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Showing posts from February, 2015

नई संस्कृति में मैं उसके साथ

आज जनसत्ता में प्रकाशित नई संस्कृति का दूध उसे शबनम मेरे पास क्यों ले आई थी मुझे नहीं मालूम। शायद शबनम के मन में कहीं से यह बात जम गई थी कि विज्ञान पर बात करनी हो तो मुझसे काम निकल सकता है या यह भी हो सकता है कि मैं उसके साथ औरों से बेहतर पेश आता होऊँ। उसे मेरे पास छोड़ कर दो चार बातें कहकर ही वह चली गई थी। उस पहली मुलाकात के दौरान मैं उसके साथ सज्जनता से पेश आया। बाद में वह दो चार बार फिर आया और हर बार मैंने पहले से अधिक परेशान लहजे में बात की। पहली बार मेरे मन में सचमुच उसके प्रति कोई नाराज़गी नहीं थी। अच्छा भी लगा होगा कि शबनम को लगा कि ऐसे आदमी को मेरे पास लाए। उसके प्रति मेरी थोड़ी सहानुभूति भी थी क्योंकि उसने बतलाया था कि ग़रीबी के कारण वह स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया था। मैं उसे डाँट कर कहता कि वह अंधविश्वासों को विज्ञान नहीं कहे तो उसके चेहरे पर उभरते आक्रोश के बावजूद उसमें बच्चों जैसी सरलता झलकती। मैंने उसे दुबारा स्कूल की पढ़ाई शुरू करने को कहा तो उसका चेहरा तमतमा उठा था। मैं समझ गया था कि स्कूली पढ़ाई को लेकर उसके मन में गहरा आक्रोश है। पर जो उसने कहा ...

मिस्टा' कुर्त्ज़ ही डेड:‍ 'अंधकूप' की भूमिका

  वाग्देवी प्रकाशन से प्रकाशित जोसेफ कोनराड के उपन्यास 'हार्ट ऑफ डार्कनेस' के मेरे किए अनुवाद 'अंधकूप' की भूमिका यहाँ डाल रहा हूँ, पर उसके पहले किताब के आने की खबर पर मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार की टिप्पणी: सलवा जुडूम पर अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने इसी उपन्यास के अंश का उपयोग किया था:    जब हम, हमारे सामने आए इन मामलों पर विचार कर रहे थे तो हमें जोसेफ को न राड के प्रसिद्ध उपन्यास ‘हाॅर्ट ऑफ डार्कनेस’ की याद आई। कोनराड ने अंधकार के तीन स्तरों की कल्पना की हैः  1. जंगल का अन्धकार, जो जीवन और उदात्त या लोकोत्तर इस संघर्ष का प्रतिनिधित्व करता है संसाधनों के लिए औपनिवेशिक विस्तार का अंधकार और अंत में ऐसा अन्धकार, जिसका प्रतिनिधित्व अमानवता और बुराई करती है। मान लीजिए कि किसी को सर्वोच्च ताकत दे दी जाती है जिसके लिए वह किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। इसके साथ ही असीम अधिकार हासिल करने वाले को यह गुमान हो जाता है कि जो वह कह रहा है वही सबसे व्यवहारिक और अनिवार्य चीज है। ऐसे में वह इस तीसरे अन्धकार का शिकार हो जाता है।  2. जोसेफ क...

अंधकूप

  जोसेफ कोनराड के उपन्यास 'हार्ट ऑफ डार्कनेस' का मेरा अनुवाद 'अंधकूप' वाग्देवी प्रकाशन से आ चुका है। पुस्तक मेले में मिल जाएगी। आवरण बेटी शाना की आठ साल पहले बनाई तस्वीर से बना है। अगले पोस्ट में इसकी भूमिका होगी।

ग़जब

आम भला आदमी तकरीबन तंदरुस्त ईमान की कमाई में सुबह शाम जुटा। सुबह मुझे पूछता है इस तरह की खबरें पढ़कर आपको अवसाद नहीं होता पूछता है मुस्कुराता है चिंतित मेरे बारे में वह पढ़ता है , जैसे ' साइंस टूडे ' पत्रिका या ' पंजाब केसरी ' अखबार। भगवान से डरता है इसलिए मेरे अवसाद से डरता है। वह जानता है कारण मीलों दूर होती हत्याओं के उसे चिंता नहीं होती अपनी पत्नी या बेटी की जिन्हें देखता मैं हर रोज खबरों में। ( दस बरस : दूसरी जिल्द -2002)

असली ख़लिश

प्रसिद्ध अमेरिकी कवि फिलिप लेवीन का कल देहांत हो गया। भारतभूषण  तिवारी ने उनकी एक कविता का अनुवाद किया था जो वेब पत्रिका 'अनुनाद '  में आया था और एक आलेख का अनुवाद किया था जो 'प्रतिलिपि' में आया था। मैंने कल भाषा पर जो पोस्ट डाला था, उसमें जनसत्ता में आने वाले जिस लेख का जिक्र किया था, वह आज 'भाषाई मानवाधिकार का मसला' शीर्षक से आ गया है।  उसे यहाँ पेस्ट कर रहा हूँ।  भाषा का मुद्दा आखिर क्या है इस साल मराठी भाषा में साहित्य लेखन के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले भालचंद्र नेमाड़े ने कहा है कि अंग्रेज़ी की वजह से भारतीय भाषाएँ खत्म हो रही हैं। वे इससे भी आगे बढ़कर यहाँ तक कह गए हैं कि हमें अंग्रेज़ी को हटाने के लिए प्रभावी कदम लेने चाहिए। सलमान रश्दी और सर विदिया नायपॉल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उनका लेखन भारतीय साहित्य में जो कुछ लिखा जा रहा है , उसके मुकाबले कहीं भी नहीं है। अंग्रेज़ी की पैरवी करने वालों ने उनकी मूल बात को नज़रअंदाज़ करते हुए रश्दी के साथ उनकी झड़प का नोटिस लिया। रश्दी ने नेमाड़े को ' ग्रंपी ओल्ड मैन ...