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Showing posts from April, 2023

विज्ञान की सामान्य समझ और मानविकी

वि ज्ञा न की सामान्य समझ और मानविकी विषयों में विश्व-दृष्टि का सवाल (पिछले महीने उदयपुर में दिया व्याख्यान। लेख के कुछ हिस्से पहले लिखे गए व्याख्यानों में से लिए गए हैं) यह कार्यशाला मानव-विज्ञान या समाज-विज्ञान पढ़ने-लिखने पर है। सुधा जी ने स्नेह-वश बुला  लिया और मुझे विज्ञान पर ही बातें करने को कहा। जमाना है कि हर दिन किसी नई टेक्नोलोजी की बात होती है और ज्यादातर लोगों को टेक्नोलोजी में ही विज्ञान दिखता है। इन दिनों कहना मुश्किल होता जा रहा है कि विज्ञान और टेक्नोलोजी के बीच लकीर है कि नहीं। जमाने की खबर रखना इंसान की फितरत है। निजी और सामाजिक दायरों में इंसान की फितरत को समझना समाज-विज्ञान है। आजकल इसकी जगह दो सदी पुराना पद ह्यूमन साइंसेस या मानव-विज्ञान आमफ़हम हो गया है।  समाज-विज्ञान पर बात पूरी नहीं होती अगर साथ में विज्ञान या कुदरत के साइंस पर बात न हो। पिछली सदी के उत्तरार्द्ध में साइंस-टेक्नोलोजी-स्टडीज़ एक अहम डिसिप्लीन या विषय के रूप में उभरा है। यानी मेरी घुसपैठ लावाजिब नहीं है।  हर कहीं समाज की घुसपैठ अक्सर विज्ञान पर बात करते हुए मैं एक कविता से शुरूआत कर...

चैट-जीपीटी

  चैट-जीपीटी - इंसानी अजूबा या धोखेबाजों के हाथ नया औजार? - 'स्रोत' के फरवरी अंक में प्रकाशित मैं जिस संस्थान में काम करता हूँ,  पिछले ढाई महीनों से वहां कई अध्यापक ईमेल पर 'चैट-जीपीटी' पर चर्चा कर रहे हैं। दरअसल दुनिया भर में तालीम और अध्यापन से जुड़े लोगों में बड़ी संजीदगी से  यह चर्चा चल रही है। खास तौर पर मौलिक लेखन को लेकर एक संकट सा फैलता दिख रहा है। यह चैट-जीपीटी क्या है?  ए-आई की दौड़ में मील का पत्थर - चैट-जीपीटी हाल में कंप्यूटर साइंस और सूचना टेक्नोलॉजी में जो बड़े पैमाने की तरक्की हुई है, उसी की एक कड़ी ए-आई यानी कृत्रिम बुद्धि या गैर कुदरती समझ में हुए शोध की है। इस के कई अलग पहलुओं में रोबोटिक्स, भाषा की प्रोसेसिंग (एन-एल-पी या नैटरल लैंग्वेज़ प्रोसेसिंग) आदि हैं। चैट-जीपीटी या (ChatGPT - Chat Generative Pre-trained Transformer) ओपन-एआई नाम की एक कंपनी द्वारा बनाया ऐसा सॉफ्टवेयर है, जिससे पहले से 'प्री-ट्रेन्ड' या पर्याप्त रूप से पढ़ाया जा चुका कंप्यूटर, किसी विषय को समझ कर उसके बारे में नए लेख 'जेनरेट' यानी अपनी ओर से पेश कर सकता है। इसके अल...

ए आई यानी गैर-कुदरती समझ

 एकलव्य की विज्ञान की खबरों वाली पत्रिका 'स्रोत' के  दिसंबर अंक में   Artificial Intelligence पर मेरे चार लेख आए थे। यहाँ डाल रहा हूँ। किसी के काम आए तो मेरे नाम के साथ ज़रूर इस्तेमाल करें।  Artificial Intelligence , ए आई यानी गैर-कुदरती समझ या कृत्रिम मेधा - 1 आजकल हर कहीं 'ए आई' का बोलबाला है। आखिर यह ए आई क्या बला है? चेक नाटककार कारेल चापेक ने 1920 में 'आर यू आर' नामक नाटक लिखा था, जिसमें रोसुमोवी यूनिवरसालनी रोबोती (Rossumovi Univerzální Roboti) नामक कंपनी का जिक्र है, जो गैर-कुदरती इंसान जैसी दिखती रोबो मशीनें बनाती है। तब से मशीनों में इंसान जैसी काबिलियत की कल्पना पर गाहे-बगाहे चर्चाएँ होती रही हैं। पिछली सदी में पचास के दशक में ये चर्चाएँ कल्पनालोक से निकल कर विज्ञान के खित्तों में संजीदा सवाल बन कर सामने आईं, जब पहले आधुनिक कंप्यूटर बनने लगे थे। इनमें अर्द्ध-चालक सिलिकॉन की टेक्नोलोजी से बने ट्रांज़िस्टरों की मदद से तेजी से गणनाएँ मुमकिन होने लगी थीं। जैसे-जैसे कंप्यूटर टेक्नोलोजी गणनाओं से इतर तमाम दूसरे खित्तों में प्रभाव डालने लगी और सूचना यानी इन्फ...