मैं
गाँधी का मुखौटा बनाता हूँ
कोई
डरता है कि मुझे क्या हो गया
है
कोई
सोचता कि मैं भटक गया
या
कि सुधर गया हूँ
मैं
नहीं खोया
ज़मीन
में गड़े मटकों सा हूँ
गल
पिघल जाती है मिट्टी
मैं
रहता हूँ वहीं जहाँ टिका था
मैं
मैं हूँ नहीं
कैसे
खोऊँ अपने आप को
इसे
इश्क में वफादारी कह दो
हारूँ
या जीतूँ
मुखौटा
गाँधी का हो कि बुद्ध का
पैने
रहेंगे मेरे दाँत
जानोगे
जब गहरी नींद में होगे तुम
महसूस
करोगे अपनी गर्दन पर
बहता
हुआ ख़ून जो मेरी जीभ सोखेगी
जब
गड़ जाएँगे दाँत
थोड़ी
देर तुम्हें भी होगा उन्माद
फायदा
कुछ तुम्हें भी तो है
कि
अँधेरे के इस दौर में
जगमगाती
है रोशनी तुम्हारे घर
तुम्हें
भी यात्राओं का मिलता है सुख
जब
कल्पना में ही सही उड़ लेते हो
तुम मेरे साथ
जब
तक तुम जानोगे
रोशनी
है अँधेरे से भरी
बहुत
देर हो चुकी होगी
गाँधी
के पदचिह्न मिटाता अपने कदमों
आता तुम्हें सहलाऊँगा
उसी
गर्दन पर उंगलियाँ फेरते हुए
जहाँ
से तुम्हारा ख़ून पिया था।
I
make masks that look like Gandhi
Some
wonder what has happened to me
Some
fear that I may have gone bonkers
Some
think that I have reformed myself
I
am not lost
I
am like clay pots buried in earth
The
clay dissolves eventually
I
remain where I was
How
can I lose myself
when
I am not myself
You
may call it loyalty in love
I
may lose or I may win
The
mask I wear my be Gandhi or Buddha
My
teeth remain sharp as ever
You
will know it only when in deep slumber
you
feel on your neck
Blood
flowing that my tongue will suck
When
the teeth will dig inside you
You
will enjoy it for a while
You
too gain from it a bit after all
Your
house shines in this age of darkness
You
too enjoy travels
When
even if in thoughts you fly with me
By
the time you know
That
the shine is filled with darkness
It
will be too late
I
will erase the footprints of Gandhi
And
come on my own feet to comfort you
With
my fingers rubbing the same neck
Where
I sucked your blood from.
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