरोध में उठे स्वर कभी कमज़ोर नहीं पड़े। पैंतीस साल पहले वियतनाम ने अमरीकी साम्राज्यवाद के विरुद्ध जीत हासिल कर यह दिखाया था कि लाख ताकतों के बावजूद आततायी के खिलाफ मनुष्य की जीत होती ही है।
अंत में मानव के प्रति मानव के प्रेम की जीत होगी ही, यह हम मानते हैं। अगर भारत में चल रही जनविरोधी प्रवृत्तियाँ हमें हताश करती हैं, तो चीले की जीत हमें प्रेरित करती है। मानव का इतिहास या वर्तमान किसी एक देश की सीमाओं में आबद्ध नहीं है - वह भौगोलिक सीमाओं के पार विश्व भर में प्रशस्त है। चीले की घटना का महत्व कुछ दार्शनिक कारणों से भी है। कई लोग कहेंगे कि अगर आधुनिक जीवन शैली की गुलामी न होती, प्रकृति पर विजय पाने की बेतहाशा होड़ न होती तो ऐसा संकट आता ही नहीं जिस पर विजय पाने की बात हम कर रहे हैं। प्रकृति के साथ सामंजस्य का जो संकट मनुष्य को झेलना पड़ रहा है, उस के बारे में हमारी जो भी स्पष्ट समझ है, वह हमें आधुनिक विज्ञान से ही मिली है। सवाल यह है कि इस समझ को हम किस तरह काम लायें। आधुनिक विज्ञान से आधुनिक तकनोलोजी का विकास हुआ है। अभी तक ज्यादातर यही हुआ है कि आधुनिक तकनोलोजी को मानव विरोधी शोषक वर्गों ने हाईजैक कर लिया है। कइयों को यह लगता है कि पूंजीवादी व्यवस्था की लपेट में आए शोषित लोग उतना ही लालायित हैं कि पैसों का नंगा खेल और उससे जुड़ी संस्कृति चलती रहे। हम यह समझते हैं कि आधुनिक सोच का अभाव हमारा पहला संकट है, पर साथ ही पश्चिमी मुल्कों की गलतियों से सीखना भी ज़रूरी है और तकनोलोजी का मानव के पक्ष में इस्तेमाल हो, इसकी निगरानी ज़रूरी है।

इधर मेरी परेशानी मूषक संबंधी है. एक रात चूहा केले खा गया, परसों एक चुहिया मरी दिखी. अब कोई यह मत पूछना कि कैसे जाना कि वह चुहिया थी.

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