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Showing posts from April, 2017

कैसे न हो यह सब

चुपचाप अट्टहास -30 कण-कण में चाहत हर कण चाहत दाने की चाहत कि उसे चबाया जाए पानी की कि पीया जाए चाहतें पूरी करने के लिए कौन क्या नहीं करता बीज से दाना या समंदर से बारिश तक की यात्राएं चाहत हैं मेरी चाहत कि हुकूमत करूँ यात्रा मेरी छोटी कैसे हो सकती बिकना-बिकाना, कत्ल और ख़ूँ के खेल कैसे न हो यह सब कण-कण में  चाहत हर कण चाहत। Desire defines every atom Every atom is a desire A grain desires to be devoured Water to be drunk We all go far to fulfill our desires A seed becoming a grain and the ocean transforming to rains are desires It is my desire that I must rule Naturally it is a long journey To buy and to sell, to kill and to play with blood How could I not do it all Desire defines every atom Every atom is a desire.

चुपचाप अट्टहास : 29 - बहुत देर हो चुकी होगी

मैं गाँधी का मुखौटा बनाता हूँ कोई डरता है कि मुझे क्या हो गया है कोई सोचता कि मैं भटक गया या कि सुधर गया हूँ मैं नहीं खोया ज़मीन में गड़े मटकों सा हूँ गल पिघल जाती है मिट्टी मैं रहता हूँ वहीं जहाँ टिका था मैं मैं हूँ नहीं कैसे खोऊँ अपने आप को इसे इश्क में वफादारी कह दो हारूँ या जीतूँ मुखौटा गाँधी का हो कि बुद्ध का पैने रहेंगे मेरे दाँत जानोगे जब गहरी नींद में होगे तुम महसूस करोगे अपनी गर्दन पर बहता हुआ ख़ून जो मेरी जीभ सोखेगी जब गड़ जाएँगे दाँत थोड़ी देर तुम्हें भी होगा उन्माद फायदा कुछ तुम्हें भी तो है कि अँधेरे के इस दौर में जगमगाती है रोशनी तुम्हारे घर तुम्हें भी यात्राओं का मिलता है सुख जब कल्पना में ही सही उड़ लेते हो तुम मेरे साथ जब तक तुम जानोगे रोशनी है अँधेरे से भरी बहुत देर हो चुकी होगी गाँधी के पदचिह्न मिटाता अपने कदमों आता तुम्हें सहलाऊँगा उसी गर्दन पर उंगलियाँ फेरते हुए जहाँ से तुम्हारा ख़ून पिया था। ...

चुपचाप अट्टहास: 28 - अंदर झाँक लो जब तक सब स्थिर

 अंदर झाँक लो जब तक सब स्थिर   इस गर्म रात को सिरहाने से आवाज़ें आ रही हैं   सिरहाने पर कान रखकर बाएँ बगल पर टिककर सोता हूँ   पलकें मूँदते ही निकल आते हैं जुलूस   हुजूम चल रहा है और शोर बढ़ता आ रहा है         वे सामने दिखती हर चीज़ को चूरमचूर करते आ रहे हैं   सेनापति ने योजनाएँ बनाई हैं कि कैसे इनको तबाह किया जाए   व्यूह वापस बुलाए हैं हमने इतिहास के पन्नों से पुराणों में से निकाल जीवंत किए हैं अश्वमेध - आख्यान सरकारें क्या पूरी कायनात को तबाह करने की योजना बन रही है         फिलहाल कायनात अपनी धुरी पर है   शहरों में गगनचुंबी इमारतें स्थिर खड़ी हैं   अँधेरे में जगमगाहट दिखती है खिड़कियों से आती रोशनी से   अंदर झाँक लो जब तक सब स्थिर है   देख लो एक किशोरी कैसे शांत सोती है   उम्र ही ऐसी है कि कितनी साफ दिखती है दुनिया   फिलहाल लुत्फ उठाओ मशीन की ठंड में काँपते हुए आखिरी लड़ाई होनी है कल। This night, hot, I hear voices from m...

कोई उन्हें छू सके

उड़ते हुए उड़ते हुए नीचे लहरों से कहो कि तुम्हें आगे जाना ही है तुम बढ़ोगे तो तुम्हारे पीछे आने वाले बढ़ेंगे इसलिए आगे बढ़ते हुए अपनी उँगलियाँ पीछे रखो कि कोई उन्हें छू सके ।    (रेवांत - 2017) Flying When you fly Tell the waves below That you have to Move forward You Move and then move those Who follow you And so Moving ahead Keep your fingers behind That others May feel them.

किस खिड़की पर हो तुम?

फिज़ां सोचता था कि इतनी है ज़मीं कहाँ तक जा पाऊँगा अंजाने धूप खिड़कियों से अंदर आती। देखता था खिड़की से बाहर धूप फैली अनंत तक। अंदर बातचीत। कुछ पुरानी , कुछ आने वाले कल की। साथ बुनते स्वप्न गीत हम ज़मीं पर लेट जाते। धूप हमें छूती और बादलों से रूबरू होते ही हम हाथों में हाथ रख खड़े हो जाते। कहाँ आ पहुँचा गड़गड़ाते काले बादल धूप निगलते किसके नाच की थाप से काँपती धरती मनपाखी डरता है ढूँढता हूँ धूप किस खिड़की पर हो तुम ? (रेवांत 2017) The Environs I used to wonder how far I can go in this wide world Unknown to me The sun came in from the windows. From my window I saw sun spread afar beyond  the horizons. Inside was our chit chat. A bit about the past, and a bit future. We composed dream songs together And lay down on the floor. The sun caressed us and  ...

उमस बढ़ रही है

डर मैं सोच रहा था कि उमस बढ़ रही है उसने कहा कि आपको डर नहीं लगता मैंने कहा कि लगता है उसने सोचा कि जवाब पूरा नहीं था तो मैंने पूछा - तो। बढ़ती उमस में सिर भारी हो रहा था उसने विस्तार से बात की - नहीं , जैसे खबर बढ़ी आती है कि लोग मारे जाएँगे। मैंने कहा - हाँ। मैं उमस के मुखातिब था यह तो मैं तब समझा जब उसने निकाला खंजर कि वह मुझसे सवाल कर रहा था। ( रेवांत 2017) Fear I thought that it was getting more humid He said don’t you feel afraid I said well I do He thought that I had not quite replied Then I asked – so My head was getting stuffy with rising humidity He explained - You know, we hear that people will be killed I said – ya I was dealing with the humidity It hit me when he pulled out the knife That he was interrogating me.