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चुपचाप अट्टहास : 29 - बहुत देर हो चुकी होगी


मैं गाँधी का मुखौटा बनाता हूँ

कोई डरता है कि मुझे क्या हो गया है

कोई सोचता कि मैं भटक गया

या कि सुधर गया हूँ



मैं नहीं खोया

ज़मीन में गड़े मटकों सा हूँ

गल पिघल जाती है मिट्टी

मैं रहता हूँ वहीं जहाँ टिका था

मैं मैं हूँ नहीं

कैसे खोऊँ अपने आप को

इसे इश्क में वफादारी कह दो

हारूँ या जीतूँ

मुखौटा गाँधी का हो कि बुद्ध का

पैने रहेंगे मेरे दाँत

जानोगे जब गहरी नींद में होगे तुम

महसूस करोगे अपनी गर्दन पर

बहता हुआ ख़ून जो मेरी जीभ सोखेगी

जब गड़ जाएँगे दाँत

थोड़ी देर तुम्हें भी होगा उन्माद

फायदा कुछ तुम्हें भी तो है

कि अँधेरे के इस दौर में

जगमगाती है रोशनी तुम्हारे घर

तुम्हें भी यात्राओं का मिलता है सुख

जब कल्पना में ही सही उड़ लेते हो तुम मेरे साथ

जब तक तुम जानोगे

रोशनी है अँधेरे से भरी

बहुत देर हो चुकी होगी

गाँधी के पदचिह्न मिटाता अपने कदमों आता तुम्हें सहलाऊँगा

उसी गर्दन पर उंगलियाँ फेरते हुए

जहाँ से तुम्हारा ख़ून पिया था।



I make masks that look like Gandhi

Some wonder what has happened to me

Some fear that I may have gone bonkers

Some think that I have reformed myself



I am not lost

I am like clay pots buried in earth

The clay dissolves eventually

I remain where I was

How can I lose myself

when I am not myself

You may call it loyalty in love

I may lose or I may win

The mask I wear my be Gandhi or Buddha

My teeth remain sharp as ever

You will know it only when in deep slumber

you feel on your neck

Blood flowing that my tongue will suck

When the teeth will dig inside you

You will enjoy it for a while

You too gain from it a bit after all

Your house shines in this age of darkness

You too enjoy travels

When even if in thoughts you fly with me

By the time you know

That the shine is filled with darkness

It will be too late

I will erase the footprints of Gandhi

And come on my own feet to comfort you



With my fingers rubbing the same neck

Where I sucked your blood from. 

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