वाह भई वाह! सालगिरह ने तो मुझे एक दिन का बादशाह ही बना दिया। इतनी टिप्पणियाँ! बहरहाल, एक तो लटके पत्थर की तस्वीर दिखलानी है। कविता भी। बस सिर्फ मसिजीवी की बधाई का इंतज़ार था। आगे किसी प्रविष्टि में तस्वीर और कविता का वादा रहा। दूसरी बात आर टी ओ वाली। थोड़ी सी बेईमानी मेरी रही कि कुछ गड़बड़ जो और वजहों से हो रही है, वह बतलाया नहीं। इसके पहले कि फिर किसी अंजान भाई को तकलीफ हो, कुछ आत्म-निंदा कर लूँ। सुख तो पर-निंदा जैसा नहीं मिलेगा, पर निंदा तो निंदा ही है। एक जनाब हैं पंकज मिश्र। उसने भारतीय मध्य-वर्ग की निंदा (जिसमें वह खुद शामिल है बेशक) को बाकायदा धंधा बना लिया है। हमारा हीरो है। 'बटर चिकन इन लुधियाना' पढ़ी थी कुछ साल पहले। पता चला बंगाल के छोटे शहर में लुधियाना के बटर चिकन का गुणगान हो रहा है पंजाबी स्टाइल में (इसके बारे में साल भर पहले लिखा था कि गुरशरण जी ने कितना फाइन तय किया है), चिकन निगल रहे हैं हरियाणवी व्यापारी और आ हा हा! भोजन कितना बढिया है इसका पैमाना है कि भोजन के बारे में कितनी घटिया भद्दी गाली निकल सकती है। है न कमाल की खोज। इसलिए पंकज मिश्र मेरा हीरो ...