Skip to main content

22. उस खयाल की पैदाइश हूँ


किस तरह लड़ोगे मेरे साथ


तुम तो यही तय नहीं कर पाए कि कविता क्या है


कैसे जानोगे वे तीन लोक


जिन पर एकछत्र राज करना मेरा ध्येय है


सुलझा रहे हो इश्क की गुत्थियाँ


याद करने की कोशिश में कि क्या हुआ उनका जिनसे तुमने प्यार किया


हताश थक रहे कि आखिर में तुम छले गए बार-बार


विदा तक न कह पाए ढंग से


और चले गए जो करीब थे


स्मृतियों में छवियाँ छोड़ कर




ऐसी पीड़ाओं का समाधान मुझसे जानो


मैं उस खयाल की पैदाइश हूँ


जो प्यार का विलोम है


मेरा हर प्रोजेक्ट प्यार के खिलाफ है


आकाश और धरती के खिलाफ हूँ

 
कि ये प्यार को सहारा देते हैं


चिड़ियों को भून मारता हूँ


कि वे तुम्हें प्यार की ओर मोड़ती हैं


मैं तुम्हारी स्मृतियाँ मिटा दूँगा


जैसे हार्ड डिस्क से मिटाई जाती हैं फाइलें


तुम्हें कभी नहीं ढूँढने पड़ेंगे


चेहरे जिन्हें प्यार से विदा करना चाहते हो।




How can you ever fight with me


You who cannot even decide what makes poetry


How would you ever know the three worlds


That I want to rule unchallenged


You indulge in solving love riddles


In your effort to recollect what happened to those whom you loved


Lose heart in frustration that you were betrayed yet again


You could not even say a proper goodbye


Those who were close to you were gone


Leaving images in your mind




Learn from me the solution for such agonies


I am the product of such desires


That are antipodes of love


All my projects are against love


I am against the Earth and the sky


For they carry love


I roast and kill birds


For they push you towards love


I will erase your memories


The way files are erased from a hard disk


You will never have to look for the faces


That you want to bid goodbye with love.

Comments

Popular posts from this blog

फताड़ू के नबारुण

('अकार' के ताज़ा अंक में प्रकाशित) 'अक्सर आलोचक उसमें अनुशासन की कमी की बात करते हैं। अरे सालो, वो फिल्म का ग्रामर बना रहा है। यह ग्रामर सीखो। ... घिनौनी तबाह हो चुकी किसी चीज़ को खूबसूरत नहीं बनाया जा सकता। ... इंसान के प्रति विश्वसनीय होना, ग़रीब के प्रति ईमानदार होना, यह कला की शर्त है। पैसे-वालों के साथ खुशमिज़ाजी से कला नहीं बनती। पोलिटिकली करेक्ट होना दलाली है। I stand with the left wing art, no further left than the heart – वामपंथी आर्ट के साथ हूँ, पर अपने हार्ट (दिल) से ज़्यादा वामी नहीं हूँ। इस सोच को क़ुबूल करना, क़ुबूल करते-करते एक दिन मर जाना - यही कला है। पोलिटिकली करेक्ट और कल्चरली करेक्ट बांगाली बर्बाद हों, उनकी आधुनिकता बर्बाद हो। हमारे पास खोने को कुछ नहीं है, सिवाय अपनी बेड़ियों और पोलिटिकली करेक्ट होने के।' यू-ट्यूब पर ऋत्विक घटक पर नबारुण भट्टाचार्य के व्याख्यान के कई वीडियो में से एक देखते हुए एकबारगी एक किशोर सा कह उठता हूँ - नबारुण! नबारुण! 1 व्याख्यान के अंत में ऋत्विक के साथ अपनी बहस याद करते हुए वह रो पड़ता है और अंजाने ही मैं साथ रोने लगता हू...

मृत्यु-नाद

('अकार' पत्रिका के ताज़ा अंक में आया आलेख) ' मौत का एक दिन मुअय्यन है / नींद क्यूँ रात भर नहीं आती ' - मिर्ज़ा ग़ालिब ' काल , तुझसे होड़ है मेरी ׃ अपराजित तू— / तुझमें अपराजित मैं वास करूँ। /  इसीलिए तेरे हृदय में समा रहा हूँ ' - शमशेर बहादुर सिंह ; हिन्दी कवि ' मैं जा सकता हूं / जिस किसी सिम्त जा सकता हूं / लेकिन क्यों जाऊं ?’ - शक्ति चट्टोपाध्याय , बांग्ला कवि ' लगता है कि सब ख़त्म हो गया / लगता है कि सूरज छिप गया / दरअसल भोर  हुई है / जब कब्र में क़ैद हो गए  तभी रूह आज़ाद होती है - जलालुद्दीन रूमी हमारी हर सोच जीवन - केंद्रिक है , पर किसी जीव के जन्म लेने पर कवियों - कलाकारों ने जितना सृजन किया है , उससे कहीं ज्यादा काम जीवन के ख़त्म होने पर मिलता है। मृत्यु पर टिप्पणियाँ संस्कृति - सापेक्ष होती हैं , यानी मौत पर हर समाज में औरों से अलग खास नज़रिया होता है। फिर भी इस पर एक स्पष्ट सार्वभौमिक आख्यान है। जीवन की सभी अच्छी बातें तभी होती हैं जब हम जीवित होते हैं। हर जीव का एक दिन मरना तय है , देर - सबेर हम सब को मौत का सामना करना है , और मरने पर हम निष्क्रिय...

 स्त्री-दर्पण

 स्त्री-दर्पण ने फेसबुक में पुरुष कवियों की स्त्री विषयक कविताएं इकट्टी करने की मुहिम चलाई है। इसी सिलसिले में मेरी कविताएँ भी आई हैं। नीचे उनका पोस्ट डाल रहा हूँ।  “पुरुष कवि : स्त्री विषयक कविता” ----------------- मित्रो, पिछले चार साल से आप स्त्री दर्पण की गतिविधियों को देखते आ रहे हैं। आपने देखा होगा कि हमने लेखिकाओं पर केंद्रित कई कार्यक्रम किये और स्त्री विमर्श से संबंधित टिप्पणियां और रचनाएं पेश की लेकिन हमारा यह भी मानना है कि कोई भी स्त्री विमर्श तब तक पूरा नहीं होता जब तक इस लड़ाई में पुरुष शामिल न हों। जब तक पुरुषों द्वारा लिखे गए स्त्री विषयक साहित्य को शामिल न किया जाए हमारी यह लड़ाई अधूरी है, हम जीत नहीं पाएंगे। इस संघर्ष में पुरुषों को बदलना भी है और हमारा साथ देना भी है। हमारा विरोध पितृसत्तात्मक समाज से है न कि पुरुष विशेष से इसलिए अब हम स्त्री दर्पण पर उन पुरुष रचनाकारों की रचनाएं भी पेश करेंगे जिन्होंने अपनी रचनाओं में स्त्रियों की मुक्ति के बारे सोचा है। इस क्रम में हम हिंदी की सभी पीढ़ियों के कवियों की स्त्री विषयक कविताएं आपके सामने पेश करेंगे। हम अपन...