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Showing posts from July, 2012

लगभग स्फटिक, इसरायली नोबेल विजेता और इस्लामी शिल्प

सीरीज़ का दूसरा आलेखः 'समकालीन जनमत' के अप्रैल 2012 अंक में प्रकाशित लगभग स्फटिक , इसरायली नोबेल विजेता और इस्लामी शिल्प मानव समाज और राजनीति में तरह - तरह की शत्रुताएँ हैं। पर प्रकृति को इससे क्या लेना  !   कला ,  साहित्य ,  विज्ञान और अन्य विधाओं में मानव की सृजनात्मकता शिखर पर तभी पहुँचती है ,    जब वह संकीर्ण वैमनस्य से परे हटकर व्यापक फलक पर अपनी छाप बना सके। कभी कभी ऐसा भी होता है कि अंजाने ही ज्ञान के छोर अलग अलग समुदायों से इस तरह जुड़े होते हैं ,  जिसके बारे में आम तौर पर हम सोच नहीं पाते। वर्ष   2012  के रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार इसरायल के डैनिएल शेख़्तमान को दिया गया। शेख़्तमान टेक्नीआन विश्वविद्यालय में अध्यापक हैं।उनके शोध का विषय क्वासी  - क्रिस्टल यानी लगभग स्फटिक जैसे मिश्र धातुओं को लेकर है। यह रोचक बात है कि इस्लामी कहे जाते मुल्कों में एक हजार साल से भी पहले से इमारतों या मीनारों की दीवारों में सजावट के लिए क्वासी - क्रिस्टल इस्तेमाल में लिए जाते रहे हैं। और इसरायल तथा इस्लामी मुल्कों में संबंध ...

सीरीज़ का पहला आलेखः लगातार फैलता ब्रह्मांड

'समकालीन जनमत' में पिछले कुछ महीनों से नियमित रूप से विज्ञान के आलेख लिख रहा हूँ। जून अंक में प्रकाशित आलेख को पिछले चिट्ठे में डाला था। यहाँ इस सीरीज़ का पहला आलेख (जनमत के मार्च 2012 अंक में प्रकाशित) पेस्ट कर रहा हूँः लगातार फैलता ब्रह्मांड - लाल्टू समाज विज्ञान में विरला ही कोई सैद्धांतिक काम ऐसा होता है , जिसका सरोकार विज्ञान की आलोचना से न हो। अक्सर विज्ञान के बारे में सीमित समझ के साथ ही आलोचक बहुत सारी बातें कह जाते हैं। वैसे भी वैज्ञानिक शोध और उससे निकली जानकारी को समझ पाना विज्ञान की औपचारिक शिक्षा के बिना कठिन है। प्राकृतिक घटनाओं को समझ कर उनको संचालित करने वाले नियमों को जान लेने की अदम्य इच्छा मानव की बुनियादी प्रवृत्ति है। आधुनिक विज्ञान ( या जो पश्चिम से आया है ) की आलोचना का मुख्य बिंदु यही होता है कि मानव की इस जीवनोन्मुखी आध्यात्मिक या मूलतः सौंदर्य परक प्रवृत्ति को एक हिंसक प्रवृत्ति बनाने का काम आधुनिक विज्ञान ने किया है। यह बात सही है या नहीं , इसे फिलहाल छोड़ दें और समकालीन वैज्ञानिक शोध की दशा - दिशा पर कुछ जानने की कोशिश ...

मशीनी दिमाग का विज्ञान

अंग्रेज़ी में विज्ञान पढ़ाना, शोध पर्चे लिखना, यह मेरा पेशा है। इसलिए हिंदी में विज्ञान लेखन की ज़रूरत का अहसास होते हुए भी लिखने का मन नहीं करता। वैसे भी टाइप करने में जान निकल जाती है। फिर भी अक्सर लिख ही लेता हूँ। इधर 'समकालीन जनमत' में पिछले कुछ महीनों से नियमित लिख रहा हूँ। जून अंक में जो आलेख आया उसमें मुद्रण की कई गलतियाँ हैं। मैं यूनिकोड इनपुट और लोहित हिंदी में टाइप करता हूँ। भेजते हुए पी डी एफ फाइल के अलावा जीमेल में पेस्ट भी कर देता हूँ। फिर भी फोंट बदलते हुए अक्सर गलतियाँ रह जाती हैं। बहरहाल, वह आलेख यहाँ पेस्ट कर रहा हूँ ताकि अगर किसी ने पढ़ा हो और त्रुटिओं की वजह से बातें समझ न आई हों तो अब सही सही पढ़ लें। मशीनी दिमाग का विज्ञान                              वैज्ञानिकों के बारे में आम धारणा है कि सृष्टि की शुरूआत जैसे धमाकेदार विषयों या चमत्कारी नई दवाओं आदि पर वे शोध करते रहते हैं। पर सचमुच ज्यादातर वैज्ञानिक ...