सीरीज़ का दूसरा आलेखः 'समकालीन जनमत' के अप्रैल 2012 अंक में प्रकाशित
लगभग
स्फटिक,
इसरायली
नोबेल विजेता और इस्लामी
शिल्प
मानव समाज और राजनीति में तरह-तरह की शत्रुताएँ हैं। पर प्रकृति को इससे क्या लेना ! कला, साहित्य, विज्ञान और अन्य विधाओं में मानव की सृजनात्मकता शिखर पर तभी पहुँचती है, जब वह संकीर्ण वैमनस्य से परे हटकर व्यापक फलक पर अपनी छाप बना सके। कभी कभी ऐसा भी होता है कि अंजाने ही ज्ञान के छोर अलग अलग समुदायों से इस तरह जुड़े होते हैं, जिसके बारे में आम तौर पर हम सोच नहीं पाते। वर्ष 2012 के रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार इसरायल के डैनिएल शेख़्तमान को दिया गया। शेख़्तमान टेक्नीआन विश्वविद्यालय में अध्यापक हैं।उनके शोध का विषय क्वासी -क्रिस्टल यानी लगभग स्फटिक जैसे मिश्र धातुओं को लेकर है। यह रोचक बात है कि इस्लामी कहे जाते मुल्कों में एक हजार साल से भी पहले से इमारतों या मीनारों की दीवारों में सजावट के लिए क्वासी-क्रिस्टल इस्तेमाल में लिए जाते रहे हैं। और इसरायल तथा इस्लामी मुल्कों में संबंध कैसे हैं, यह तो हर कोई जानता है।
क्रिस्टल या स्फटिक ऐसे ठोस पदार्थ को कहते हैं, जिसमें परमाणु जाली या लैटिस में सजे होते हैं। लैटिस का मतलब है ऐसा ढाँचा जिसमें एक ही जैसी आकृति को नियमित आवर्त्ती (periodic) रूप से रखा जाता है। जैसे शतरंज के खाने अगर अनंत तक चलते रहें तो वह एक द्वि-आयामी लैटिस होगा। स्पष्ट है कि यह सजावट कई तरह से बन सकती है। जैसे नीचे तस्वीर में सामान्य द्वि-आयामी षड्कोणीय (hexagonal) लैटिस है, जिसमें हर शीर्षबिंदु पर एक परमाणु रख दिया जाए तो एक क्रिस्टल बन जाएगा।
चित्र 1 : द्वि-आयामी षड्कोणीय (hexagonal) लैटिस
आम क्रिस्टल त्रि-आयामी होते हैं और अलग-अलग दिशाओं में लैटिस का आवर्त्ती स्वरुप अलग अलग प्रकार का हो सकता है ।
1970 के पहले तक यह माना जाता था की इस तरह के लैटिस यानी आवर्त्ती ढांचों में कहीं भी पंचभुजाकर आकृति नहीं हो सकती । शेख्त्मान ने यह सिद्ध कर दिया की मिश्रधातुओं में लैटिस के ऐसे नक़्शे हैं, जिनमें पंचभुज आकृतियाँ भी हैं । इस तरह लैटिस के बने क्रिस्टल को क्वासी-क्रिस्टल कहते हैं ।
प्रसिद्ध ब्रिटिश गणितज्ञ भौतिकशास्त्री रोज़र पेनरोज़ ने सत्तर के दशक में इस्लामी मुल्कों में इमारतों पर नक्शों का गहराई से अध्यन किया । 1980 के आस-पास अपने कई व्याख्यानों में उन्होंने इन नक्शों की तस्वीरें दिखलाई, जिनमें क्वासी-क्रिस्टल पैटर्न का इस्तेमाल हुआ था । हाल के एक ताज़ा शोधपत्र में अमरीका के टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी की रीमा अज़्लूनी ने यह दिखलाया है की 12वीं सदी में साधारण औजारों का इस्तेमाल कर भवन निर्माता कारीगरों ने क्वासी-क्रिस्टल नक़्शे बनाए।
चित्र 2 : -->मरघ में गुम्बद-ए-काबूद मीनार पर क्वासी-आवृति नक़्शे
क्वासी-क्रिस्टल को पूरी तरह आवृत्ति नहीं कहा जा सकता, हालांकि उनमें मौजूद परमाणु एक ख़ास श्रृंखला में बंधे होते हैं । शेख्त्मान ने 1984 में अल्युमिनियम और मैंगनीज़ के मिश्रधातु में सबसे पहले यह नक्शा देखा था । जब उन्होंने इस पर पर्चा लिखा तो इसका बड़ा विरोध हुआ । एक प्रतिष्ठित पत्रिका, जर्नल ऑफ़ एप्लाइड फिजिक्स, ने तो यह पर्चा प्रकाशित न कर वापस लौटा दिया था । दरअसल एक क्रिस्टल की सही पहचान मात्र आवर्त्ती नक़्शे में नहीं बल्कि दूर तक मौजूद श्रृंखला में होती है । पहले ये माना जाता था की बिना आवर्त्ती नक़्शे के ऐसी दूरगामी श्रृंखला बन ही नहीं सकती । आम तौर पर आणविक स्तर पर ऐसी संरचना को एक्स-रे किरणों के विवर्तन (diffraction) द्वारा जाना जाता है । एक्स-रे किरणें पदार्थ की सतह पर और सतह के नीचे अणुओं की तहों से प्रतिफलित होकर जब मिलतीं हैं तो तरंगों की दशाएँ आमतौर पर एक जैसी नहीं होती । अगर वे बिलकुल एक जैसी हों, तो उनके विस्तार जुड़कर और अधिक हो जाएंगे । इसके विपरीत अगर