आखिर हिंदी में लिखना चाहते हुए भी हिंदी टाइप करने से चिढ़ता क्यों हूँ? दफ्तरी काम में सारे दिन कीबोर्ड चलाते हुए इतनी बोरियत होती है कि फिर मन की बातें अलग इनपुट से टाइप करने में दिक्कत आती है| समय लगता है| सिर्फ इतना ही है क्या?
हिंदी में लिखना कभी भी आसान नहीं रहा| एक तो हिंदी क्षेत्र में न रहने और दिन भर अंग्रेजी की वजह से भाषा पर नियंत्रण कठिन है| फिर अलग अलग फांट की समस्या| कई बार लगता है कि अंग्रेजी में लिखना शुरु करें| एक दो बार कोशिश भी की, पर मजा नहीं आया|
पर सबसे बड़ी समस्या शायद हिंदी क्षेत्र के सांस्कृतिक विरोधाभासों की है| इन दिनों अचानक कविता और साहित्य को लेकर भयंकर मारामारी है और ऐसे में हर कोई 'holier than thou' कहता उछलता नजर आता है| इसी बहाने मुझे कई नए पुराने चिट्ठे पढ़ने का मौका मिला और अच्छा यह लगा कि इतने सारे ब्लाग हिंदी में हैं|
तकलीफ यह कि खुद कैसे इस दंगल में कोई सार्थक पहल करें समझ में नहीं आता| अंतत: एक साथी कवि के साथ खुद से भी यही कह रहा हूँ - समय मिले तो ढंग का कुछ लिखो|
कल लंदन और दो दिनों बाद भारत लौट रहा हूँ|
4 comments:
भारत लौटने पर क्या हम उम्मीद रखें कि आप का लिखा हम कुछ और पढें ? इधर बहुत शाँति रही ।
सही कहा आपने ...
अगर लिखने में दिक़्क़त है तो पॉडकास्ट लगा दिया करें। आपकी आवाज़ में आपकी बात सुनना ज़्यादा बेहतर रहेगा।
क्या आपको ट्रन्सलिटरेशन साधन से हिन्दी टाइप करना नई लिपि सीखने जैसा लगता है? क्या आपने कभी हिन्दी टाइपराइटर इस्तेमाल किया है?
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