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Showing posts from November, 2015

तुझे आज़ाद कर निकल गई मैं अपनी राह

वापस सेरा टीसडेल The Gift What can I give you, my lord, my lover, You who have given the world to me, Showed me the light and the joy that cover The wild sweet earth and restless sea? All that I have are gifts of your giving— If I gave them again, you would find them old, And your soul would weary of always living Before the mirror my life would hold. What shall I give you, my lord, my lover? The gift that breaks the heart in me: I bid you awake at dawn and discover I have gone my way and left you free. तोहफा मेरे प्रिय , मेरे स्वामी , तूने मुझे मेरी दुनिया दी पागल मीठी धरती और बेचैन समंदरों पर छाई रोशनी और उल्लास मुझे दिखलाया मैं तुझे क्या दे सकती हूँ मगर ? जो भी मेरे पास है , वो तेरे दिए तोहफे हैं - उन्हीं को दूँ तो तुझे वे लगेंगे पुराने , और तेरी आत्मा थक जाएगी जीते हुए हमेशा मेरी जाँ में थमे आईने में। मेरे प्रिय , मेरे स्वामी , मैं तुझे क्या दूँ ? यह तोहफा जो मेरे दिल को करे तार - तार : तू सुब...

लिखो, छुओ

लाल्टू से बातचीत लाल्टू के माता - पिता उसे लेकर मेरे घर आए। मैंने दरवाजा खोला तो लाल्टू के पापा ने उससे कहा , ' लाल्टू जी को नमस्कार कहो। ' लाल्टू थोड़ी देर चुप मेरी ओर देखता रहा। फिर कहा , ' अरे ! लाल्टू तो मैं हूँ। ' हम सब हँस पड़े। अदंर आते हुए लाल्टू के पापा ने कहा , ' तुम्हें बतलाया तो था कि इनका नाम भी लाल्टू है। ' लाल्टू को यह जानकर अचरज हुआ कि मेरा नाम भी लाल्टू है। वह सिर घुमा कर कहता रहा - ' नहीं , तुम्हारा नाम लाल्टू नहीं है। ' देर तक मेरा ' हाँ , है ' और उसका ' नहीं , है ' चलता रहा। कभी वह धीरे से कहता , ' नहीं , है ', तो मैं धीरे से कहता , ' हाँ , है। ' कहते हुए उसका सिर धीरे से हिलता। कभी वह तेजी से कहता , ' नहीं , है ', तो मैं भी तेजी से कहता , ' हाँ , है। ' वह नाराज़ होता तो मैं नाराज़ होता , वह हँसकर कहता तो मैं हँसकर कहता। आखिरकार उसने जीभ निकालकर मुझे चिढ़ाते हुए कहा , ' दो लोगों का एक नाम भी होता है !' मैं थोड़ी देर तो समझ नहीं पाया कि कैसे उसे जवाब दूँ। फिर मैंने ...

भीष्म साहनी -मेरे प्रिय कथाकार

भीष्म साहनी - मेरे प्रिय कथाकार ('नया पथ' के ताज़ा अंक में प्रकाशित) भीष्म साहनी मेरे प्रिय कहानीकार हैं। स्कूल से निकलते कॉलेज में आते किशोर उम्र के आखिरी सालों में उनको पढ़ना शुरू किया था। कहानियों के अलावा उनके उपन्यास ' झरोखे ' और कड़ियाँ तभी पढ़े थे। हालाँकि उसके बाद ये उपन्यास फिर कभी नहीं देखे , पर आज चालीस से भी अधिक सालों बाद कहानी और चरित्र याद आते हैं। जिस बेबाकी से भीष्म जी ने किशोर वय से युवा होने का विवरण ' झरोखे ' उपन्यास में किया है , वह न मिटने वाला प्रभाव छोड़ जाता है। अक्सर भीष्म साहनी को प्रेमचंद की परंपरा का  लेखक कह दिया जाता है। उन की रचनाएँ अपने समय की जीवंत कथाएँ हैं। प्रेमचंद की तरह ही उनका लेखन भी समकालीन समाज की विसंगतियों को दिखलाता है और बेहतर समाज बनाने के लिए हमें प्रेरित करता है। पर सचमुच वे प्रेमचंद से अलग और आगे के रचनाकार थे। न केवल भाषा के स्तर पर , बल्कि विषय , शैली और दृष्टि में वे प्रेमचंद से काफी अलग थे। उनके सरोकार जनपक्षधर थे , पर उनकी रचनाओं को पढ़कर आप यह सोचकर चैन की नींद नहीं सो सकते कि वाह , कितना यथार्...