पागंथांग* में (*गांगतोक के पास)
कायदे से वहाँ किसी और को होना चाहिए था
जिसे याद करते मैं कुछ लिखता
उसकी अकेली सुबह-शामों पर टिप्पणी करता
कि इस उम्र में कहीं भी हो कोई, वह अकेला ही रहता है
बहरहाल वहाँ बेहद ठंड थी, जब मुल्क का बाक़ी हिस्सा सूरज की आग
और एक राष्ट्रीय चुनाव की चोरी में झुलस रहा था
सबसे ऊँची चोटी से नीचे खंदकों में छलाँग लगाने की सोचते
ग़रीब सिपाहियों को देस बड़ा कब होता है गीत सुनाते
ठंड की बारिश में सिकुड़ते
कि हसरतें खत्म न हो जाएँ इस चाहत में तड़पते
डरते-डरते हर पल डरते
कि कभी तो लौटना ही होगा झुलसती धरती पर
कोई उपाय नहीं था कि कहीं विलीन हो सको
हमेशा के लिए छोटी चिड़िया की चीख सीने में समेटे
लाल्टू तुम वहाँ क्या कर रहे थे । (2019, ; कंचनजंघा ई-पत्रिका 2021)
At Pangthang
Normally it should be someone else there
I could remember them
Comment on their life
That at this age, wherever you are, you are alone
Anyway it was pretty cold there, when the rest of the country
was burning in the wrath of the sun
And the hijacking of a National election
Thinking of jumping down into the ditch from the highest peak
Singing the when does a country become great song to poor officers
of the force
Shivering in the cold rain
Agonising over the wish that desires may prevail
Afraid, every moment fearful
That I have to return one day to the burning below
There is no way to disappear forever
With the cry of the tiny bird in your heart
What were you doing there, Laltu.
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