आज भगत सिंह शहीदी दिवस है । भगत सिंह ने कई पीढ़ियों के नौजवानों को प्रेरित किया कि वे मानव मुक्ति के संग्राम में समर्पित हों । ऐसे एक शख्स भ्रा जी , गुरशरण सिंह , के साथ थोड़ा बहुत काम करने का मौका हमें मिला । इन दिनों ये अस्वस्थ है और बड़ी उम्र में चल रहे डायलिसिस से बिस्तर पर पड़े हैं । अभी पीछे चंडीगढ़ गया तो दलजीत अमी और चेतन के साथ हमारे प्यारे भ्रा जी से मिला । १९८३ में एक महीने के लिए विदेश से छुट्टी पर घर कोलकाता में आया था । एक दिन द स्टेट्समैन अखबार में पढ़ा कि यह अनोखा व्यक्ति गाँव गाँव जाकर नाटकों के जरिए फिरकापरस्ती और राज्य समर्थित आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है । ' बाबा बोलता है ' नामक नाटक में बाबा की भूमिका करते हुए वे लोगों को समकालीन राजनीति की जटिल सच्चाइओं से वाकिफ करवाते थे । बाद में १९८५ में पंजाब विश्वविद्यालय में आने पर एक बार छात्रों की सांस्कृतिक संस्था द्वारा आयोजित भ्रा जी का नुक्कड़ नाटक देखा । उसके बाद से उनके साथ जो सम्बन्ध बना वह आज तक है । यह बदकिस्मती मेरी कि मैं कम ही मिल पाता हूं । अस्सी के दशक से लेकर नब्बे के शुरुआती सालों तक कई वर्षों तक...