दशाएं एक दूसरे के बिलकुल विपरीत हों, यानी एक उभरी हुई और दूसरी दबी हुई हो तो विस्तार न्यूनतम हो जाएगा । अणुओं की तहों में दूरी के अनुसार प्रतिफलित तरंगों की दशाओं में अंतर होता है । तरंगों को परदे पर देखने पर कम या अधिक विस्तार के विश्लेषण से क्रिस्टल में परमाणुओं की आवर्त्ती स्थिति को जाना जाता है । ज्यामिति के नज़रिए से आवर्त्ती लैटिस में चक्रीय समरूपता होती है, जो विवर्तित तरंगों की दशाओं में भी दिखती है । चक्रीय समरूपता का मतलब है की एक निर्धारित अक्ष पर 360/2=180 , 360/3=120, 360/4=90 या 360/6=60 डिग्री घूमने पर भी लैटिस की संरचना एक जैसी दिखती है । इसे क्रमश: 2 गुनी ,3 गुनी, 4 गुनी या 6 गुनी चक्रीय समरूप कहा जाता है ।शेख़्तमान ने पाया कि अल्युमिनियम - मैंगनीज़ मिश्रधातु पदार्थ में 10 गुनी चक्रीय समरूपता है । शेख्त्मान पदार्थ की आणविक संरचना देखने वाले यन्त्र इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप के उपयोग में दक्ष थे । वे साल भर की छुट्टी लेकर अमरीका के वाशिंगटन शहर स्थित राष्ट्रीय मानक ब्यूरो (अब राष्ट्रीय मानक और तकनीक संस्थान ) में काम करने आये थे । वे वहां अल्युमिनियम - मैंगनीज़ मिश्रधातु के सूक्ष्म फीतों की संरचना पर काम कर रहे थे । बाद में अपने सहकर्मियों की सहायता से शेख्त्मान ने अपने अवलोकनों की व्याख्या के लिए उपयुक्त माडल बनाए, जिनमें पेनरोज़ के गणितीय सिद्धान्तों का भी समावेश है। हालांकि शेख्त्मान को पहले से पेनरोज़ के काम के बारे में कुछ पता न था ।
पेनरोज़ ने अणुओं को नहीं, बल्कि टाइलों (पटिया या खपरे) को सजाने पर काम किया था । सामान्यतः पेनरोज़ के बनाए नक्शों को पेनरोज़ टाइलिंग कहा जाता है । टाइलों को भी क्रिस्टल के परमाणुओं की तरह आवर्त्ती ढंग से सजाया जा सकता है । एक सामान्य उदाहरण के लिए एक जैसे वर्गाकार टाइलों को जोडती सजावट की कल्पना कर सकते हैं।
पेनरोज़ ने दिखलाया कि मात्र दो तरह की टाइलों - दो समचतुर्भुजाकार (rhombus) किस्म की टाइलों से ऐसा नक्शा बनाया जा सकता है । जिसमें कोई आवर्ती गुण नहीं होगा, पर अनंत दूरी तक वे एक दूसरे के साथ जुड़ते चले जा सकते हैं । स्थानीय स्तर पर समरूपता दिखती है, जैसे पंचशीर्षक तारकों जैसे स्थानीय एकरूप अकार दो भिन्न समचतुर्भुजीय टाइलों को जोड़कर बनाए नक़्शे में पाए जाते हैं (यहाँ पांच गुनी चक्रीय समरूपता है ) । ब्रिटिश क्रिस्टल विशेषज्ञ ऐलेन मैके ने पेनरोज़ टाइलिंग और सघन (मुख्यतः ठोस) पदार्थों में क्वासी - क्रिस्टल संरचना की धारणा में सम्बन्ध स्थापित किया था । इसके लिए 1982 में उन्होंने एक द्विआयामी ठोस की कल्पना की थी , जहां हर एक परमाणु को पेनरोज़ टाइलिंग के शीर्षबिंदु पर रखा । ऐसे नक़्शे को दोहराते हुए उन्होंने एक संरचना बनायी, जिसमें प्रकाश के विवर्तन से दस गुनी चक्रीय समरूपता पाई जा सकती है ।
क्वासी - क्रिस्टल मिश्रधातुओं के कुछ विशेष गुणधर्म पाए गए हैं । हालांकि वे आसानी से टूट सकते हैं, पर वे इस्पात से भी ज्यादा सख्त होते हैं (यानी उनकी पत्तियां आसानी से तोड़ी जा सकती हैं, पर उन्हें आसानी से मरोड़ा नहीं जा सकता या वे जल्दी पिघलते नहीं हैं) । ब्लेड या शल्य-चिकित्सा में काम आने वाले औजारों में ऐसे मिश्रधातुओं का इस्तेमाल किया जाता है । इनपर आसानी से कोई चीज़ चिपकती नहीं है, जिसकी वजह से टर्बाइन आदि में इनका उपयोग उपरी सतह को ढंकने के लिए किया जाता है ।
वैज्ञानिक अनुसंधान का फायदा देर सबेर अंततः टेक्नोलोजी में दिखता है, पर एक वैज्ञानिक अपना काम करते हुए यह सवाल पूछे कि उसके काम से व्यापक मानव समाज को क्या फायदा होने वाला है, यह ज़रूरी नहीं है । यह विज्ञान-कर्म की सीमा है, पर मूलतः वैज्ञानिक शोध प्रकृति के रहस्यों को अनावृत्त करने के लिए ही होता है ।
क्वासी-क्रिस्टल के आविष्कार से भी मूलतः ठोस पदार्थों की संरचना के बारे में ही पहले से अधिक जानकारी मिली है।
Comments