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Showing posts from July, 2015

सच और झूठ

आज जनसत्ता में 'तीस्ता की लड़ाई' शीर्षक से प्रकाशित । तीस्ता सीतलवाड़ का सच और झूठ पर खड़ी संघी राजनीति संघ परिवार और भाजपा सरकार के अनेक कारनामों में से एक जुझारू सांप्रदायिकता विरोधी कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को बदनाम कर उसे लगातार परेशान करने का सिलसिला है। गुजरात सरकार ने तीस्ता सीतलवाड़ और उनके सबरंग प्रकाशन संस्थान पर ग़लत ढंग से विदेशी मुद्रा लेने और सार्वजनिक काम के लिए इकट्ठा किए गए चंदे का निजी खर्च के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। राज्य सरकार ने ऐन उस वक्त केंद्रीय गृह मंत्रालय को सी बी आई द्वारा जाँच के लिए कहा , जब गुजरात में 2002 के जनसंहार के कुछ दोषियों के खिलाफ तीस्ता और उसके सहयोगियों की अगुवाई में अदालत में लाए मामलों की सुनवाई अंतिम चरण पर आ पहुँची है। सी बी आई में लगातार गुजरात से लाए पुलिस अफसरों को ऊँचे पदों पर लाया गया है , इसलिए अचरज नहीं कि त्वरित कारवाई हुई और उनके घरों पर सी बी आई के छापे पड़े। गुजरात पुलिस ने मीडिया को बतलाया कि कैसे मदिरा , फास्ट फूड आदि पर पैसे खर्च किए गए हैं। तीस्ता और उनके पति जावेद आनंद पर लगाए ये आक्षेप ब...

अँधेरे की इस परत को चीरना होगा

23 जुलाई को जनसत्ता में प्रकाशित - तेज़ी से बिगड़ते देश के हालात और नागरिकों की जिम्मेदारी इस लेखक जैसे कई लोगों ने पिछले साल संसद के चुनावों के पहले अलग - अलग माध्यमों से यह चिंता जाहिर की थी कि देश में सांप्रदायिक सोच बड़ी तेज़ी से फैल रही है। हर समुदाय में सांप्रदायिकता बढ़ती दिख रही थी और सबसे अधिक चिंता की बात थी कि बहुसंख्यक समुदाय में बढ़ती सांप्रदायिकता का फायदा उठा कर स्थानीय और विदेशी सरमाएदार तैयार हो रहे थे कि खुली लूट का मौसम आने को है। इसके लिए उन्होंने विपुल परिमाण धन देश की सबसे संगठित , संघ परिवार के छत्र तले फल फूल रही राजनैतिक ताकतों पर निवेश किया , जिनकी दृष्टि और सोच उन्नीसवीं सदी के यूरोपी क़ौमी राष्ट्रवाद की संकीर्णता में सीमित है। इन ताकतों ने बड़े पैमाने पर नफ़रत फैलाते हुए भाजपा के झंडे तले सत्ता हासिल की और उम्मीद से भी ज्यादा रफ्तार से अपने एजंडे पर काम करना शुरू किया। चुनावों के पहले भाजपा के हिंदुत्ववादी रुझान के बारे में हर कोई वाकिफ था , फिर भी जैसे खुद को भरमाने के लिए कई लोग विकास का बहाना ढूँढते रहे। अस्सी के दशक के अंत में जब उत्तर भार...

शासन-प्रणाली के खिलाफ आवाज़ उठाएँ, विज्ञान के खिलाफ नहीं

( आशीष नंदी : ग़फलत - में - सुकून का उल्लास    - आशीष लाहिड़ी का लेख: पिछली किश्त से आगे ) 3 बहुलतावाद , विज्ञान और तरक्की जो राष्ट्र - राज्य को लोकसमाज को तबाह करती भयंकर आफत करार देना  चाहते हैं , वे साथ ही ' पश्चिमी विज्ञान ' के बारे में भी नापसंदगी पालते हैं। पर   ' पश्चिमी विज्ञान ' कथन का कोई मतलब नहीं होता। जोसेफ नीडहैम ने  दिखलाया है कि विज्ञान ऐसी एक हरकत है जो सात घाट का पानी पिए बिना  बचता नहीं है। इसलिए वे ' एक्यूमेनिकल ( विश्वप्रसारी ) साइंस ' मुहावरा  इस्तेमाल करते थे। अमर्त्य ने भी नीडहैम से प्राभावित होकर लिखा है ,  ' दरअसल जिसे ' पश्चिमी ' विज्ञान और प्रौद्योगिकी कहा जाता है , उसका बहुत  बड़ा हिस्सा कई घाटों के पानी से सिंचा बढ़ा था - भारत की गणितविद्या उनमें  मुख्य है , जिसके बारे में माना जाता है कि वह अरब लोगों के हाथ होते हुए पश्चिम में पहुँची थी। ' 4 आशीषबाबू ने भी प्रचलित ' पश्चिमी ' विज्ञान का विरोध कर उसके बाहर ' अन्य  विज्ञान ' की...