- ('अकार' के ताज़ा अंक में प्रकाशित) सालों पहले कभी एक शास्त्रीय-संगीत गायक दोस्त से सोहर लोक-शैली की धुन में लिखा गोरख पांडे का गीत 'सुतल रहती सपन एक देखली' सुना था। कई बार इसे मैंने पढ़ा है, और 'सपन' शब्द की ताकत पर अभिभूत हुआ हूँ। एक शब्द में जीवविज्ञान, समाज-शास्त्र, इतिहास, राजनीति और साहित्य – सब कुछ है। विरला ही कोई कवि होगा जिसने सपना का इस्तेमाल न किया हो। लैंगस्टन ह्यूज़ की कालजयी कविता Harlem की पहली पंक्ति What happens to a dream deferred – दरकिनार किए गए ख़्वाब का हश्र क्या होता है - इतने अर्थ लिए हुए है कि इस पर हज़ारों लेख लिखे गए हैं। कुमार विकल की 'स्वप्न-घर', पाश की 'सबसे खतरनाक' जैसी अनगिनत कविताएँ हैं, जहाँ सपना केंद्र में है। फिल्मी दुनिया में तो ख़्वाब के बिना बहुत कम ही कुछ बचता है। मसलन 'ख़्वाब हो तुम या कोई हक़ीक़त' जैसे 'दार्शनिक' सवाल कई पीढ़ियाँ गुनगुनाती रही हैं। साल 1619 में रेने देकार्त ने एक सपने में आधुनिक विज्ञान और दर्शन की बुनियाद सोची, जिसे बाद में उन्होंने 'ए डिस्कोर्स ऑन द मेथड' (1637) क...