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Showing posts from May, 2007

मरने से पहले जो पचास फिल्में जरुर देखनी हैं

मरने से पहले जो पचास फिल्में जरुर देखनी हैं - रविवार की रात टी वी पर यह प्रोग्राम था| तकरीबन आधी मैंने देखी हैं| शुकर है कि चयनकर्त्ताओं से मैं पूरी तरह सहमत नहीं हूँ, नहीं तो चैन से न मर पाने की चिंता होती| मैंने जो देखी हुईं थीं, उनमें एक दो को छोड़ बाकी सारी नब्बे से पहले की हैं| चूँकि चयनकर्त्ता आलोचक ब्रिटेन और अमरीका के थे, इसलिए ज्यादातर फिल्में पश्चिम की थीं| सारी याद नहीं, इसलिए नेट से ढूँढ कर सूची निकाली है: 1 Apocalypse Now 2 The Apartment 3 City of God 4 Chinatown 5 Sexy Beast 6 2001: A Space Odyssey 7 North by Northwest 8 A Bout de Souffle 9 Donnie Darko 10 Manhattan 11 Alien 12 Lost in Translation 13 The Shawshank Redemption 14 Lagaan: Once Upon A Time in India 15 Pulp Fiction 16 Touch of Evil 17 Walkabout 18 Black Narcissus 19 Boyzn the Hood 20 The Player 21 Come and See 22 Heavenly Creatures 23 A Night at the Opera 2 4 Erin Brockovich 25 Trainspotting 26 The Breakfast Club 27 Hero 28 Fanny and Alexander 29 Pink Flamingos 30 All About Eve 31 Scarface 32 Terminator ...

दो बढ़िया फिल्में

पिछले दो दिनों में दो बढ़िया फिल्में देखीं| पहली आलेहांद्रो गोन्सालेज इनारीतू की 'आमोरेज पेरोस (प्रेम एक कुतिया है)' और दूसरी जाक्स देरीदा पर किर्बी डिक और एमी त्सियरिंग कोफमान का वृत्तचित्र| पहली फिल्म मेक्सिको की समकालीन परिस्थितियों पर आधारित तीन अलग-अलग किस्मत के मारे व्यक्तियों की कहानी है| शुरू से आखिर तक फिल्म ने मुझे बाँधे रखा - जो कि इन दिनों मेरे साथ कम ही होता है| प्रेम, हिंसा और वर्ग समीकरणों का अनोखा मिक्स, जो अक्सर मेक्सिको व दक्षिण अमरीका की फिल्मों में होता है, इसमें है| इंसानी जज्बातों और अंतर्द्वंदों को दिखलाने के लिए कुत्तों का बढ़िया इस्तेमाल किया गया है| देरीदा पर बनी फिल्म भी बहुत अच्छी लगी| खूबसूरती यह है कि देरीदा जो कहता है उसमें अब नया कुछ नहीं लगता - लगता है यह सब तो हम लंबे अरसे से सोच रहे हैं, पर धीरे धीरे बातें जेहन तक जाती हैं और अचानक ही लगता है कि ये बातें ठीक ऐसे कही जानी चाहिए; पर पहले किसी ने इस तरह कहा नहीं| देरीदा की सबसे बडी सफलता भी यही है कि सुनने वाले को उसकी बातें सहज सत्य लगें| डीकंस्ट्रक्सन की धारणा पर देरीदा बार बार कहता है कि...

हा, हा, भारत दुर्दशा देखी न जाई!

पुरानी ही सही, कुछ बातें अद्भुत ही होती हैं। चेतन ने गाँठ या गाँठों पर यह लिंक भेजी है। रमण बतलाएगा कि लिंक भेजा जाता है या भेजी। मेरे भेजे में फिलहाल गाँठ पड़ी हुई है। शुक्र है कि यह गाँठ ऐसी नहीं है, जैसी ये है : देखिये जी, कलाकार माने क्या यह होता है कि वह हरिश्चद्र होते हैं या आम आदमी से ज्यादा अधिकार उनके होते हैं? आप सारी अपने मन माफिक हुकूमतों को गिना सकते हैं जहां सुख चैन है - किसी के साथ कोई अन्याय नहीं होता. या जैसा कि (साभार: युवा मित्र प्रणव) चंदन मित्रा के भेजे में है: बंदा किसी दक्षिणपंथी दल का नेता नहीं है, अंग्रेजी पायनीयर अखबार का संपादक है। जैसा कि हम देखेंगे, धर्म निरपेक्षता से लबालब भरा हुआ है। भाषा का संस्कार देखें: The disinformation machinery of the Indian Left is probably more ruthlessly efficient than anything wartime Nazi propagandist Goebbles could have dreamed of. The effortless ease with which they disseminate half-truths and thereafter construct gigantic myths around these is something to be marvelled at. Despite their disdain for all things...

वन्देमातरम!

इंस्टीटिउट आफ फिजिक्स में प्रोफेसर माइकेल बेरी का भाषण सुनने गया था। एक बुजुर्ग मिले। पूछा कहाँ से आया हूँ। इंडिया और हैदराबाद सुनकर कहा मैं कभी इंडिया गया नहीं हूँ| थोडी देर बातचीत के बाद पूछा, आपका इलाका पीसफुल है? पीसफुल?! आधुनिक समय में भारत का दुनिया को एक अवदान है - एक नारा - ओम् शांति। कल मेरे शहर में बम फटा. पिछले कुछ दिनों से पंजाब में दंगे हो रहे थे। एम एस यू बडोदा के बवाल पर किसी का कहना है: लाल्टू जी ये "अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता" वाले ऐसे ही जूते खाने लायक हैं, इनके लिये अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता मतलब हिन्दुओं के देवताओं की नग्न तस्वीरें बनाना, सरस्वती वन्दना का विरोध करना आदि है, इन्हें तो अभी अभी ही मारना शुरु किया है, ऐसे लोग अभी और-और पिटेंगे। यह चिट्ठाकार उज्जैन का है। पिछले साल वहाँ छात्रों के चुनाव के दौरान एक प्रोफेसर की हत्या कर दी गई थी। यह चिट्ठाकार मेरी तरह सरस्वती वन्दना कर सकता है। मैं और वह भारत की उस आधी जनता का हिस्सा नहीं हैं, जो स्कूल नहीं जा पाए। इंग्लैंड की एक तीन साल की बच्ची मैडलीन गायब हो गई है, दुनिया भर के लोग तलाश में हैं,...

औक्यूपेशनल हैजर्ड.

पहले कभी सुना लगता है, हाल में बच्चों के लिए लिखी एक किताब में पढा. जैकलिन रे की पुस्तक 'प्लेयिंग कूल' में नानी के 'तुम बडी हो गई हो' कहने पर बच्ची ग्रेस का जवाब है: 'चिल्ड्रेन ग्रो! इट्स ऐन औक्यूपेशनल हैजर्ड.'

अभी तक किसी को मारा नहीं है.

एम एस यू बडोदरा में बवाल मचा है. क्यों? भई बी जे पी का राज है. नरेंद्र मिल्सोविच मोदी की दुनिया है. हमला कलाकारों पर है. अभी तक किसी को मारा नहीं है. कला संकाय के डीन सस्पेंड हो गए हैं. क्यों? उसने एक छात्र की प्रदर्शनी रुकवाने का विरोध किया. इसलिए.