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Showing posts from March, 2011

सलाम भगत सिंह के सच्चे अनुयायी को

आज भगत सिंह शहीदी दिवस है । भगत सिंह ने कई पीढ़ियों के नौजवानों को प्रेरित किया कि वे मानव मुक्ति के संग्राम में समर्पित हों । ऐसे एक शख्स भ्रा जी , गुरशरण सिंह , के साथ थोड़ा बहुत काम करने का मौका हमें मिला । इन दिनों ये अस्वस्थ है और बड़ी उम्र में चल रहे डायलिसिस से बिस्तर पर पड़े हैं । अभी पीछे चंडीगढ़ गया तो दलजीत अमी और चेतन के साथ हमारे प्यारे भ्रा जी से मिला । १९८३ में एक महीने के लिए विदेश से छुट्टी पर घर कोलकाता में आया था । एक दिन द स्टेट्समैन अखबार में पढ़ा कि यह अनोखा व्यक्ति गाँव गाँव जाकर नाटकों के जरिए फिरकापरस्ती और राज्य समर्थित आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है । ' बाबा बोलता है ' नामक नाटक में बाबा की भूमिका करते हुए वे लोगों को समकालीन राजनीति की जटिल सच्चाइओं से वाकिफ करवाते थे । बाद में १९८५ में पंजाब विश्वविद्यालय में आने पर एक बार छात्रों की सांस्कृतिक संस्था द्वारा आयोजित भ्रा जी का नुक्कड़ नाटक देखा । उसके बाद से उनके साथ जो सम्बन्ध बना वह आज तक है । यह बदकिस्मती मेरी कि मैं कम ही मिल पाता हूं । अस्सी के दशक से लेकर नब्बे के शुरुआती सालों तक कई वर्षों तक...

'ओ रे गृहवासी, खोल द्वार खोल, लागलो जे दोल'

पिछले पोस्ट के बाद अच्छी खबर यह आई थी कि यू एस ए का इलिनाय प्रान्त देश का सोलहवां प्रांत बन गया है जहां मृत्यु दंड प्रतिबंधित हो गया। राज्य का वर्त्तमान गवर्नर पहले मृत्यु दंड का कट्टर समर्थक था , पर निर्दोषों को सजा मिलने के आंकड़ों से परेशान हो कर वह भी इसके खिलाफ हो गया है। यूरोपीअन यूनियन के अधिकतर मुल्कों में पहले ही मृत्यु दंड की प्रथा ख़त्म हो चुकी है। काश कि हमारे देश में भी लोगों को यह समझ आए कि यह गलत है। जापान की प्राकृतिक विपदाओं और नाभिकीय दुर्घटना से पहली सीख यही मिलती है कि हम अपनी औकात को समझें और मानव मानव में भेद का जो प्रपंच हमने बनाया है उसकी मूर्खता को समझें। बाकी बातें बाद में आती हैं। बारह तेरह साल पहले हम लोग भारत पकिस्तान में दुश्मनी ख़त्म करने और युद्ध की संस्कृति के खिलाफ लोगों को समझाने के लिए हिरोशिमा नागासाकी पर स्लाइडें दिखाते थे - वह पोखरण कहूटा का युग था। आज भी जापान से हमें कुछ सीखना है तो यही कि जन जन का चेहरा एक। लोग पूछते हैं - मुझे भी स्थानीय टी वी चैनल पर पूछा गया कि क्या हमारे रीऐक्टर सेफ हैं। सेफ क्या जापान के रीऐक्टर नहीं थे ? तकनीकी मामल...

सिद्धांततः मृत्यु दंड के खिलाफ

रविवार को चंडीगढ़ में साहित्त चिंतन की सभा में मेरी कविताओं पर गोष्ठी हो रही है। प्रोफ़ेसर मैनेजर पांडे ने सहृदयता के साथ प्रधान वक्ता की जिम्मेदारी ली है। जो मित्र आ सकें ज़रूर आएं। सभा सेक्टर पैंतीस के प्राचीन कला केंद्र में सुबह साढ़े दस बजे से शुरू होगी। इस बीच लम्बे समय तक अपने काम में व्यस्त रहा और चिट्ठा लिख न पाया। दनादन हो रही घटनाओं में जो बात सबसे ज्यादा याद आती है , वह है बहुत सारे लोगों को अदालतों द्वारा मृत्यु दंड दिया जाना। यह जानते हुए कि कई दोस्तों को एतराज़ होगा कि अभी क्यों , मैं फिर भी सिद्धांततः मृत्यु दंड के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करना चाहता हूं। मैं मानता हूं कि जंग में दोनों ओर से हत्याएं वाजिब हो जाती हैं , पर जंग कौन सी वाजिब बात है ! इसीलिए तो हम जंग के विरोध में मुखर हैं। हत्यारों को मौत की सजा देना कोई अर्थ नहीं रखती। जो ह्त्या कर रहा है वह खुद मरने के लिए तैयार है। उसे मारकर क्या भला। दूसरी ओर मानव इतिहास में अनंत ऐसी सजा - ए - मौत देने की घटनाएं दर्ज़ हैं , जहां बाद में पता चला कि दण्डित व्यक्ति निर्दोष था। पूर्वाग्रहों के आधार पर किसी को भी दोषी मान ले...