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Showing posts from August, 2021

गेल ओंवेट का जाना और एक कविता

  गेल ओंवेट से पहला परिचय ख़त के जरिए हुआ था। न्यूयॉर्क से गार्डियन नाम की साप्ताहिक अखबारनुमा पत्रिका छपती थी , जिसमें हिंदुस्तान के जनांदोलनों पर गेल लिखा करती थीं। उनसे गेल का पता लेकर उन्हें ख़त लिखा था कि मुल्क लौट कर कहाँ काम किया जाए , इस पर सलाह दें। गेल ने स्नेह के साथ जवाब लिखा , पर ज़मीनी काम की चुनौतियों से सचेत किया। ऐसी ही प्रतिक्रिया नारायण देसाई से भी मिली थी। वैचारिक रूप से हम गेल के ज्यादा करीब थे। बाद में कोलकाता में उनके संगठन के साथ जुड़े श्रीहर्ष कन्हेेरे से मिला था , जो शायद स्टेट बैंक में काम कर रहे थे। कन्हेरे के जरिए ऐक्टिविस्ट डॉक्टर सरोजित ( स्मरजित ) जाना से मिला था , जिसके साथ लंबी दोस्ती रही। सरोजित का दो महीने हुए , देहांत हो गया। श्रीहर्ष पचीस साल पहले ही गुजर गए थे। गेल से शायद 1993 में मुलाकात हुई। तब तक उनकी किताब We Shall Smash This Prison: Indian Women in Struggle पढ़ चुका था और दो प्रतियाँ ( पेपरबैक और हार्ड कवर ) भी साथ में थीं। आई डी सी नामक एन जी ओ के प्रमोद कुमार के आमंत्रण पर गेल चंडीगढ़ आई थीं। प्रमोद के घर पर उनसे मिला था। परिस्थितियाँ कुछ ऐ...

'बदशक्ल चुड़ैलों'

  हर बार की तरह इस बार भी 15 अगस्त पर ' कौन आज़ाद हुआ ' गीत और वेदी सिन्हा का अद्भुत गायन पर भी पोस्ट काफी शेयर हुए। मेरा बहुत प्रिय गीत है , कई बार दोस्तों के साथ गाया है। पिछले साल धीरेश सैनी के कहने पर मैंने हिन्दी में ' अश्वेत ' शब्द के इस्तेमाल पर  आपत्ति करते हुए एक लेख लिखा था। हाल  में फिर किसी बहस में शामिल होते  हुए इसका लिंक मैंने शेयर किया था। लेख  अंग्रेज़ी में लिखा जाए तो कई लोग  पढ़ते हैं  और  बातचीत होती है। हिन्दी में आप कितना पढ़े जाएँगे , यह इससे तय  होता है कि  आप कितने प्रतिष्ठित हैं। और प्रतिष्ठा कौन  तय  करता है ? ... खैर , उस लेख में ये पंक्तियाँ भी थीं - "यह ज़रूरी है कि शब्दों का इस्तेमाल करते हुए हम गंभीरता से सोचें। हमें लग  सकता है कि हम तरक्की-पसंद हैं, बराबरी में य कीन रखते हैं और एक छोटी सी  बात को बेमतलब तूल देने की ज़रूरत नहीं   है। ऐसा सोचते हुए कभी हम  व्यवस्था के पक्ष में  खड़े हो जाते हैं और भूल जाते हैं कि गैरबराबरी कैसी भी हो,  वह नाइंसाफी है और  इं...