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Showing posts from February, 2017

22. उस खयाल की पैदाइश हूँ

किस तरह लड़ोगे मेरे साथ तुम तो यही तय नहीं कर पाए कि कविता क्या है कैसे जानोगे वे तीन लोक जिन पर एकछत्र राज करना मेरा ध्येय है सुलझा रहे हो इश्क की गुत्थियाँ याद करने की कोशिश में कि क्या हुआ उनका जिनसे तुमने प्यार किया हताश थक रहे कि आखिर में तुम छले गए बार - बार विदा तक न कह पाए ढंग से और चले गए जो करीब थे स्मृतियों में छवियाँ छोड़ कर ऐसी पीड़ाओं का समाधान मुझसे जानो मैं उस खयाल की पैदाइश हूँ जो प्यार का विलोम है मेरा हर प्रोजेक्ट प्यार के खिलाफ है आकाश और धरती के खिलाफ हूँ   कि ये प्यार को सहारा देते हैं चिड़ियों को भून मारता हूँ कि वे तुम्हें प्यार की ओर मोड़ती हैं मैं तुम्हारी स्मृतियाँ मिटा दूँगा जैसे हार्ड डिस्क से मिटाई जाती हैं फाइलें तुम्हें कभी नहीं ढूँढने पड़ेंगे चेहरे जिन्हें प्यार से विदा करना चाहते हो। How can you ever fight with me You who cannot even decide what makes poetry Ho...

21. एक नई ज़ुबान गढ़ी जा रही थी

जब चला था ख़्वाब था मन में - एक देश बनाऊँगा हँसते-खेलते फूल-सा तुम हँसोगे पर सच है कि मैं कविताएँ लिखता था मानता था कि कविताएँ ही देश बनाएँगी ख़्वाब था कि माहताब छाएगा देश की रातों पर दुखी लोग भली नींद सो जाएँगे सुख के सपने हो जाएँगे ख़्वाब बदला और चाहत हुकूमत की आ बैठी दिलो-दिमाग पर भेड़-बकरों जैसे दिखने लगे देश के लोग मैं सोचने लगा कि इनकी नियति ही रौंदे-लूटे जाने की है इस तरह आईने में हर रोज़ देखा खुद को इंसान से कीट बनते हुए रेंगते हुए मैंने की अपनी तीर्थयात्रा और आका को नतमस्तक किया सलाम। मैंने देशनिकाला दिया खुद को अपने ख़्वाबों के देश से या कि देश ही निकल गया था ख़्वाब से खंडहर मौजूद था या कि ज़मीं जिसे अब मेरे हाथों खंडहर होना था चीखें थीं चारों ओर और मेरे सिपहसालारों की ललकारें एक नई ज़ुबान गढ़ी जा रही थी कि ख़्वाब देखना वतन के साथ गद्दारी है देश से निकाले गए खुद का यह विलाप सुनता हूँ खुद ही छिप-छिप कर। In the beginning There was the dream That I will build a Nation - Happy like a flower You may be amused but I really used to write poems I used to believe that poetry will build the ...

20. बम लहरी बम लहरी नाचें दरबारी

हुकूमत का नशा मुझपर है सवार हर पल अकेला खुद को गलबँहियों में लेता जैसे कोई नाटक की कला हो सीखता सालों से इतिहास की गति के खिलाफ जद्दोजहद की एक से एक हसीन नज़ारे करता रहा दरकिनार एक ही ध्येय था बचपन से बुनी अंधकार की चादर उड़ेल दूँ ढक लूँ धरती का हर चप्पा इस तरह  कि कहीं भी खालिस ज़मीं के टुकड़े पर चलना न पड़े मुझे सड़कें धधक उठें जब चलूँ उन पर दुरुस्त दिमाग जल कर राख हो जाएँ मेरी चाल में हों तांडव के ताल जाएँ खो जाएँ तबाह हो जाएँ बचपन के दोस्त, सखा सब मेरे अमात्य फरमान जारी करें जब नाचता रहूँ नशे में धा धिन मेरा नशा आच्छन्न करे सैंकड़ों को सामूहिक थापों में आवाज़ें घनघोर घरघराती बम लहरी बम लहरी नाचें दरबारी खुद को गलबँहियों में लिए बन जाऊँ घना काला बादल। I am high on power every moment I alone Embracing myself As if learning the craft of performance For years I have struggled against the trajectories of history I ignored pretty sights one after another I had a singular target That I must spread the sheet of darkness that I am weaving since my childhood I must cover every inch on Earth ...