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गेल ओंवेट का जाना और एक कविता

 गेल ओंवेट से पहला परिचय ख़त के जरिए हुआ था। न्यूयॉर्क से गार्डियन नाम की साप्ताहिक अखबारनुमा पत्रिका छपती थी, जिसमें हिंदुस्तान के जनांदोलनों पर गेल लिखा करती थीं। उनसे गेल का पता लेकर उन्हें ख़त लिखा था कि मुल्क लौट कर कहाँ काम किया जाए, इस पर सलाह दें। गेल ने स्नेह के साथ जवाब लिखा, पर ज़मीनी काम की चुनौतियों से सचेत किया। ऐसी ही प्रतिक्रिया नारायण देसाई से भी मिली थी। वैचारिक रूप से हम गेल के ज्यादा करीब थे। बाद में कोलकाता में उनके संगठन के साथ जुड़े श्रीहर्ष कन्हेेरे से मिला था, जो शायद स्टेट बैंक में काम कर रहे थे। कन्हेरे के जरिए ऐक्टिविस्ट डॉक्टर सरोजित (स्मरजित) जाना से मिला था, जिसके साथ लंबी दोस्ती रही। सरोजित का दो महीने हुए, देहांत हो गया। श्रीहर्ष पचीस साल पहले ही गुजर गए थे। गेल से शायद 1993 में मुलाकात हुई। तब तक उनकी किताब We Shall Smash This Prison: Indian Women in Struggle पढ़ चुका था और दो प्रतियाँ (पेपरबैक और हार्ड कवर) भी साथ में थीं। आई डी सी नामक एन जी ओ के प्रमोद कुमार के आमंत्रण पर गेल चंडीगढ़ आई थीं। प्रमोद के घर पर उनसे मिला था। परिस्थितियाँ कुछ ऐसी थीं कि ढंग से बात नहीं हुई। उन दिनों जाति की समस्या पर गेल वाम की सोच से अलग होती जा रही थीं। हो सकता है कि इस वजह से या यात्रा की थकान या उस एन जी ओ को जान कर उनमें बेरुखी सी थी। फिर कभी मुलाकात नहीं हुई। उनका जाना अपने अतीत से कुछ का चले जाना है।


*



सात साल पहले फेस बुक पर पोस्ट की एक कविता में कुछ बदलाव के साथ 


आज फिर पोस्ट कर रहा हूँ -



हर मीरा के लिए


तुम्हारे पहले भी छंद रचे होंगे युवतियों ने


अधेड़ महिलाएँ सफाई करतीं खाना बनातीं


गाती होंगी गीत तुमसे पहले भी








किसने दी यह हिम्मत


कैसी थी व्यथा प्रेम की


कौन थीं तुम्हारी सखियाँ


जिन्होंने दिया तुम्हें यह ज़हर






कैसा था वह स्वाद जिसने


छीन ली तुमसे हड्डियों की कंपन


और गाने लगी तुम प्रेम के गीत









हर उस मीरा के लिए जो तुमसे पहले आई


मैं दर्ज़ करता हूँ व्यथाओं के खाते में अपना नाम


प्रतिवाद कि मैं हूँ अधूरा अपूर्ण 


मुझसे छीन लिए गए हैं मेरी माँओं के आँसू


आँसू जिनसे सीखने थे मैंने अपने प्रेम के बोल


अपनी राधाओं को सुनाने थे जो छंद।






(हंस 2008)


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