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Showing posts from April, 2021

लाल्टू तुम वहाँ क्या कर रहे थे

  पागंथांग * में (* गांगतोक के पास ) कायदे से वहाँ किसी और को होना चाहिए था जिसे याद करते मैं कुछ लिखता उसकी अकेली सुबह - शामों पर टिप्पणी करता कि इस उम्र में कहीं भी हो कोई , वह अकेला ही रहता है बहरहाल वहाँ बेहद ठंड थी , जब मुल्क का बाक़ी हिस्सा सूरज की आग और एक राष्ट्रीय चुनाव की चोरी में झुलस रहा था सबसे ऊँची चोटी से नीचे खंदकों में छलाँग लगाने की सोचते ग़रीब सिपाहियों को देस बड़ा कब होता है गीत सुनाते ठंड की बारिश में सिकुड़ते कि हसरतें खत्म न हो जाएँ इस चाहत में तड़पते डरते - डरते हर पल डरते कि कभी तो लौटना ही होगा झुलसती धरती पर कोई उपाय नहीं था कि कहीं विलीन हो सको हमेशा के लिए छोटी चिड़िया की चीख सीने में समेटे लाल्टू तुम वहाँ क्या कर रहे थे । (2019, ; कंचनजंघा ई - पत्रिका 2021) At Pangthang Normally it should be someone else there I could remember them Comment on their life That at this age, wherever you are, you are alone Anyway it was pretty cold there, when the rest of the country was burning in the wrath of the sun And the hijacking of a National  election Thinking of j...

आज भी इंकलाब  मिलने नहीं आया।

  कोलकाता रात के चौथे पहर कोलकाता मुझसे बतियाने आता है। थोड़ी देर बाद ट्राम की घंटी  सुनाई देती है , मैं आँखें खोल कमरे  की छत पर छिपकली की तरह लटका उसे  देखता हूँ , वह रेंगता हुआ मुझे छोड़  चल देता है। हर रात कोई तोहफा मेरे  लिए छोड़ जाता है ; मसलन आज उसने ऑर्फन - गंज मार्केट की कहानी रख दी।  पढ़ते हुए मैं कीचड़ में छपाक सा  फिसलता हूँ और मेरे घुटने काँप उठते हैं। ठीक  उस वक्त निताई भिखमंगा अपनी  बीबी के बगल से उठकर सरकता  हुआ   मानसी का दिन भर का मैला बदन सूँघता है। अँधेरे में 36 नंबर ट्राम घंटी  बजाते हुए खिदिरपुर आ पहुँचती है। मैंने उसे कभी डगमगाते नहीं देखा। उसकी चाल मुझे उस हिपस्टर की याद  दिलाती है , जिसका नाम न्यूयॉर्क है। सड़कें  उसके कदमों के नीचे डगमगाती हैं।   सुबह के थपेड़ों से पिटने के पहले ही मैं सो  जाता हूँ। इस बीच दूकानें उवासी लेती हुई हवाएँ निगलती हैं। ऊपर उलझे हुए टेलीफोन के तार मेरे सपनों में जाग उठते  हैं। कोलकाता अपने माथे से ओंस  की आखिरी बूँदें पोंछता है। कहीं कोई बादल अचानक...