कोलकाता
रात के चौथे पहर कोलकाता मुझसे बतियाने आता है। थोड़ी देर बाद ट्राम की घंटी
सुनाई देती है, मैं आँखें खोल कमरे की छत पर छिपकली की तरह लटका उसे
देखता हूँ, वह रेंगता हुआ मुझे छोड़ चल देता है। हर रात कोई तोहफा मेरे लिए
छोड़ जाता है; मसलन आज उसने ऑर्फन-गंज मार्केट की कहानी रख दी।
पढ़ते हुए मैं कीचड़ में छपाक सा फिसलता हूँ और मेरे घुटने काँप उठते हैं। ठीक
उस वक्त निताई भिखमंगा अपनी बीबी के बगल से उठकर सरकता हुआ
मानसी का दिन भर का मैला बदन सूँघता है। अँधेरे में 36 नंबर ट्राम घंटी
बजाते हुए खिदिरपुर आ पहुँचती है।
मैंने उसे कभी डगमगाते नहीं देखा। उसकी चाल मुझे उस हिपस्टर की याद
दिलाती है, जिसका नाम न्यूयॉर्क है। सड़कें उसके कदमों के नीचे डगमगाती हैं।
सुबह के थपेड़ों से पिटने के पहले ही मैं सो जाता हूँ। इस बीच दूकानें उवासी लेती
हुई हवाएँ निगलती हैं। ऊपर उलझे हुए टेलीफोन के तार मेरे सपनों में जाग उठते
हैं। कोलकाता अपने माथे से ओंस की आखिरी बूँदें पोंछता है। कहीं कोई बादल
अचानक नीचे उतरता सिर पर चांटा मार जाता है। वह फिर भी नहीं डगमगाता।
हंँसता भी नहीं, बस अगली रात मुझे कैसा तोहफा देना है, सोचता हुआ गंगा की
ओर चल देता है। ट्राम की घंटी को बसों-गाड़ियों के घर्र-घर्र आशिक घेर लेते हैं।
उनकी ओर देखता वह एकबारगी कह उठता है - धस्साला, आज भी इंकलाब
मिलने नहीं आया। (2010; कंचनजंघा ई-पत्रिका 2021)
Kolkata
It comes to chat with me in the last phase of night. A little later I
hear the tram bells ringing, With eyes wide open I see it
hanging upside down from the ceiling like a lizard; it crawls
away leaving me behind. Every night it leaves a present for
me; for instance, today it left the story of the Orphangunj
market. I read it and slip splashing in the mud and my knees
shiver. Right then Nitai the beggar moves from his wife’s
side and slips away to breathe-in Manasi’s flesh carrying the
day long filth. Number 36 tram arrives at Kidderepore in the
dark ringing its bells.
I never saw it staggering. Its walk reminds me of the hipster
called New York. The streets stagger beneath its feet. I fall
asleep before the morning slaps me. In the mean while
shops yawn and breathe-in the wind. My dreams are awake in
the telephone cables in the sky. Kolkata wipes the last drops
of dew from its forehead. A cloud droops down at some-
which-where and hits him on the head. Yet it does not stagger.
It does not smile either, merely walks away towards the
Ganga wondeing what present it should bring me the next
morning. The Grrrr-Grrrr vehicles as lovers surround the tram
bells. It looks at them and all of a sudden says, shit man! And today
again Revolution did not turn up.
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