Wednesday, March 23, 2011

सलाम भगत सिंह के सच्चे अनुयायी को


आज भगत सिंह शहीदी दिवस है
भगत सिंह ने कई पीढ़ियों के नौजवानों को प्रेरित किया कि वे मानव मुक्ति के संग्राम में समर्पित होंऐसे एक शख्स भ्रा जी, गुरशरण सिंह, के साथ थोड़ा बहुत काम करने का मौका हमें मिलाइन दिनों ये अस्वस्थ है और बड़ी उम्र में चल रहे डायलिसिस से बिस्तर पर पड़े हैंअभी पीछे चंडीगढ़ गया तो दलजीत अमी और चेतन के साथ हमारे प्यारे भ्रा जी से मिला
१९८३ में एक महीने के लिए विदेश से छुट्टी पर घर कोलकाता में आया थाएक दिन द स्टेट्समैन अखबार में पढ़ा कि यह अनोखा व्यक्ति गाँव गाँव जाकर नाटकों के जरिए फिरकापरस्ती और राज्य समर्थित आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है'बाबा बोलता है' नामक नाटक में बाबा की भूमिका करते हुए वे लोगों को समकालीन राजनीति की जटिल सच्चाइओं से वाकिफ करवाते थेबाद में १९८५ में पंजाब विश्वविद्यालय में आने पर एक बार छात्रों की सांस्कृतिक संस्था द्वारा आयोजित भ्रा जी का नुक्कड़ नाटक देखाउसके बाद से उनके साथ जो सम्बन्ध बना वह आज तक हैयह बदकिस्मती मेरी कि मैं कम ही मिल पाता हूंअस्सी के दशक से लेकर नब्बे के शुरुआती सालों तक कई वर्षों तक तमाम क्रांतिकारी वाम संगठनों को रीवोलूशनारी यूनाइटेड फ्रंट के झंडे तले इकठ्ठा कर पहली मार्च से २३ मार्च तक पंजाब के गाँव गाँव में जुलूस निकालते- रुक रुक कर सभाएं होतींऐसी एक सभा में में १९८६ या ८७ में शामिल हुआ थारामपुराफूल के बाजारों से गुज़रते उस जुलूस का गगनभेदी नारा था - न हिन्दू राज न खालिस्तान, राज करे मजदूर किसानउन दिनों उन पर खतरे भी बहुत थेकुछ समय तक बड़ी चिंता थी कि उन पर हमला हो सकता हैसरकारी और विरोधी दोनों किस्म के आतंकवादियों से डर था
भ्रा जी ने अपने लम्बे जन नाट्य अभियान की ज़िंदगी में देश विदेश में अनगिनत बार नुक्कड़ नाटक किए - अनगिनत नए लोगों को प्रशिक्षित कियासाथ ही जन पक्षधर साहित्य का सम्पादन कियासमता नामक पत्रिका चलाई, इसी नाम से प्रकाशन संस्था भी चलाईमुझसे कुछ पंजाबी कहानियों का अनुवाद करवाया, जो जनसत्ता और साक्षात्कार अदि में प्रकाशित हुईंपता नहीं क्या क्या कियाअगर ईमानदारी से यह बात सोची जाए कि पंजाब के लोक मानस में पिछले चालीस सालों में सबसे ज्यादा प्रभाव किसी एक व्यक्ति का पड़ा है, तो वह भगत सिंह के इस सच्चे अनुयायी का हैवे सही अर्थों में कर्मवीर हैंउनके बारे में संक्षेप में कुछ लिखना असंभव है
अभी मिले तो कहने लगे - हमें सोचना है कि आज की स्थितियों में हम क्या कर सकते हैं -छात्र जीवन से अब तक की पुरानी यादों को दोहराते और कहते - गलतियां बहुत हुई हैंहमें दुबारा सोचना है


3 comments:

Patali-The-Village said...

ऐसे महा पुरुषों को हमारा नमन|

वन्दना अवस्थी दुबे said...

गलतियां बहुत हुई हैं। हमें दुबारा सोचना है।
सही है. बहुत बहुत आभार गुरशरण जी से मिलवाने का.

प्रदीप कांत said...

गलतियां बहुत हुई हैं। हमें दुबारा सोचना है।

अब ग़लतियाँ सुधारनी जरूरी है।