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Showing posts from June, 2007

ढंग का कुछ लिखो|

आखिर हिंदी में लिखना चाहते हुए भी हिंदी टाइप करने से चिढ़ता क्यों हूँ? दफ्तरी काम में सारे दिन कीबोर्ड चलाते हुए इतनी बोरियत होती है कि फिर मन की बातें अलग इनपुट से टाइप करने में दिक्कत आती है| समय लगता है| सिर्फ इतना ही है क्या? हिंदी में लिखना कभी भी आसान नहीं रहा| एक तो हिंदी क्षेत्र में न रहने और दिन भर अंग्रेजी की वजह से भाषा पर नियंत्रण कठिन है| फिर अलग अलग फांट की समस्या| कई बार लगता है कि अंग्रेजी में लिखना शुरु करें| एक दो बार कोशिश भी की, पर मजा नहीं आया| पर सबसे बड़ी समस्या शायद हिंदी क्षेत्र के सांस्कृतिक विरोधाभासों की है| इन दिनों अचानक कविता और साहित्य को लेकर भयंकर मारामारी है और ऐसे में हर कोई 'holier than thou' कहता उछलता नजर आता है| इसी बहाने मुझे कई नए पुराने चिट्ठे पढ़ने का मौका मिला और अच्छा यह लगा कि इतने सारे ब्लाग हिंदी में हैं| तकलीफ यह कि खुद कैसे इस दंगल में कोई सार्थक पहल करें समझ में नहीं आता| अंतत: एक साथी कवि के साथ खुद से भी यही कह रहा हूँ - समय मिले तो ढंग का कुछ लिखो| कल लंदन और दो दिनों बाद भारत लौट रहा हूँ|

सिर्फ फोटू

युवा कवि मोहन राणा के साथ| मोहन बाथ में रहता है और ये तस्वीरें उसने अपने मोबाइल फोन के कैमरे पर लीं| स्टैचू नाविक जान कैबट है - १४९७ में ब्रिस्टल से चला और उत्तरी अमरीका जा पहुँचा| पीछे इमारत ब्रिस्टल के कला और संस्कृति के केंद्र आर्नोलफीनी की है| आर्नोलफीनी मध्यकालीन पश्चिमी कला में काफी विवादित नाम है| मेरे हाथ में लिफाफे में मोहन के दो कविता संग्रह हैं, जिनमें एक ताजा 'पत्थर हो जाएगी नदी' है|

सुनील के ताजा चिट्ठे की प्रतिक्रिया में एमा गोल्डमैन

वैसे तो छुट्टी पर हूँ| पर सुनील के ताजा चिट्ठे की प्रतिक्रिया में पेश है, मेरी प्रिय अराजक चिंतक एमा गोल्डमैन की १९०८ की स्पीच: What Is Patriotism? by Emma Goldman 1908 San Francisco, California Men and Women: What is patriotism? Is it love of one's birthplace, the place of childhood's recollections and hopes, dreams and aspirations? Is it the place where, in childlike naivete, we would watch the passing clouds, and wonder why we, too, could not float so swiftly? The place where we would count the milliard glittering stars, terror-stricken lest each one "an eye should be," piercing the very depths of our little souls? Is it the place where we would listen to the music of the birds and long to have wings to fly, even as they, to distant lands? Or is it the place where we would sit on Mother's knee, enraptured by tales of great deeds and conquests? In short, is it love for the spot, every inch representing dear and precious recollections of a happy, joyous and play...

छुट्टी

कुछ निजी कारणों से फिर एकबार चिट्ठागीरी से छुट्टी ले रहा हूँ। कुछ समय बाद फिर हाजिर होंगे। कारण? समय, अवस्था - कुछ भी तो कारण हो सकते हैं। शायद, ... शायद वैसे गलत शब्द है। मेरे युवा दोस्तों को पता है कि मैं शायद या पर फिर यहाँ तक कि और आदि से भी चिढ़ता हूँ। शायद कुछ नहीं होता। जो होता है वही होता है।

१२७वें स्थान से १२६वें स्थान पर

फिल्मों पर लिखना यानी टिप्पणियों की भरमार। एक शिकायत यह रही कि मैंने अपनी समझ के बारे में ज्यादा नहीं लिखा। भई, हिंदी में स्याही से तो लिख लेता हूँ, पर टाइप करने में अभी भी रोना आता है। बहरहाल, उत्तर भारत में हिंदी क्षेत्रों में फिर आग भड़क उठी है। आरक्षण विरोधी दोस्त फिर से खूब बरस रहे होंगे। सचमुच स्थिति बड़ी जटिल है और बेचैन करने वाली है। बिल्कुल सही है कि आरक्षण की राजनीति को कहीं तो रुकना ही होगा। अगर गंभीरता से देखें तो इसी बेचैनी में ही आरक्षण नीति की जरुरत समझ में आती है। गैर बराबरी की व्यवस्था को बदलने के दो ही उपाय हैं - या तो संगठित विरोध से आमूल परिवर्त्तन या सरकार द्वारा उदारवादी नीतियों से परिवर्त्तन। अगर सरकार ईमानदार हो तो परिवर्त्तन में देर होने का कोई कारण नहीं है। पर मानव विकास सूची में पिछले दस सालों में १२७वें स्थान से १२६वें स्थान पर पहुँचने वाली देश की सरकार को कोई कैसे ईमानदार कहे। जहाँ आधी जनता प्राथमिक शिक्षा तक से वंचित है, वहाँ जनता के ऊपर आरक्षण जैसे जटिल विषय पर अपने आप सही निर्णय लेने का सवाल नहीं उठता। जबकि सुविधाएँ पाने की लड़ाई में सही निर्णय ऊपर...